कुछ साल पहले, नीति आयोग ने एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। आयोग ने कहा था कि वह उन सभी 29 (बाद में 32) वैश्विक सूचकांकों के लिए एक “सिंगल, इंफॉर्मेटिव डैशबोर्ड” तैयार करेगा, जिन पर भारत की रैंकिंग तय की जाती है। इस कवायद का मकसद सिर्फ रैंकिंग में सुधार करना नहीं था, बल्कि सिस्टम को बेहतर बनाना, सुधारों को गति देना और वैश्विक स्तर पर भारत की धारणा को मजबूत कर निवेश आकर्षित करना था।
बहरहाल, चाहे जो भी कारण रहा हो, यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी स्थिति का आकलन करना छोड़ दें। एक पुस्तक के शोध के दौरान, मैंने 2014 की तुलना में भारत की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए चार दर्जन से अधिक वैश्विक संकेतकों (Global Indicators) का विश्लेषण किया। यह डेटा हमें आईना दिखाता है कि हम कहां खड़े हैं। आइए, एक नजर डालते हैं इन आंकड़ों पर।
मानव विकास और नागरिक अधिकारों की स्थिति
यूएनडीपी (UNDP) के मानव विकास सूचकांक (HDI) पर गौर करें तो 2014 में भारत की रैंक 130 थी और आज भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि “असमानता के कारण भारत के HDI में 30.7 प्रतिशत की कमी आती है, जो इस क्षेत्र में सबसे अधिक नुकसानों में से एक है।” रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि स्वास्थ्य और शिक्षा में असमानता में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन आय और लैंगिक विषमताएं (Gender Disparities) अभी भी काफी गहरी हैं। महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व अब भी पीछे है।
वहीं, सिविकस मॉनिटर (Civicus Monitor) ने भारत के नागरिक स्थान (Civic Space) की रेटिंग को ‘बाधित’ (Obstructed) से घटाकर ‘दमित’ (Repressed) कर दिया है। दुनिया में कुल 49 देश ऐसे हैं जिन्हें यह रेटिंग दी गई है। यह दर्जा उन देशों को दिया जाता है जहां सत्ता में बैठे लोग नागरिक अधिकारों पर भारी कानूनी और व्यावहारिक प्रतिबंध लगाते हैं।
वैश्विक शक्ति और स्वतंत्रता में गिरावट
लोवी इंस्टीट्यूट का एशिया पावर इंडेक्स देशों की ‘हार्ड पावर’ को मापता है। इसमें भारत का स्कोर 41.5 से गिरकर 39.1 हो गया है, जिसके चलते भारत ने अपना “मेजर पावर” (प्रमुख शक्ति) का दर्जा खो दिया है। इंस्टीट्यूट का कहना है कि अपने उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले भारत क्षेत्र में उम्मीद से कम प्रभाव डाल पा रहा है। 2024 में भारत का ‘नेगेटिव पावर गैप’ इस इंडेक्स की शुरुआत के बाद से सबसे बड़ा था।
फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ कानून के शासन, राजनीतिक बहुलवाद, चुनाव और नागरिक स्वतंत्रता पर नजर रखती है। 2014 में भारत को 77 की रेटिंग मिली थी और इसे “स्वतंत्र” (Free) माना गया था। 2025 में यह रेटिंग घटकर 63 रह गई और भारत को डिमोट करके “आंशिक रूप से स्वतंत्र” (Partly Free) की श्रेणी में डाल दिया गया। फ्रीडम हाउस ने टिप्पणी की कि यद्यपि भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र है, लेकिन सरकार ने भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया है, जिससे मुस्लिम आबादी प्रभावित हुई है। (शुरुआत में सरकार ने इन रिपोर्टों पर नाराजगी जताई थी, लेकिन बाद में टिप्पणी करना बंद कर दिया)।
कानून का शासन और खुशहाली
वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट का ‘रूल ऑफ लॉ इंडेक्स’ किसी भी देश की न्याय प्रणाली, मौलिक अधिकार, भ्रष्टाचार और सुरक्षा का आकलन करता है। इस मोर्चे पर भारत 2014 में 66वें स्थान पर था, जो अब गिरकर वैश्विक स्तर पर 86वें स्थान पर पहुंच गया है।
इसी तरह, संयुक्त राष्ट्र के ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क’ द्वारा जारी वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (World Happiness Report), जो जीडीपी, सामाजिक सहयोग और जीवन जीने की आजादी जैसे पैमानों को देखती है, में भारत 2014 के 111वें स्थान से खिसककर 118 पर आ गया है।
प्रेस की आजादी और आर्थिक स्वतंत्रता
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 2014 में 140वें स्थान पर था, जो आज गिरकर 151 पर आ गया है। संस्था का कहना है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और मीडिया के स्वामित्व के केंद्रीकरण के कारण ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है।
वहीं, कैटो इंस्टीट्यूट के ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स में भारत 87 (2014) से गिरकर 110 पर आ गया है।
विश्व आर्थिक मंच (WEF) के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भी भारत 2014 के 114वें स्थान से गिरकर आज 131वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके पीछे का कारण संसद में महिला प्रतिनिधित्व का 14.7% से घटकर 13.8% होना और मंत्री पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी का 6.5% से गिरकर 5.6% होना बताया गया है।
भ्रष्टाचार और भूख के आंकड़े
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक), जिसकी कभी भारतीय मीडिया में खूब चर्चा होती थी, अब ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहता। इस इंडेक्स में भारत 2014 में 85वें स्थान पर था, जो अब फिसलकर 96वें स्थान पर आ गया है।
हेरिटेज फाउंडेशन के ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स में भारत 120 (2014) से 128 पर आ गया है। इसका कारण सुधारों की धीमी गति और नियामक ढांचे (Regulatory Framework) का बोझिल होना बताया गया है।
सबसे चिंताजनक आंकड़े ग्लोबल हंगर इंडेक्स (भुखमरी सूचकांक) के हैं। 2014 में भारत 76 देशों में 55वें स्थान पर था। आज 123 देशों में भारत 102वें स्थान पर है। रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को “गंभीर” बताया गया है। जब भारत की रैंकिंग गिरने लगी, तो 2021 में सरकार ने संसद में कहा था कि यह संभव नहीं है कि भारतीय भूखे हों और हमें ऐसी रिपोर्टों के प्रति संवेदनशील नहीं होना चाहिए।
इन वैश्विक सूचकांकों के प्रति हमारा दृष्टिकोण समय के साथ बदलता रहा है। शुरुआत में, हमने माना था कि सुशासन से सब ठीक हो जाएगा। फिर यह निष्कर्ष निकाला गया कि इन संस्थाओं का डेटा गलत है या वे हमारे प्रति पूर्वाग्रह रखते हैं। और अंत में, यह तय किया गया कि ऐसी खबरों को बस नजरअंदाज कर दिया जाए, भले ही डेटा आता रहे।
मुख्यधारा के मीडिया में इन विषयों पर चर्चा की कमी के बीच, अब यह आम नागरिक पर निर्भर है कि वह खुद इन आंकड़ों को देखे और समझे कि ‘न्यू इंडिया’ किस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
उक्त आर्टिकल मूल रूप से डेक्कन क्रोनिकल वेबसाइट द्वारा प्रकाशित की गई है. जिसे द वायर न्यूज वेबसाइट द्वारा प्रकाशित किया गया है.
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