नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट और अडिग है – पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्रों की वापसी ही मुख्य मुद्दा है। विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को यह दोहराया। यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोमवार रात के संबोधन से सम्बंधित है।
विदेश मंत्रालय ने यह भी साफ किया कि भारत इस मुद्दे को केवल द्विपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाना चाहता है – भले ही पाकिस्तान ने पहले मध्यस्थता की मांग की हो और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दो बार इसे लेकर पेशकश की हो।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने नियमित प्रेस वार्ता में कहा, “जम्मू-कश्मीर पर भारत की लंबे समय से चली आ रही राष्ट्रीय नीति है कि इससे जुड़े सभी मुद्दे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रूप से हल किए जाएं।”
उन्होंने आगे कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, एकमात्र लंबित मुद्दा पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए क्षेत्रों को खाली कराना है।”
प्रधानमंत्री का सख्त संदेश: “बातचीत केवल आतंक और पीओके पर होगी”
सोमवार रात ऑपरेशन सिंदूर – जो कि पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई थी – के बाद राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि कश्मीर पर किसी भी तरह की बातचीत केवल पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) की वापसी को लेकर ही होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा, “आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते… आतंक और व्यापार एक साथ नहीं हो सकते… आतंक और पानी एक साथ नहीं बह सकते।”
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि पाकिस्तान की ओर से सिंधु जल संधि को फिर से सक्रिय करने की कोशिशें भारत को स्वीकार्य नहीं हैं।
उन्होंने दो टूक कहा, “अगर पाकिस्तान से कभी बातचीत हुई, तो वह केवल आतंकवाद और पीओके पर ही होगी।”
प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान और उससे जुड़े आतंकी संगठनों को भारत की नई सुरक्षा नीति को गंभीरता से लेना होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पहलगाम जैसी घटना दोहराई गई, तो भारत की प्रतिक्रिया बेहद कठोर और निर्णायक होगी। उस हमले में लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी आतंकियों ने 26 लोगों की जान ली थी, जिनमें अधिकतर नागरिक थे।
वर्षों से कायम है भारत का स्पष्ट कश्मीर नीति
भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि कश्मीर से संबंधित कोई भी बातचीत पाकिस्तान से तभी होगी जब वह अपने अवैध कब्जे वाले क्षेत्रों की वापसी पर चर्चा के लिए तैयार हो। साथ ही, यह वार्ता किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के बिना, केवल द्विपक्षीय रूप में होनी चाहिए।
हालांकि, समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यस्थता के प्रस्ताव सामने आते रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने पहले कार्यकाल के दौरान और हाल ही में दोबारा मध्यस्थता की पेशकश की। हालिया सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने संघर्षविराम का श्रेय खुद को देते हुए कहा कि वह “हजार वर्षों से चले आ रहे इस संघर्ष को सुलझाने में मदद करना चाहते हैं।”
पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया, लेकिन भारत ने हमेशा की तरह इसे ठुकरा दिया।
2019 में भी ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने के लिए कहा था। तब भारत ने तत्काल इस दावे का खंडन किया था और दोहराया था कि पाकिस्तान से कोई भी बातचीत केवल द्विपक्षीय रूप से ही हो सकती है।
भारत की सख्त प्रतिक्रिया के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय को स्पष्टीकरण देना पड़ा और उन्होंने कहा कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, और अमेरिका तभी मदद करेगा जब दोनों पक्ष इसके लिए तैयार हों।
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