नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) 26 अगस्त को एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाने जा रहा है, जिसमें उन चुनौतियों की समीक्षा की जाएगी जिनका सामना भारतीय निर्यातकों को अमेरिका में बढ़ी हुई आयात-शुल्क दरों के कारण करना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस अहम बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी करेंगे।
बुधवार से अमेरिकी बाजार में प्रवेश करने वाले भारतीय उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ़ लगने जा रहा है। वॉशिंगटन ने मौजूदा शुल्क को दोगुना कर दिया है, जिससे भारतीय कंपनियों पर लागत का दबाव और बढ़ जाएगा।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने हाल के हफ्तों में निर्यातकों और एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल्स से बातचीत की है। इन चर्चाओं में सामने आया है कि पहले से लागू 25% शुल्क ने ही कंपनियों के मुनाफे की मार्जिन कम कर दी थी और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर डाला था।
सरकार अब उन विकल्पों पर विचार कर रही है जिनमें व्यापक आर्थिक पैकेज की बजाय चुनिंदा उद्योगों को ही विशेष राहत दी जाए।
निर्यातकों ने पहले आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ECLGS) की मांग रखी थी, जिसके तहत बिना गारंटी के वर्किंग कैपिटल और सरकार समर्थित जोखिम कवरेज मिल सके। हालांकि, अधिकारियों का मानना है कि सेक्टर-विशिष्ट राहत ज्यादा प्रभावी हो सकती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, कई माइक्रो-फर्म्स ने संकेत दिया है कि उद्योगवार क्रेडिट लाइन और गारंटी-समर्थित ऋण उनके लिए अधिक उपयोगी साबित होते हैं। इसी के साथ क्लस्टर-आधारित वर्किंग कैपिटल फंड पर भी गंभीरता से चर्चा चल रही है, ताकि नकदी की दिक्कत कम हो सके।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि निर्यात-उन्मुख इकाइयों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (SMEs) को बचाना फिलहाल रणनीति का अहम हिस्सा है, क्योंकि वे बाहरी झटकों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
मंगलवार को होने वाली बैठक में भारत की प्रतिक्रिया की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जाएगा, ताकि निर्यातक नए शुल्क बढ़ोतरी से निपटने की तैयारी कर सकें।
विशेषज्ञों का मानना है कि 50% अमेरिकी टैरिफ़ भारतीय निर्यातकों के मुनाफे को और ज्यादा कम कर सकता है, सप्लाई चेन में रुकावट पैदा कर सकता है और कपड़ा, चमड़ा, इंजीनियरिंग गुड्स से लेकर स्पेशलिटी केमिकल्स तक कई प्रमुख क्षेत्रों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
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