साल 1971 में भारत की शीर्ष 30 दवा कंपनियों की कुल बिक्री 1,310 मिलियन रुपये थी। उस दौर में इनमें से 24 कंपनियों का मुख्यालय विदेशों में था और वे करीब 70% बाजार पर काबिज थीं। लेकिन 53 साल बाद, यानी 2024 में, तस्वीर पूरी तरह बदल गई। अब इन शीर्ष 30 कंपनियों की बिक्री 1,661.7 बिलियन रुपये तक पहुंच गई है और इस बार केवल छह विदेशी कंपनियों के पास 15% बाजार हिस्सेदारी रह गई।
यह बदलाव न सिर्फ भारत को वैश्विक फार्मा शक्ति बनाने में मददगार साबित हुआ, बल्कि देश को तीसरे सबसे बड़े विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित किया। आज भारत दुनिया की 20% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है। इस सफर को ‘टेक्नोक्रेट आंत्रप्रेन्योरशिप’ यानी तकनीकी विशेषज्ञता और उद्यमिता के अनूठे मेल का उदाहरण बताया गया। यह बात इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद (IIMA) के प्रोफेसर चिन्मय तुम्बे ने रखी।
प्रोफेसर तुम्बे ने शुक्रवार को आयोजित चौथे इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन इंडियन बिजनेस एंड इकोनॉमिक हिस्ट्री में ‘टेक्नोक्रेटिक आंत्रप्रेन्योरशिप, पेटेंट कानून और भारतीय फार्मा उद्योग (1920-2025)’ विषय पर विचार रखे।
भारत फार्मा आर्काइव्स प्रोजेक्ट
उन्होंने बताया कि भारतीय दवा उद्योग की विकास यात्रा को संजोने के लिए ‘इंडिया फार्मा आर्काइव्स’ नामक प्रोजेक्ट पर काम जारी है। इसमें 60 से अधिक दिग्गज हस्तियों — संस्थापकों, सीईओ और चेयरमैनों — से मिली मौखिक कहानियां और अहम दस्तावेज शामिल किए जा रहे हैं। यह देश में अपनी तरह की पहली पहल है और जल्द ही इसे आम जनता के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
दिग्गज टेक्नोक्रेट आंत्रप्रेन्योर्स
प्रोफेसर तुम्बे ने इस क्षेत्र के पायनियर वैज्ञानिकों और उद्यमियों का उल्लेख किया, जिनमें पी.सी. रे, विक्रम साराभाई, यूसुफ हमीद और के. अंजी रेड्डी शामिल हैं। इन सभी ने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी और तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ व्यावसायिक समझ भी दिखाई।
भारतीय फार्मा सेक्टर का टर्निंग पॉइंट
उन्होंने भारतीय दवा उद्योग की सफलता का बड़ा श्रेय पेटेंट अधिनियम, 1970 को दिया। इस कानून ने ‘रिवर्स इंजीनियरिंग’ और जेनेरिक दवाओं के उत्पादन का रास्ता खोला। हालांकि ऐसे कानून उस समय कई देशों में बने या पहले से लागू थे, लेकिन भारत की कहानी को अलग बनाने वाला तत्व था — इस क्षेत्र में पहली पीढ़ी के उद्यमियों का योगदान।
गुजरात का योगदान
गुजरात के संदर्भ में प्रो. तुम्बे ने कहा कि वडोदरा की एलेम्बिक कंपनी 1920 से लेकर 2024 तक लगातार शीर्ष 30 दवा कंपनियों में बनी रही। साथ ही, आज राज्य की कई फार्मा कंपनियों का प्रबंधन दूसरी और तीसरी पीढ़ी संभाल रही है।
यह भी पढ़ें-











