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सरदार पटेल की जन्मस्थली करमसद में खुला भारत का पहला ‘बायोएथिक्स सेंटर’, अब मेडिकल एथिक्स की पढ़ाई में आएगा बड़ा बदलाव

| Updated: November 19, 2025 12:20

सरदार पटेल के गांव करमसद में अब होगी नैतिकता की पढ़ाई, मेडिकल फील्ड में AI और डेटा प्राइवेसी की चुनौतियों से निपटने तैयार होंगे एक्सपर्ट्स

वडोदरा: भारत के ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी फौलादी नैतिकता और आदर्शों के लिए जाने जाते थे। अब, उनके पैतृक गांव करमसद में नैतिकता का एक नया अध्याय लिखा जाने वाला है। करमसद जल्द ही भारत के उस पहले केंद्र (Centre) का घर बनेगा, जो स्वास्थ्य सेवा (Healthcare) के क्षेत्र में जुड़े सभी पेशेवरों को ‘बायोएथिक्स’ (Bioethics) में प्रशिक्षित करेगा।

सरल शब्दों में समझें तो, बायोएथिक्स चिकित्सा के क्षेत्र में अपनाई जा रही नई तकनीकों से उत्पन्न होने वाले नैतिक, सामाजिक और कानूनी मुद्दों का एक व्यवस्थित अध्ययन है। भारत में यह विषय अभी भी अपने विकास के शुरुआती चरण में है।

भाईकाका यूनिवर्सिटी में हुई ऐतिहासिक शुरुआत

मंगलवार को करमसद स्थित भाईकाका यूनिवर्सिटी (BU) में देश के पहले बायोएथिक्स सेंटर का उद्घाटन किया गया। इस केंद्र की स्थापना ‘इंटरनेशनल चेयर इन बायोएथिक्स’ (ICB), पोर्टो, पुर्तगाल के तत्वावधान में की गई है। गौरतलब है कि भाईकाका यूनिवर्सिटी 2015 से ही ICB (जिसे पहले यूनेस्को बायोएथिक्स चेयर प्रोग्राम, हाइफा के नाम से जाना जाता था) की गुजरात इकाई की मेजबानी कर रहा है।

विशेषज्ञों की कमी को पूरा करेगा यह केंद्र

यह नया केंद्र ऐसे समय में शुरू किया गया है जब वैश्विक स्तर पर तो बायोएथिक्स का ढांचा मजबूत है, लेकिन भारत में यह अभी शैशवावस्था में है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में मेडिकल और क्लिनिकल एथिक्स के प्रशिक्षित पेशेवरों की भारी कमी है।

प्रमुखस्वामी मेडिकल कॉलेज, जहाँ यह संस्थान स्थापित है, की फार्माकोलॉजी की प्रोफेसर डॉ. बरना गांगुली ने इस मुद्दे पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने मेडिकल पाठ्यक्रम में नैतिकता और व्यावसायिकता को शामिल तो कर लिया है, लेकिन भारत में अभी भी मेडिकल और क्लिनिकल एथिक्स के योग्य विशेषज्ञों की कमी है।”

क्या होगा इस सेंटर में?

इस केंद्र को एक राष्ट्रीय संसाधन हब (Resource Hub) के रूप में विकसित करने की योजना है। यहाँ निम्नलिखित गतिविधियां संचालित होंगी:

  • सर्टिफिकेट कोर्स और फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम।
  • हैंड्स-ऑन वर्कशॉप (व्यावहारिक कार्यशालाएं)।
  • एमबीबीएस, नर्सिंग और अन्य स्वास्थ्य पाठ्यक्रमों में बायोएथिक्स मॉड्यूल को जोड़ने में अन्य संस्थानों की मदद करना।
  • नई स्वास्थ्य तकनीकों से जुड़ी नैतिक चुनौतियों पर शोध करना।

डॉ. गांगुली ने बताया, “यह केंद्र प्रशिक्षकों (Trainers), शिक्षकों और छात्रों की क्षमता निर्माण करेगा। हमने छोटे और लंबी अवधि के वर्कशॉप तैयार किए हैं, और यह कार्यक्रम राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर इच्छुक प्रतिभागियों के लिए खुला रहेगा।”

यह केंद्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बायोएथिक्स संगठनों के साथ मिलकर काम करने की योजना भी बना रहा है। इसके तहत संगोष्ठियां (Symposia) और वेबिनार आयोजित किए जाएंगे, अस्पतालों की एथिक्स कमेटियों को सहयोग दिया जाएगा और छात्रों व पेशेवरों के लिए केस स्टडीज का एक डिजिटल भंडार तैयार किया जाएगा।

AI और डेटा प्राइवेसी के दौर में बदल रहा है बायोएथिक्स

आज वैश्विक स्तर पर बायोएथिक्स का दायरा तेजी से बदल रहा है।

हेल्थकेयर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जेनेटिक एडिटिंग, डेटा प्राइवेसी की चिंताएं और जीवन के अंत में स्वायत्तता (end-of-life autonomy) जैसे मुद्दे अब केंद्र में हैं।

जहाँ कई विकसित देशों में AI एथिक्स, जीनोमिक्स और रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी के लिए विशेष नियामक ढांचे और ट्रेनिंग मौजूद हैं, वहीं भारत अभी एथिक्स एजुकेशन और क्लिनिकल निर्णय लेने की बुनियादी क्षमता विकसित करने में लगा है।

डिजिटल हेल्थ, बिग डेटा और पब्लिक हेल्थ इक्विटी (समानता) से जुड़ी बहस भारत में अभी जड़ें जमाना शुरू कर रही है। यह अंतर इस बात को रेखांकित करता है कि एथिक्स कमेटियों को मजबूत करने, फैकल्टी ट्रेनिंग का विस्तार करने और स्वास्थ्य विज्ञान के पाठ्यक्रमों में उभरते नैतिक विषयों को शामिल करने की कितनी सख्त आवश्यकता है।

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