राजकोट: गुजरात के कच्छ के रण और दूर-दराज के गांवों में सन्नाटे के बीच सुरक्षा की एक नई और मजबूत दीवार तैयार की जा रही है। यह दीवार ईंट-पत्थर की नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक और जन-भागीदारी की है। संवेदनशील सीमावर्ती जिले कच्छ के ग्रामीणों ने अपनी मेहनत की कमाई से हजारों सीसीटीवी कैमरे लगवाकर सुरक्षा को एक नया आयाम दिया है।
आमतौर पर अहमदाबाद और सूरत जैसे महानगरों में पुलिसिंग और नागरिक सुविधाओं के लिए कैमरों का जाल बिछा होता है, लेकिन गुजरात के ग्रामीण इलाके अक्सर इस तकनीक से अछूते रह जाते थे। अब कच्छ के लोगों ने इस धारणा को बदल दिया है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदली तस्वीर
सीमावर्ती जिले में सुरक्षा की यह कमी तब और स्पष्ट रूप से खली, जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया गया। इसके बाद पुलिस और जनता ने मिलकर इस खाई को भरने का बीड़ा उठाया।
पिछले आठ महीनों के भीतर, कच्छ पुलिस के प्रयासों और जनसहयोग से जिले के लगभग 75% गांवों में निगरानी कैमरे लगा दिए गए हैं। सबसे खास बात यह है कि यह पूरा अभियान मुख्य रूप से जनता द्वारा दिए गए चंदे (डोनेशन) से संभव हो पाया है।
पाकिस्तान सीमा पर कड़ी निगरानी की जरूरत
कच्छ जिला पाकिस्तान के साथ जल और थल, दोनों सीमाएं साझा करता है। ऐसे में यहाँ पुलिस, सीमा सुरक्षा बल (BSF) और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को हर पल चौकन्ना रहना पड़ता है। यहाँ के सीमावर्ती गांव बेहद दुर्गम हैं और आबादी भी बहुत कम है। स्थानीय मुखबिरों के होने के बावजूद, घुसपैठियों का पता लगाना सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी रहती थी।
इस समस्या से निपटने के लिए पूर्वी कच्छ पुलिस ने ‘सेफ ईस्ट कच्छ कैंपेन’ (सुरक्षित पूर्वी कच्छ अभियान) की शुरुआत की, ताकि ग्राम स्तर पर निगरानी को मजबूत किया जा सके।
एसपी सागर बागमार ने क्या कहा?
कच्छ (पूर्व) के पुलिस अधीक्षक (SP) सागर बागमार ने इस मुहिम के बारे में बताया, “गांवों के प्रवेश और निकास द्वार (Entry and Exit points) और बाजारों को कैमरों से कवर करना बेहद जरूरी था। इसके लिए पुलिस ने अलग-अलग थाना क्षेत्रों में ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं और राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में उनसे आर्थिक सहयोग की अपील की।”
इस पहल का असर जमीनी स्तर पर दिख रहा है। अब ग्राम पंचायत कार्यालयों में कैमरों की लाइव फीड उपलब्ध है। इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर पुलिस भी फुटेज की जांच कर सकती है। पंचायत सदस्य भी इन फीड्स पर नजर रखते हैं और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत पुलिस को देते हैं।
ग्रामीणों ने अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार कैमरे खरीदे और उन्हें पुलिस द्वारा चिन्हित जगहों—जैसे संवेदनशील बॉर्डर के रास्ते, धार्मिक स्थल और भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर लगवाया।
आंकड़े बता रहे सफलता की कहानी
इस अभियान की शुरुआत भारत-पाक सीमा पर स्थित बालासर और खादिर गांवों से हुई थी। पूर्वी कच्छ के कुल 300 गांवों में से 221 गांव अब पूरी तरह से निगरानी में हैं, जहाँ 2,600 से अधिक कैमरे लगाए जा चुके हैं। अगले तीन महीनों में बाकी बचे गांवों को भी कवर करने के लिए 1,200 और कैमरे लगाने की योजना है।
एसपी बागमार ने बताया कि इन कैमरों का फायदा सिर्फ घुसपैठ रोकने तक सीमित नहीं है। हाल ही में हुई हत्या की वारदातों और मंदिरों में चोरी जैसे अपराधों को सुलझाने में भी इन कैमरों ने अहम भूमिका निभाई है।
पश्चिमी कच्छ में भी यही जज्बा
सिर्फ पूर्वी ही नहीं, पश्चिमी कच्छ में भी समुदाय के सहयोग से ऐसा ही अभियान चल रहा है। कच्छ (पश्चिम) के पुलिस अधीक्षक विकास सुंडा ने जानकारी दी, “अब तक हमने 25 पुलिस स्टेशनों के अंतर्गत आने वाले संवेदनशील स्थानों पर 171 कैमरे स्थापित किए हैं।”
किसानों और आम लोगों का अभूतपूर्व समर्थन
इस अभियान को जमीनी स्तर पर भारी समर्थन मिला है। बेला गांव के एक किसान, वेलजी दैया ने सुरक्षा के लिए तीन कैमरे दान किए। उनका कहना है कि जब पुलिस ने यह प्रस्ताव रखा, तो ग्रामीणों ने बिना किसी झिझक के इसे स्वीकार कर लिया, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनकी और देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है।
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