बीते छह महीनों में महाराष्ट्र की बीजेपी नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सात बड़े फैसलों को वापस लिया है। ये फैसले, जिनमें आय और जाति आधारित आरक्षण, स्कूल यूनिफॉर्म, मिड-डे मील में मिठाई, परीक्षा हॉल टिकट पर जाति उल्लेख, और तीसरी भाषा के रूप में हिंदी शामिल हैं—अब आलोचना के घेरे में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये नीतियां “बिना पर्याप्त विचार” और “परामर्श के अभाव” में लागू की गईं।
इनमें से छह फैसले राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्रालय के अधीन आते हैं, जिसे वर्तमान में दादा भुसे संभाल रहे हैं। उन्होंने दिसंबर 2024 में दीपक केसरकर की जगह ली थी। एक अन्य प्रमुख यू-टर्न निजी मेडिकल कॉलेजों में 10% EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) आरक्षण से जुड़ा है।
पूर्व मंत्री केसरकर ने मीडिया से बातचीत में फैसलों की वापसी को “जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में आई चुनौतियों” का नतीजा बताया, जबकि मौजूदा मंत्री भुसे ने कहा कि “प्रतिक्रिया के आधार पर आवश्यक समायोजन किए गए हैं”।
सात फैसले जो सरकार को लेने पड़े वापस
1. प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी को तीसरी भाषा बनाना
16 अप्रैल 2024 को सरकार ने पहली से पाँचवीं तक की कक्षाओं में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया। विरोध बढ़ने पर 17 जून को इसे वैकल्पिक किया गया। लेकिन विरोध जारी रहा, जिसके बाद 23 जून को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सभी आदेशों को रद्द कर 29 जून को एक नई कमेटी बनाई।
2. अल्पसंख्यक कॉलेजों में आरक्षण लागू करना
मई 2024 में पहली बार पूरे राज्य में FYJC के लिए केंद्रीकृत ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया लागू की गई जिसमें अल्पसंख्यक ट्रस्ट द्वारा संचालित जूनियर कॉलेजों में भी SC/ST/OBC आरक्षण शामिल किया गया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 जून को इस पर रोक लगाई और 23 जून को सरकार ने फैसला रद्द कर दिया।
3. “एक राज्य, एक यूनिफॉर्म” नीति
मई 2023 में शुरू की गई राज्य भर में एक जैसी यूनिफॉर्म नीति को अप्रैल 2024 में वापस ले लिया गया। यूनिफॉर्म की गुणवत्ता और डिलीवरी में देरी के चलते अभिभावकों में नाराजगी थी। दिसंबर 2024 में इसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया।
4. मिड-डे मील में मिठाई शामिल करना
11 जून 2024 को सरकार ने तीन-कोर्स मिड-डे मील की घोषणा की जिसमें अंकुरित अनाज और मिठाई शामिल थे। लेकिन जनवरी 2025 में कहा गया कि मिठाई तभी दी जाएगी जब स्कूल प्रबंधन इसके लिए जनता से पैसा जुटाए।
5. पाठ्यपुस्तकों में खाली पन्ने
मार्च 2023 में निर्णय लिया गया कि कक्षा 2 से 8 तक की किताबों में हर अध्याय के बाद खाली पन्ने दिए जाएंगे ताकि बच्चों को अलग से नोटबुक न ले जानी पड़े। लेकिन यह योजना एक ही शैक्षणिक वर्ष (2024-25) में फेल हो गई और 28 जनवरी 2025 को वापस ले ली गई।
6. HSC परीक्षा हॉल टिकट पर जाति उल्लेख
11 जनवरी 2025 को जारी हॉल टिकट में छात्रों की जाति का उल्लेख था। जबरदस्त विरोध के बाद 18 जनवरी को नया आदेश जारी कर हॉल टिकट रद्द किए गए और 23 जनवरी को संशोधित हॉल टिकट दिए गए।
7. निजी मेडिकल कॉलेजों में 10% EWS आरक्षण
23 जुलाई 2025 को राज्य की मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया की जानकारी पुस्तिका में 10% EWS आरक्षण शामिल किया गया। छात्रों और कॉलेजों की आपत्ति के बाद 30 जुलाई को सरकार ने आदेश वापस ले लिया और कहा कि अतिरिक्त सीटें मिलने पर ही आरक्षण लागू होगा।
विशेषज्ञों की राय: “नीतियों में संवाद का अभाव”
राज्य के पूर्व शिक्षा निदेशक वसंत कल्पांडे ने कहा कि ये बार-बार होने वाले यू-टर्न नीति और ज़मीनी हकीकत के बीच संवादहीनता को दर्शाते हैं। “एक विविध राज्य में टॉप-डाउन अप्रोच काम नहीं करता,” उन्होंने कहा।
बसंती रॉय, जो राज्य शिक्षा विभाग में 30 वर्षों तक कार्यरत रहीं, ने कहा कि किसी भी नई नीति को पूरे राज्य में लागू करने से पहले उसे पायलट स्तर पर टेस्ट किया जाना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी, “बिना टेस्टिंग के, रिवर्सल लगभग तय है।”
मंत्री का बचाव: “हर निर्णय परफेक्ट नहीं हो सकता”
पूर्व मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि सभी फैसले “छात्र केंद्रित” थे और उचित परामर्श के बाद लिए गए थे। उन्होंने माना कि जमीनी चुनौतियां थीं, लेकिन उन्हें सुधारों के माध्यम से सुलझाया जा सकता था।
वर्तमान मंत्री दादा भुसे ने कहा कि नीति-निर्माण छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और स्कूलों की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे “कॉपी फ्री परीक्षा अभियान” ने नकल पर लगाम लगाने में मदद की।
भुसे ने स्वीकार किया, “सार्वजनिक नीति में हर चीज़ निर्बाध नहीं हो सकती। मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूँ, लेकिन शहरी चुनौतियों को भी समझता हूँ। यही संतुलन नीति निर्धारण में मदद करता है।”
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