गुजरात के कच्छ जिले में भुज शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित मतानोमढ़ गांव हमेशा से कठिन जीवन परिस्थितियों के लिए जाना जाता रहा है। इर्द-गिर्द कांटेदार झाड़ियां, बंजर जमीन और कठोर मौसम इसे खेती या बड़े पैमाने पर आबादी बसाने के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं। लेकिन यही गांव अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के मंगलयान-2 मिशन से पहले एक अहम परीक्षण स्थल बन सकता है।
हाल ही में अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (SAC), सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (SPPU) और लखनऊ स्थित बिरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने यह पुष्टि की है कि यहां पाए गए जैरोसाइट (Jarosite) खनिज की उम्र लगभग 5.5 करोड़ साल है। इसका कालखंड पैलियोसीन युग (Paleocene period) से मेल खाता है।
मंगल ग्रह से जुड़ाव का सुराग
मतानोमढ़ की कुछ चट्टानों में मिले इस खनिज की उम्र से यह संकेत मिलता है कि करोड़ों साल पहले धरती और मंगल पर समान भूवैज्ञानिक घटनाएं घटी होंगी। शोधकर्ताओं का मानना है कि कच्छ का यह इलाका कभी वैसा ही रासायनिक और पर्यावरणीय स्वरूप रखता था जैसा कि आज मंगल ग्रह पर माना जाता है। इसी कारण यहां मंगल की सतह, खनिज संरचना और जैव-रसायन पर प्रयोग करने के लिए उत्कृष्ट परिस्थितियां मिल सकती हैं।
इस स्थान पर भविष्य में रोवर संचालन, उपकरण परीक्षण, ड्रिलिंग और भू-रसायन संबंधी प्रयोग किए जा सकते हैं। पिछले महीने इन निष्कर्षों को जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित किया गया।
मुख्य शोधकर्ता आदित्य धरैया, जो अध्ययन के समय SPPU के भूविज्ञान विभाग से जुड़े थे, का कहना है— “हमारे निष्कर्ष न केवल पृथ्वी और मंगल के भूगर्भीय इतिहास को जोड़ते हैं, बल्कि खगोलजीव विज्ञान (Astrobiology), खनिज खोज और भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए भी एक खाका तैयार करते हैं।”
लद्दाख और कच्छ में समानांतर शोध
दिलचस्प बात यह है कि भारत में यह अकेला स्थान नहीं है जहां मंगल जैसी परिस्थितियों का अध्ययन हो रहा है। लद्दाख के त्सो कर घाटी (समुद्र तल से 4,500 मीटर ऊंचाई पर) में ISRO ने HOPE (Himalayan Outpost for Planetary Exploration) मिशन के तहत प्रयोग किए हैं। अगस्त में यहां दो शोधकर्ताओं ने 10 दिन तक मंगल जैसे कृत्रिम निवास स्थल में रहकर प्रयोग किए। वहां की ऑक्सीजन की कमी, निम्न वायुदाब और शून्य से नीचे तापमान ने मंगल जैसे हालात की झलक दी।
जहां लद्दाख का स्थल मंगल के पर्यावरणीय पहलुओं की नकल करता है, वहीं कच्छ का मतानोमढ़ मंगल की भूगर्भीय और खनिज संरचना को समझने का अवसर देता है।
भारत में अन्य स्थलों की तुलना
मतानोमढ़ में जैरोसाइट की खोज सबसे पहले 2016 में SAC की टीम ने की थी। इसी अवधि में इसकी मौजूदगी केरल के वर्कला क्लिफ्स पर भी दर्ज की गई थी। हालांकि, केरल का यह स्थान लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जबकि मतानोमढ़ अपनी दूरस्थ और शांत स्थिति के कारण वैज्ञानिक अध्ययन के लिए ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है।
जैरोसाइट के भंडार भारत के अलावा मैक्सिको, कनाडा, जापान, स्पेन, अमेरिका के यूटा और कैलिफोर्निया में भी मिले हैं।
मंगल पर पानी का प्रमाण
धरती पर जैरोसाइट तब बनता है जब ऑक्सीजन, आयरन, सल्फर और पोटैशियम से भरपूर खनिज जल के संपर्क में आते हैं। मंगल पर इस खनिज की खोज वहां पानी की मौजूदगी का बड़ा सबूत माना गया।
2004 में NASA के ‘ऑपर्च्युनिटी मिशन’ ने पहली बार मंगल के Meridiani Planum लैंडिंग साइट पर जैरोसाइट के निशान दर्ज किए थे। बाद में यह कई अन्य स्थानों पर भी पाया गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि लाल ग्रह पर यह खनिज व्यापक रूप से मौजूद है।
धरैया बताते हैं— “धरती पर जैरोसाइट अवसादी चट्टानों में बहुत कम मिलता है। यह आमतौर पर ज्वालामुखी गतिविधि से जुड़ा होता है। करोड़ों साल पहले कच्छ में जब ज्वालामुखीय गतिविधियां चरम पर थीं, तब सल्फरयुक्त राख समुद्री जल में मिली और जैरोसाइट के निर्माण में सहायक बनी।”
मतानोमढ़ में जैरोसाइट मिट्टी में महीन परतों के रूप में मिला है। पानी के संपर्क में आने पर यह मिट्टी फूल जाती है। प्रयोगशालाओं में छानने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि यहां का सल्फेट और मिट्टी का मिश्रण मंगल पर पाए गए नमूनों से बेहद मिलता-जुलता है।
भविष्य के मिशनों के लिए महत्व
वैज्ञानिकों का मानना है कि मतानोमढ़ से मिले जैरोसाइट नमूनों पर गहन अध्ययन करने से मंगल ग्रह की भू-गर्भीय प्रगति और वहां के रासायनिक बदलावों को समझा जा सकता है। इसके अलावा, जैरोसाइट जैसे सल्फेट खनिजों में जीवन-संबंधी अणुओं और तत्वों को संरक्षित रखने की क्षमता होती है। इसलिए यह शोध भविष्य में मंगल पर जीवन की संभावनाओं की खोज और वहां की मिशन रणनीतियां बनाने में मददगार साबित हो सकता है।
संरक्षण की चुनौती
शोधकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इस ऐतिहासिक स्थल को प्राकृतिक और मानवीय खतरों से बचाने की आवश्यकता है। वर्तमान में यह क्षेत्र जलभराव की समस्या से जूझ रहा है और आसपास मौजूद कोयला खदानें भी इसके खनिज भंडार के लिए खतरा पैदा करती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मतानोमढ़ को भारत की महत्त्वपूर्ण ‘प्लैनेटरी जियो-हेरिटेज साइट’ घोषित किया जाना चाहिए।
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