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NDA की संसदीय दल की बैठक: मोदी ने RSS को दिया संकेत कि उन्हें संघ परिवार से बाहर भी है समर्थन

| Updated: August 6, 2025 13:05

NDA की संसदीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा के बहाने RSS को भेजा गया एक सटीक राजनीतिक संदेश — क्या मोदी अब भी संघ परिवार से ऊपर हैं?

5 अगस्त, मंगलवार की सुबह संसद भवन में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की बैठक हुई। यह तारीख भारतीय राजनीति में एक गहरी स्मृति के रूप में दर्ज है क्योंकि इसी दिन 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त कर दी थी।

यही तारीख बहुलतावादी भारत के लिए एक और कारण से भी महत्वपूर्ण है। ठीक एक साल बाद, 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के भूमिपूजन के दौरान स्वयं पूजा-अर्चना की थी। जबकि इससे पहले 9 नवंबर 1989 को शिलान्यास की औपचारिकता पहले ही पूरी हो चुकी थी।

जिस तरह अयोध्या में मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में मोदी ने व्यक्तिगत हस्ताक्षर किए, उसी तरह मंगलवार को NDA की बैठक में भी उन्हें “दृढ़ संकल्प, दूरदर्शी नेतृत्व और निर्णायक कमान” के लिए प्रशंसा पत्र सौंपा गया।

बैठक में यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री ने “देशवासियों के दिलों में एकता और गर्व की भावना को पुनर्जीवित किया है”।

2024 लोकसभा चुनाव के बाद NDA की सिर्फ दूसरी बैठक

इस बैठक का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह 2024 के आम चुनावों के बाद NDA की केवल दूसरी संसदीय दल की बैठक थी। इससे पहले 7 जून 2024 को पहली बैठक हुई थी, जिसमें औपचारिक रूप से नरेंद्र मोदी को गठबंधन नेता चुना गया था ताकि वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकें।

2014 से 2023 के बीच NDA लगभग निष्क्रिय स्थिति में रहा, क्योंकि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद BJP ने गठबंधन को केवल औपचारिकता के रूप में देखा। 15 मई 2023 को NDA की 25वीं वर्षगांठ भी बिना किसी आयोजन या बयान के बीत गई, जो इस उपेक्षा को और स्पष्ट करता है।

लेकिन जुलाई 2023 में जब विपक्षी INDIA गठबंधन और राजनीतिक विमर्श का प्रभाव बढ़ने लगा, तब BJP ने अचानक 39 छोटे-बड़े दलों को जोड़कर NDA को पुनर्जीवित किया और चुनाव अभियान का शंखनाद किया।

मोदी की एकल नेतृत्व शैली और NDA की हाशिए पर भूमिका

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने जिस प्रकार गुजरात में एकल नेतृत्व मॉडल अपनाया था, वही पैटर्न केंद्र में भी देखने को मिला। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में NDA में संयोजक होते थे, साप्ताहिक बैठकें होती थीं और सहयोगी दलों को विचार-विमर्श का हिस्सा बनाया जाता था। लेकिन आज न कोई संयोजक है, न कोई समन्वय समिति।

मोदी ने न केवल NDA को दरकिनार किया, बल्कि BJP की पारंपरिक सामूहिक निर्णय प्रणाली को भी खत्म कर दिया। जहां वाजपेयी हर सप्ताह संसद सत्र से पहले पार्टी सांसदों की बैठक करते थे, वहीं 4 जून 2024 के परिणाम आने के बाद से अब तक BJP संसदीय दल की कोई बैठक नहीं हुई है।

यहां तक कि BJP संसदीय बोर्ड की बैठक भी नहीं बुलाई गई, और मोदी को ‘औपचारिक’ रूप से दल का नेता तक नहीं चुना गया। अब पार्टी का संचालन भी कांग्रेस की तर्ज पर हाईकमान आधारित हो गया है, जहां निर्णय एक व्यक्ति की मर्जी से होता है।

संघ परिवार से संबंधों में दरार और राजनीतिक संकेत

BJP का आरंभ से ही RSS और अन्य सहयोगी संगठनों के साथ विचार-विमर्श पर आधारित रिश्ता रहा है। लेकिन मोदी के नेतृत्व में यह संबंध भी बदल गया। RSS ने मोदी को इसलिए स्वीकारा क्योंकि वे चुनावी रूप से सफल रहे, चाहे वह गुजरात में हों या केंद्र में।

लेकिन 2024 के चुनाव में ‘मोदी की गारंटी’ जैसा नारा असर नहीं दिखा पाया, और संघ ने भी चुनाव में खुलकर काम करने से परहेज किया। इसका परिणाम यह हुआ कि BJP बहुमत से नीचे आ गई।

इसके बाद मोदी ने मार्च 2025 में नागपुर जाकर संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ एक जनसभा की और नरम रुख दिखाया। लेकिन जल्द ही पहलगाम हमले जैसे मुद्दों पर आक्रामकता दिखाकर उन्होंने साफ कर दिया कि वे अब भी उसी स्वायत्त शैली में शासन करना चाहते हैं।

NDA बैठक के जरिए संघ को संदेश

5 अगस्त को NDA की बैठक बुलाकर मोदी ने दोहरा संदेश दिया। पहला, पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना और दूसरा, RSS को यह संकेत देना कि उन्हें सिर्फ संघ परिवार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

जैसा कि मई 2024 में जे.पी. नड्डा ने कहा था, “BJP अब संघ पर निर्भर नहीं है” – इस विचार को इस बैठक ने फिर से पुष्ट किया।

भले ही RSS ने मोदी को लेकर सहमति दिखाई हो, लेकिन यह टकराव अब और दिलचस्प हो गया है। क्या भारत की राजनीति मोदी मॉडल के तहत लोकतांत्रिक परंपराओं से और दूर जाएगी, या फिर एक नया संतुलन स्थापित होगा?

NDA के घटक दलों की चुप्पी और BJP की रणनीति

सबसे हैरानी की बात यह है कि NDA के अन्य सहयोगी दल BJP की ताकत कम होने के बावजूद भी अपने प्रभाव का उपयोग नहीं कर रहे। जनता ने सोचा था कि यह मोदी 3.0 सरकार नहीं बल्कि NDA 1.0 सरकार होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

इन सहयोगी दलों को BJP के अतीत को याद रखना चाहिए—कैसे उसने शिवसेना को कमजोर किया, और अब जेडीयू भी उसी राह पर है।

यह विषय किसी अन्य लेख में विस्तार से समझाया जा सकता है, लेकिन अभी के लिए यह स्पष्ट है कि 5 अगस्त की NDA बैठक न केवल संगठनात्मक रणनीति थी, बल्कि एक शक्तिशाली राजनीतिक संदेश भी।

लेखक: नीलांजन मुखोपाध्याय, जाने-माने पत्रकार और लेखक हैं। उनके प्रमुख पुस्तकों में ‘Narendra Modi: The Man, The Times’ और ‘The RSS: Icons of the Indian Right’ शामिल हैं। उक्त लेख मूल रूप से द वायर द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है

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