वडोदरा: क्या आप ऐसे कपड़े की कल्पना कर सकते हैं जो न सिर्फ आपको मच्छरों के काटने से बचाए, बल्कि सूरज की हानिकारक किरणों (UV Rays) और बैक्टीरिया से भी आपकी सुरक्षा करे? वो भी पूरी तरह से इको-फ्रेंडली तरीके से। वडोदरा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी (MSU) के शोधकर्ताओं ने इस सोच को हकीकत में बदल दिया है।
उन्होंने जड़ी-बूटियों से उपचारित (हर्बल-ट्रीटेड) ऐसा फैब्रिक तैयार किया है, जो आने वाले समय में हमारी सुरक्षात्मक कपड़ों को लेकर सोच बदल सकता है।
किसने किया यह कमाल?
यह इनोवेशन टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग फैकल्टी के टेक्सटाइल केमिस्ट्री विभाग में किया गया है। मास्टर्स के छात्र जयंत पाटिल ने इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया। उन्हें इस शोध में विभागाध्यक्ष भरत एच. पटेल और को-मेंटर देवांग पी. पंचाल का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
कैसे तैयार हुआ यह खास कपड़ा?
शोधकर्ताओं की टीम ने ‘पैड-ड्राई-क्योर’ (pad-dry-cure) तकनीक का इस्तेमाल करके सूती कपड़े (Cotton) में तुलसी, लेमनग्रास और नीम के अर्क को इन्फ्यूज किया है। जयंत पाटिल बताते हैं कि यह तकनीक एक सतत इंडस्ट्रियल प्रोसेस है, जिससे कपड़े के हर हिस्से पर यह मिश्रण एक समान रूप से चढ़ता है और इसका असर लंबे समय तक बना रहता है।
अस्पतालों और बच्चों के लिए वरदान
विभाग के हेड भरत एच. पटेल ने इस खोज के पर्यावरणीय और व्यावहारिक फायदों पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “नीम और तुलसी स्वास्थ्य और स्वच्छता (Hygiene) के लिए बेहतरीन हैं, जबकि लेमनग्रास ताजगी का अहसास कराता है।”
इस फैब्रिक का सबसे बड़ा उपयोग अस्पतालों में हो सकता है, जहाँ इसका इस्तेमाल एप्रन, पर्दे और बेडशीट बनाने में किया जा सकता है। इसके अलावा, छोटे बच्चों के लिए ‘बेबी केयर प्रोडक्ट्स’ में भी यह कपड़ा बेहद सुरक्षित और उपयोगी साबित होगा।
टेस्टिंग में मिले चौंकाने वाले नतीजे
टीम का दावा है कि इस कपड़े की जांच अंतरराष्ट्रीय मानकों (International Standards) पर की गई है। इसके रंग की गुणवत्ता को स्पेक्ट्रोफोटोमीटर से मापा गया। वहीं, बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता को परखने के लिए इसे ई. कोलाई (E. coli) और स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) जैसे संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ टेस्ट किया गया।
नतीजे बेहद शानदार रहे। यह कपड़ा बैक्टीरिया को खत्म करने में 98% तक प्रभावी पाया गया। सबसे खास बात यह है कि घर में सामान्य तौर पर 30 बार धोने (Washes) के बाद भी इसका असर बरकरार रहता है।
मच्छरों से सुरक्षा के लिए इसे ‘केज टेस्ट’ के जरिए परखा गया। इस कपड़े ने डेंगू, मलेरिया और जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों के खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध क्षमता दिखाई। इतना ही नहीं, यह कपड़ा धूप की तेज किरणों (UV Resistance) से भी सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत प्रदान करता है।
भविष्य की तैयारी
यह टीम अब इस टेक्नोलॉजी के लिए पेटेंट फाइल करने की तैयारी कर रही है। मंजूरी मिलने के बाद, वे इस ज्ञान को इंडस्ट्री पार्टनर्स के साथ साझा करने की योजना बना रहे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह विकास ‘नेक्स्ट-जेनरेशन’ कपड़ों की तरफ एक बड़ा कदम है, जहाँ हमारे रोजमर्रा के कपड़े ही बीमारियों, संक्रमण और पर्यावरणीय खतरों के खिलाफ ढाल का काम करेंगे।
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