जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की तस्वीरें, जिनमें वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा के दौरान सुरक्षा कर्मियों के पीछे नजर आ रहे हैं, ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) सरकार के विरोधियों को एक और मुद्दा थमा दिया है। विपक्ष का कहना है कि यह दृश्य बताता है कि अब्दुल्ला सरकार केंद्र के आगे झुक रही है, लेकिन इसके बदले उसे कुछ हासिल नहीं हो रहा।
अमित शाह 31 अगस्त और 2 सितंबर को जम्मू पहुंचे थे। उन्होंने बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया और कई उच्च स्तरीय बैठकों की अध्यक्षता की। इस दौरान शाह के साथ उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और भाजपा के नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा स्पष्ट रूप से दिखाई दिए, जबकि तस्वीरों में सीएम अब्दुल्ला कई बार पीछे खड़े नजर आए।
विपक्षी दलों का निशाना
पीडीपी नेता वहीद पारा ने कहा, “यह सिर्फ एक व्यक्ति का अपमान नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक संस्थान और जनता के जनादेश का अपमान है। मुख्यमंत्री का यही रवैया है कि शुरुआत से ही वह पूरी तरह झुके हुए हैं, और आज नतीजा सबके सामने है।”
पीडीपी की ही नेता इल्तिजा मुफ्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जम्मू में मुख्यमंत्री को मिलने वाला प्रोटोकॉल स्पष्ट रूप से गायब था। राजनीति अपनी जगह है, लेकिन वह चुने हुए मुख्यमंत्री हैं और हम सबका प्रतिनिधित्व करते हैं। थोड़ी शालीनता और उदारता दिखाई जाती तो बेहतर होता।”
आप (AAP) विधायक मेहराज मलिक ने अब्दुल्ला पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री को आत्मसम्मान दिखाना चाहिए। अरविंद केजरीवाल ने उन्हें पहले ही सलाह दी थी कि भाजपा पर भरोसा न करें। अब भी वक्त है, अपने लोगों के लिए खड़े हों, बजाय इसके कि भाजपा के पीछे छाया बनकर चलें। जम्मू-कश्मीर को साहसी नेतृत्व की जरूरत है, न कि प्रोटोकॉल की भूख रखने वाले नेताओं की।”
पूर्व श्रीनगर मेयर जुनैद मट्टू ने शाह की यात्रा की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, “अपनी नज़र की जांच करें — क्या आप 15 सेकंड से कम समय में हमारे मुख्यमंत्री को ढूंढ सकते हैं?”
नेशनल कॉन्फ्रेंस का बचाव
लगातार हो रहे हमलों के बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विपक्षी दलों, खासकर पीडीपी, पर प्रोपेगेंडा फैलाने का आरोप लगाया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “तस्वीर एक खास पल को दिखाती है। मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री से बैठक की और उन्हें पूरा प्रोटोकॉल दिया गया।”
हालांकि, पार्टी के भीतर ही असंतोष की स्थिति है। केंद्र की ओर से राज्य के महत्वपूर्ण मुद्दों — जैसे अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर राज्य का दर्जा बहाल करने तक — पर सहयोग न मिलने से नाराजगी बढ़ रही है। जबकि, अब्दुल्ला सरकार ने केंद्र से टकराव टालने की कोशिश की थी, उम्मीद थी कि इससे जम्मू-कश्मीर को फायदा मिलेगा।
‘डुअल गवर्नेंस’ पर मुख्यमंत्री की चिंता
पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में अब्दुल्ला ने कहा था कि उन्हें सरकार चलाने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और अब उनकी उम्मीदें टूट रही हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में लागू दोहरी शासन प्रणाली को असफल करार देते हुए कहा था कि यह ढांचा “सफलता के लिए नहीं बल्कि विफलता के लिए बनाया गया है।” उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि उनकी सरकार के कई फैसले राजभवन में अटक गए हैं।
इस बीच, सवाल यह भी उठे कि शाह की बैठक में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की मौजूदगी क्यों थी, जबकि वह मूल रूप से भाजपा से जुड़े रहे हैं। पीडीपी नेताओं का कहना था कि सिन्हा को संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रखते हुए उस बैठक से दूर रहना चाहिए था।
एनसी प्रवक्ता इमरान नबी ने भी सवाल उठाते हुए कहा, “जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल शाह की बैठक में केवल भाजपा विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों के साथ क्यों बैठे थे? अगर यह पक्षपात नहीं है तो और क्या है? उपराज्यपाल का पद भाजपा का विस्तार नहीं होना चाहिए, बल्कि एक निष्पक्ष संस्था होना चाहिए।”
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