भारत में कानूनी चुनौतियाँ जरूर हैं, लेकिन इसकी pluralistic (बहुवादी) आत्मा अब भी इसकी रगों में दौड़ती है। यह देश केवल एक नक्शे की सीमा नहीं है, बल्कि यह आशा का पुनर्जन्म और नए आरंभ की ज़मीन है। भारत शरण से कहीं आगे बढ़कर लोगों को एक नई पहचान, गरिमा और उद्देश्यपूर्ण भविष्य का मौका देता है।
इसी समावेशी भावना का जीवंत उदाहरण हैं पाकिस्तान से आए डॉक्टर नानिकराज खनूमल मुखी।
पाकिस्तान में भेदभाव से तंग आकर भारत की ओर रुख
पाकिस्तान में अपने और अपने परिवार की गरिमा के लिए संघर्ष करते हुए, उन्होंने 2009 में भारत आने का फैसला किया। अहमदाबाद पहुंचने पर उन्हें यह अच्छी तरह मालूम था कि वापसी का कोई रास्ता नहीं होगा। उन्होंने 2021 में नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान दूतावास में अपना पासपोर्ट सरेंडर कर दिया।
लंबे संघर्ष के बाद उन्हें आखिरकार भारतीय नागरिकता मिल गई, लेकिन यह सफर आसान नहीं था।
एक डॉक्टर, एक सपना और एक लंबा इंतजार
अहमदाबाद के सरदार नगर इलाके में बसने के बाद, डॉक्टर मुखी के पास सिर्फ विज़िटर वीज़ा था। उनके पास पेशेवर योग्यता थी — उन्होंने कराची के लियाकत मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और जिन्ना मेडिकल कॉलेज से सोनोग्राफी में डिप्लोमा किया था। यही उनकी नई ज़िंदगी की उम्मीद थी।
भारत सरकार ने उन्हें लॉन्ग टर्म वीजा (LTV) दिया और 2016 में उन्होंने नागरिकता के लिए भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के तहत आवेदन किया। 2017 में उन्हें कलेक्टर और ज़िला मजिस्ट्रेट कार्यालय, अहमदाबाद से acknowledgment मिला।
उन्होंने बताया, “मुझसे चालान भरवाया गया और कहा गया कि 15 दिनों में नागरिकता मिल जाएगी।”
लेकिन मामला उतना सीधा नहीं था।
परिवार को नागरिकता मिली, लेकिन वे खुद रह गए इंतजार में
जहां उनके परिवार को नागरिकता मिलती रही, वहीं डॉक्टर मुखी का मामला इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की रिपोर्ट के अभाव में लटका रहा। उनकी पत्नी को 2022 में, बेटी को 2024 में नागरिकता मिली। उनके भाई-बहनों को भी भारत की नागरिकता मिल गई।
बड़ा बेटा कोटा में MBBS की पढ़ाई कर रहा है और उसने 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत आवेदन किया। छोटा बेटा, जिसने हाल ही में 12वीं पास की है, अब भी पाकिस्तानी नागरिक है।
नागरिकता न होने के कारण पेशे में रुकावट
डॉक्टर मुखी ने 2023 में Foreign Medical Graduate Examination (FMGE) पास कर लिया था, जो भारत में विदेशी डॉक्टरों के लिए आवश्यक है। लेकिन भारतीय नागरिकता न होने के कारण गुजरात मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका।
अक्टूबर 2024 में अहमदाबाद नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग (उत्तर जोन) ने उनके झूलेलाल सोनोग्राफी क्लिनिक को सील कर दिया, क्योंकि उनके पास आवश्यक रजिस्ट्रेशन नहीं था।
उन्होंने एक मीडिया समूह से कहा, “यह एक नौकरशाही विरोधाभास है। मैं अब पाकिस्तानी नहीं हूं, और अभी तक भारतीय भी नहीं। इसलिए हर सिस्टम से बाहर हूं।”
हाईकोर्ट का सहारा और राहत की सांस
अपनी नागरिकता की स्थिति को लेकर परेशान डॉक्टर मुखी ने 2025 में गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया। उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 226 के तहत और नागरिकता अधिनियम की धारा 6B के तहत याचिका दायर की।
उनकी वकील रत्ना वोरा ने बताया, “2016 से मामला लंबित था। 2021 में एक और आवेदन दिया गया जो खारिज हो गया। 2024 में दोबारा आवेदन दिया, लेकिन IB रिपोर्ट न आने का हवाला देकर मामला लटका रहा। गुरुवार को हमें सर्टिफिकेट मिला, जिसका मतलब है कि उन्हें अब भारतीय नागरिकता मिल गई है, 5 अगस्त से प्रभावी।”
अहमदाबाद जिला कलेक्टर द्वारा जारी प्रमाणपत्र में डॉक्टर मुखी को नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(a) के तहत भारतीय नागरिक घोषित किया गया। इसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।
“अब कोई रोकने वाला नहीं रहा”
अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि अब सब कुछ मिल गया है जिसके लिए मैं इतने सालों से संघर्ष कर रहा था। अब मुझे आधार कार्ड मिलेगा और मैं एक Stateless व्यक्ति नहीं, बल्कि एक कानूनी भारतीय नागरिक की तरह जीवन जी सकूंगा।”
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, भारत की आत्मा है
एक पाकिस्तानी जन्मे डॉक्टर का अब भारत में रहना, काम करना और अपने बच्चों को यहीं बड़ा करना — यह किसी भी भाषण से अधिक प्रभावी तरीके से भारत की समावेशी और मानवीय आत्मा को दर्शाता है।
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