नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब से ठीक एक सप्ताह बाद, 17 सितंबर को बिहार के गयाजी स्थित प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर में अपनी दिवंगत मां हीराबा का पिंडदान करेंगे। यह एक बेटे का अपनी मां के प्रति कर्तव्य तो है ही, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहे इस दौरे ने राजनीतिक गलियारों में भी नई चर्चा छेड़ दी है।
प्रधानमंत्री मोदी अपनी मां हीराबा के लिए यह अनुष्ठान उनके दिसंबर 2022 में हुए निधन के बाद कर रहे हैं। गौरतलब है कि हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित पंद्रह दिनों की विशेष अवधि, जिसे गुजरात में ‘श्राद्ध’ और अन्य जगहों पर ‘पितृ पक्ष’ कहा जाता है, सोमवार से शुरू हो चुकी है। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही नवरात्रि का पावन पर्व शुरू होता है।
क्या है इस दौरे का राजनीतिक महत्व?
पूरे देश में गयाजी को मोक्ष की भूमि माना जाता है और यहां पिंडदान का विशेष महत्व है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का यहां आना स्वाभाविक है, लेकिन बिहार में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र इस यात्रा को राजनीतिक चश्मे से भी देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री की बिहार में मौजूदगी से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनावी बढ़त मिल सकती है। उनकी यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होगी, बल्कि बिहार की जनता से एक भावनात्मक जुड़ाव भी स्थापित करेगी।
‘पिंडदान’ एक महत्वपूर्ण हिंदू अनुष्ठान है, जिसमें चावल और जौ के पिंड बनाकर दिवंगतों को अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसे जीवित परिजनों का अपने पूर्वजों के प्रति एक आवश्यक कर्तव्य भी माना जाता है।
जब मोदी ने गुजरात में बनाया ‘मातृ गया’
एक तरफ जहाँ प्रधानमंत्री मोदी अपनी मां के श्राद्ध के लिए बिहार जा रहे हैं, वहीं यह जानना भी दिलचस्प है कि कैसे उन्होंने अपने गृह राज्य गुजरात के एक छोटे से शहर सिद्धपुर को महिलाओं के श्राद्ध और पिंडदान के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया।
साल 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक, नरेंद्र मोदी ने उत्तरी गुजरात के इस कस्बे के विकास पर विशेष ध्यान दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे सिद्धपुर के विकास से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं में हिस्सा लेते रहे हैं। आज सिद्धपुर को ‘मातृ गया’ के नाम से जाना जाता है।
सिद्धपुर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे आधुनिक तकनीक से भी जोड़ा गया है। यहाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म और कुछ मोबाइल ऐप्स भी विकसित किए गए हैं, जिनके माध्यम से विदेश में रहने वाले लोग भी अपने प्रियजनों के लिए हो रहे अनुष्ठानों को ऑनलाइन देख सकते हैं और उसमें शामिल हो सकते हैं।
सिद्धपुर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
2011 की जनगणना के अनुसार, सिद्धपुर की आबादी 61,000 से अधिक है, और यहाँ के अनगिनत परिवारों की आजीविका इन्हीं धार्मिक अनुष्ठानों पर निर्भर करती है। यहाँ पिंडदान पवित्र ‘बिंदु सरोवर’ के तट पर किया जाता है, जिसे ‘मातृ गया क्षेत्र’ भी कहते हैं। यह भारत के पाँच पवित्र सरोवरों में से एक है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने इस सरोवर के घाटों और आसपास के क्षेत्र को संवारने में गहरी दिलचस्पी दिखाई थी।
एक स्थानीय पुजारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “बिहार के गयाजी का महत्व हमेशा सर्वोपरि रहेगा, लेकिन सिद्धपुर की ख्याति सदियों पहले तब हुई जब भगवान परशुराम ने अपनी माता, देवी रेणुका का मातृ श्राद्ध यहीं किया था।”
उन्होंने समझाया कि पिंडदान इसी मातृ श्राद्ध अनुष्ठान का एक हिस्सा है। ऐसी भी मान्यता है कि इसी सरोवर के तट पर ऋषि कपिल ने अपनी मां देवहूति को मोक्ष का ज्ञान दिया था।
ऐतिहासिक रूप से सिद्धपुर का प्राचीन नाम “श्रीस्थल” था। बाद में, सोलंकी वंश के राजा सिद्धराज जयसिंह के शासनकाल में इस स्थान का नाम सिद्धपुर पड़ा। आज यहाँ ऐसी व्यवस्थाएं हैं कि एक साथ 200 परिवार बैठकर अनुष्ठान कर सकते हैं। इसके अलावा, यहाँ एक संग्रहालय भी है जो ‘मातृ श्राद्ध’ के महत्व को विस्तार से समझाता है।
विपक्ष ने साधी चुप्पी
जब इस बारे में गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. हिरेन बैंकर से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “यह प्रधानमंत्री का निजी मामला है और इस पर कोई भी टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।”
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