नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार (2 अक्टूबर) को पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि “सर क्रीक सेक्टर में किसी भी दुस्साहस का भारत निर्णायक जवाब देगा।” गुजरात के भुज मिलिट्री स्टेशन में विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा करते हुए उन्होंने यह बात कही।
सिंह ने आगे कहा, “पाकिस्तान को यह याद रखना चाहिए कि कराची का रास्ता क्रीक से होकर गुजरता है।” रक्षा मंत्री ने सर क्रीक से सटे इलाकों में पाकिस्तान द्वारा हाल ही में किए गए सैन्य बुनियादी ढांचे के विस्तार की ओर भी इशारा किया।
क्यों इतना महत्वपूर्ण है सर क्रीक?
सर क्रीक, जिसका मूल नाम ‘बाण गंगा’ है, भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित 96 किलोमीटर लंबा एक ज्वारीय मुहाना है। इसके पूर्व में गुजरात का कच्छ का रण है, तो पश्चिम में पाकिस्तान का सिंध प्रांत।
यह दलदली इलाका जहरीले रसेल वाइपर सांपों और बिच्छुओं से भरा हुआ है। हर मानसून में, क्रीक में बाढ़ आ जाती है और आसपास के नमक के मैदान पानी में डूब जाते हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में आबादी बहुत कम है और यहाँ निगरानी रखना भी मुश्किल है।
इसके बावजूद, यह लंबे समय से भारत और पाकिस्तान के बीच एक अनसुलझे सीमा विवाद का केंद्र रहा है, क्योंकि यह दोनों देशों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।
रणनीतिक और आर्थिक महत्व
रणनीतिक पहलू
जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, सर क्रीक पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर और आर्थिक केंद्र कराची की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान ने इस विवादित क्षेत्र में बंकर, रडार और फॉरवर्ड बेस बनाए हैं, जो ड्रोन हमले और सैन्य अभियान शुरू करने में सक्षम हैं। भारत ने भी किसी भी पाकिस्तानी दुस्साहस को रोकने के लिए अपनी मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है।
भारत की चिंता केवल पाकिस्तानी सेना तक ही सीमित नहीं है। सर क्रीक का इस्तेमाल भारतीय धरती पर आतंकी हमलों के लिए एक लॉन्चपैड के रूप में भी किया जा सकता है। नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के दौरान, पाकिस्तानी आतंकवादी नाव के जरिए ही मुंबई आए थे।
आर्थिक पहलू
रणनीतिक चिंताओं से परे, सर क्रीक का आर्थिक महत्व शायद दशकों पुराने इस सीमा विवाद के समाधान में सबसे बड़ी बाधा है। माना जाता है कि इस क्षेत्र में तेल और गैस के विशाल भंडार हैं, जो दोनों देशों के हितों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
इसके अलावा, यह क्रीक मछली पकड़ने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जो गुजरात और सिंध दोनों के स्थानीय मछुआरों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्पष्ट सीमा के अभाव में, मछुआरे अक्सर अनजाने में दूसरे देश के जलक्षेत्र में चले जाते हैं, जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी होती है और उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
सर क्रीक पर अंतरराष्ट्रीय सीमा का निर्धारण अरब सागर में दोनों देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Exclusive Economic Zones – EEZs) की सीमा को भी सीधे प्रभावित करेगा। EEZ किसी देश के तट से 200 समुद्री मील (370.4 किमी) तक फैला होता है, जिसके भीतर उसे सभी जीवित और निर्जीव संसाधनों पर अधिकार होता है।
क्या है पूरा सीमा विवाद?
इस विवाद की जड़ में दोनों देशों की अलग-अलग दलीलें हैं। पाकिस्तान पूरे सर क्रीक पर अपना दावा करता है, जबकि भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा को चैनल के मध्य में निर्धारित करता है।
यह असहमति ‘थालवेग सिद्धांत’ (Thalweg principle) पर आधारित है, जो किसी भी जलमार्ग के मध्य-चैनल को सीमा बनाने का प्रावधान करता है। भारत का तर्क है कि क्रीक नौगम्य है और मछुआरे इसका उपयोग करते हैं, इसलिए यह सिद्धांत लागू होता है। वहीं, पाकिस्तान इस तर्क को खारिज करते हुए कहता है कि यह क्रीक नौगम्य नहीं है, इसलिए यह सिद्धांत लागू नहीं हो सकता।
इस विवाद की जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत में मिलती हैं, जब कच्छ और सिंध के शासकों के बीच एक नाले के किनारे पड़ी लकड़ियों के ढेर के मालिकाना हक को लेकर बहस हुई थी। आजादी के बाद, यह विवाद 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद सामने आया। हालांकि, 1968 में एक न्यायाधिकरण ने कच्छ के रण का विवाद सुलझा दिया और 90% हिस्सा भारत को दिया, लेकिन सर क्रीक को इस समाधान से बाहर रखा गया।
बातचीत के कई दौर, पर नतीजा सिफर
भारत और पाकिस्तान इस विवाद पर अब तक कई दौर की द्विपक्षीय वार्ता कर चुके हैं। 1989 से लेकर 1998 तक कई बैठकें हुईं, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। 1998 में, पाकिस्तान ने इस विवाद को एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में ले जाने की मांग की, लेकिन भारत ने शिमला समझौते का हवाला देते हुए इसका विरोध किया और कहा कि सभी मतभेदों को द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस मुद्दे पर अंतिम “औपचारिक वार्ता जून 2012 में हुई थी”। दिसंबर 2015 में एक व्यापक द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने पर सहमति बनी थी, जिसमें सर क्रीक का मुद्दा भी शामिल था। लेकिन, जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले और सीमा पार आतंकवाद को पाकिस्तान के निरंतर समर्थन ने किसी भी संरचित द्विपक्षीय वार्ता को रोक दिया है।
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