नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक हालिया कदम ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। संघ ने अमेरिका में अपने हितों की पैरवी करने के लिए एक ऐसी प्रमुख अमेरिकी लॉबिंग फर्म को काम पर रखा है, जो पाकिस्तान सरकार के लिए भी काम करती है। इस खुलासे के बाद न सिर्फ भारत में बड़ा सियासी विवाद खड़ा हो गया है, बल्कि हिंदू राष्ट्रवादी संगठन की अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और वित्तीय पारदर्शिता (financial transparency) पर भी सवालिया निशान लग गए हैं।
अमेरिकी समाचार आउटलेट ‘प्रिज्म’ (Prism) की एक खोजी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि RSS ने इस साल की शुरुआत में वाशिंगटन डी.सी. में एक व्यापक लॉबिंग अभियान शुरू किया था। अमेरिकी सरकार के पास दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक, लॉबिंग फर्म ‘स्क्वायर पैटन बॉग्स’ (SPB) को 2025 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान अमेरिकी सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के सामने RSS का पक्ष रखने के लिए $330,000 (करीब 2.7 करोड़ रुपये) का भुगतान किया गया।
पाकिस्तान कनेक्शन और टैरिफ विवाद
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब यह सामने आया कि जिस फर्म (SPB) को संघ ने चुना है, वही फर्म इस्लामाबाद (पाकिस्तान) के लिए भी लॉबिंग करती है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान द्वारा किए गए मल्टी-मिलियन डॉलर के लॉबिंग अभियान (जिसमें SPB शामिल थी) का सीधा असर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर दिखा। इसके बाद पाकिस्तान के पक्ष में नीतिगत बदलाव हुए, जिसमें टैरिफ को 29% से घटाकर 19% करना शामिल था। गौरतलब है कि ठीक इसी दौरान अमेरिका ने भारत पर टैरिफ बढ़ाकर 50% कर दिया था।

विपक्ष का तीखा हमला: ‘यह राष्ट्रहित के खिलाफ’
विरोधी हितों वाली इस फर्म के चयन को लेकर भारत में विपक्ष ने संघ को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस महासचिव और सांसद जयराम रमेश ने RSS पर भारत के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया।
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा, “अब हमें पता चला है कि RSS ने अमेरिका में अपने हितों को साधने के लिए भारी रकम खर्च करके उसी लॉ फर्म ‘स्क्ायर पैटन बॉग्स’ को काम पर रखा है, जो पाकिस्तान की आधिकारिक लॉबिंग शाखाओं में से एक है।”
उन्होंने आगे तीखा प्रहार करते हुए कहा, “यह पहली बार नहीं है जब RSS ने राष्ट्रीय हित के साथ विश्वासघात किया है। चाहे स्वतंत्रता आंदोलन हो, महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर का विरोध हो, या संविधान और तिरंगे का अपमान—इनका इतिहास रहा है। यह एक छद्म-राष्ट्रवादी (pseudo-nationalist) संगठन है।”
रमेश ने संघ की कानूनी स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के 9 नवंबर के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु में स्वीकार किया था कि RSS एक ‘पंजीकृत संगठन’ (registered organisation) नहीं है और यह कर (tax) नहीं देता है। उस वक्त भागवत ने कहा था कि सरकार ने उन पर तीन बार प्रतिबंध लगाया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें ‘व्यक्तियों का समूह’ माना। इस पर कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी संघ की वित्तीय जवाबदेही पर सवाल उठाए थे।
अमेरिकी कानूनों के उल्लंघन का अंदेशा
‘प्रिज्म’ की रिपोर्ट में अमेरिकी विदेशी प्रभाव विशेषज्ञों के हवाले से कानूनी चिंताओं को भी उजागर किया गया है।
SPB ने RSS के लिए अपना काम 1995 के ‘लॉबिंग डिस्क्लोजर एक्ट’ (LDA) के तहत पंजीकृत किया है। हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते को 1938 के अधिक सख्त ‘फॉरेन एजेंट्स रजिस्ट्रेशन एक्ट’ (FARA) के तहत दर्ज किया जाना चाहिए था।
FARA के तहत बैठकों और संचार का विस्तृत सार्वजनिक खुलासा जरूरी होता है। विशेषज्ञों का तर्क है कि चूंकि अंतिम ग्राहक एक विदेशी संगठन (RSS) है जो “अमेरिका-भारत द्विपक्षीय संबंधों” को प्रभावित करना चाहता है, इसलिए FARA का नियम लागू होना चाहिए था।
रटगर्स यूनिवर्सिटी की अकादमिक और हिंदू राइट विंग पर शोध करने वाली ऑब्रे ट्रस्के ने बताया कि जब SPB के लॉबिस्ट ब्रैडफोर्ड एलिसन ने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने FARA के तहत उनकी स्थिति पूछी थी, लेकिन उन्हें कभी जवाब नहीं मिला।
ट्रस्के ने कहा, “भारत के दक्षिणपंथी अर्धसैनिक बल RSS का कैपिटल हिल पर सीधे लॉबिंग करना अमेरिका के लिए बुरी खबर है और यह अमेरिकी कानून के तहत अवैध भी हो सकता है।”
नागपुर तक पहुंची लॉबिंग की जड़ें
दस्तावेजों से पता चलता है कि लॉबिंग का यह जाल काफी जटिल है। इसमें क्लाइंट के रूप में सीधे RSS का नाम नहीं है, बल्कि “स्टेट स्ट्रीट स्ट्रैटेजीज” का नाम है जो “वन+ स्ट्रैटेजीज” के रूप में RSS की ओर से काम कर रही है।
हैरानी की बात यह है कि जून महीने में पूर्व रिपब्लिकन कांग्रेसमैन बिल शस्टर (जो RSS खाते पर SPB के लॉबिस्ट हैं), उनके भाई बॉब शस्टर और SPB के एलिसन ने नागपुर स्थित RSS मुख्यालय का दौरा किया था और वहां एक प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया था। उनके साथ वॉल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार वाल्टर रसेल मीड भी थे।
लॉबिंग फॉर्म में कोहेंस लाइफसाइंसेज के कार्यकारी अध्यक्ष विवेक शर्मा का नाम भी शामिल है, जिन्होंने $5,000 से अधिक का योगदान दिया है। शर्मा का संबंध RSS से जुड़े ‘एकल विद्यालय फाउंडेशन’ (USA) से भी है।
‘स्टेरॉयड पर चल रहा संगठन’
खोजी पत्रकार और ‘RSS एंड द मेकिंग ऑफ ए डीप नेशन’ पुस्तक के लेखक दिनेश नारायणन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पेशेवर लॉबिस्टों को काम पर रखना संघ की वैश्विक रणनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है।
उन्होंने कहा, “अगर यह सच है, तो यह ‘संपर्क’ या हाई-लेवल नेटवर्किंग के लिए किराए पर प्रचारक रखने जैसा है। यह RSS के चरित्र के विपरीत है और विस्तार करने की हड़बड़ी को दर्शाता है। दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर का सिद्धांत था ‘धीरे-धीरे जल्दबाजी करो’, लेकिन यह कदम ऐसा लगता है जैसे संगठन ‘स्टेरॉयड’ पर है।”
नारायणन के अनुसार, 2025 में अपनी शताब्दी मना रहे RSS के लिए यह अभियान वैश्विक वैधता (legitimacy) पाने की एक बड़ी कोशिश है। संघ की महत्वाकांक्षा ‘विश्वगुरु’ बनने की है, और एक महाशक्ति (अमेरिका) के प्रभावशाली लोगों के साथ नेटवर्क बनाने के लिए लॉबिस्ट को रखना यह दिखाता है कि वे इस उद्देश्य में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
उक्त लेख मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है.
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