मुंबई: भारतीय मुद्रा के लिए 2 दिसंबर का दिन बेहद निराशाजनक रहा। मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर 90.02 पर आ गिरा। इस साल रुपये में लगातार भारी गिरावट देखी जा रही है और 2025 में अब तक इसमें लगभग 5 प्रतिशत की कमजोरी आ चुकी है। इस गिरावट के साथ ही यह इस साल एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बन गया है।
बाज़ार के जानकारों का कहना है कि कई आर्थिक दबाव एक साथ मिलकर रुपये की कमर तोड़ रहे हैं।
व्यापार घाटा ने बढ़ाई मुसीबत
रुपये पर सबसे बड़ा दबाव देश के बढ़ते व्यापार घाटे (Trade Deficit) से आया है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में भारत का वस्तु व्यापार घाटा रिकॉर्ड 41.68 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो सितंबर में 32.15 बिलियन डॉलर था। इस दौरान निर्यात में करीब 12 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 34.38 बिलियन डॉलर रह गया।
वहीं दूसरी ओर, मुख्य रूप से सोने और चांदी की खरीदारी के कारण आयात 17 प्रतिशत उछलकर 76.06 बिलियन डॉलर हो गया। आयात और निर्यात के बीच के इस बढ़ते अंतर ने डॉलर की मांग को बढ़ा दिया है, जिसका सीधा असर रुपये की कीमत पर पड़ा है।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील में देरी का असर
भारत और अमेरिका के बीच औपचारिक व्यापार समझौते (Trade Deal) का न हो पाना भी रुपये के लिए भारी पड़ रहा है। अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे शुल्कों (Tariffs) ने व्यापारिक गतिविधियों को धीमा कर दिया है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र और निर्यात दोनों को नुकसान पहुंचा है।
दंडात्मक 50 प्रतिशत शुल्क के कारण अमेरिका को होने वाले निर्यात में लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। एचएसबीसी (HSBC) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इन कारणों से नवंबर में भारत की विनिर्माण वृद्धि नौ महीने के निचले स्तर पर आ गई। विश्लेषकों का मानना है कि अगर समय रहते यह समझौता हो जाता, तो मुद्रा पर दबाव कुछ हद तक कम हो सकता था।
विदेशी निवेशकों का मोहभंग
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) द्वारा भारतीय शेयर बाजार से लगातार पैसा निकालना रुपये की कमजोरी का तीसरा बड़ा कारण है। साल 2025 में अब तक विदेशी निवेशकों ने 1,47,164 करोड़ रुपये (16.78 बिलियन डॉलर) के शेयर बेचे हैं। देश से बाहर जा रहे इस पैसे के कारण डॉलर की आवक कम हो गई है, जिससे व्यापार और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे रुपये पर दबाव और बढ़ गया है।
बढ़ता व्यापार घाटा, व्यापार समझौते में देरी और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली—इन तीनों कारकों ने मिलकर रुपये को ऐतिहासिक निचले स्तर पर धकेल दिया है। मौजूदा हालात नीति निर्माताओं और निवेशकों दोनों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।
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