गांधीनगर/अहमदाबाद: सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती को एक ऐतिहासिक उत्सव के रूप में मनाने के उद्देश्य से शुरू की गई गुजरात सरकार की पहल अब पूरी तरह से एक सियासी लड़ाई में बदल गई है। गुजरात सरकार द्वारा आयोजित ‘सरदार@150 राष्ट्रीय एकता पदयात्रा’ का मकसद लौह पुरुष को श्रद्धांजलि देना था, लेकिन 152 किलोमीटर लंबी यह यात्रा कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर हमलों का केंद्र बन गई।
भाजपा ने इस मंच का इस्तेमाल यह स्थापित करने के लिए किया कि पटेल को कांग्रेस में कभी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे, वहीं विपक्ष ने इसे भाजपा की ‘हताशा’ करार दिया।
पदयात्रा और बाबरी मस्जिद की तारीख का संयोग
यह यात्रा 26 नवंबर को आणंद जिले के करमसद से शुरू हुई थी, जो सरदार पटेल का बचपन का घर है। इसका समापन 6 दिसंबर को एकता नगर (केवड़िया) में हुआ, जहां ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ स्थित है। गौर करने वाली बात यह है कि यात्रा का समापन उसी तारीख को हुआ, जिस दिन बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी थी।
पूरी यात्रा के दौरान, भाजपा ने सरदार पटेल को अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रतीक के रूप में पेश किया। यात्रा के शुभारंभ पर वडोदरा के सांसद हेमांग जोशी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को भी इसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया था। समापन समारोह में उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने कहा कि पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘विकसित भारत’ के आह्वान में सरदार पटेल की विरासत की गूंज सुनाई देती है। वहीं, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मोदी युग को “सरदार का दूसरा आगमन” (Second coming of Sardar) करार दिया।
नेहरू पर वार और विवादित बयान
नेताओं के भाषणों में नेहरू और कांग्रेस निशाने पर रहे। केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने पटेल की तुलना जर्मनी का एकीकरण करने वाले ओटो वॉन बिस्मार्क (Otto von Bismarck) से की। दूसरी ओर, जे.पी. नड्डा ने आरोप लगाया कि जहां पटेल ने हैदराबाद और जूनागढ़ का भारत में विलय कराया, वहीं नेहरू ने पटेल को कश्मीर मुद्दे से दूर रखकर देश को एक “नासूर” (गहरा घाव) दिया।
विवाद तब और गहरा गया जब 2 दिसंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में दावा किया कि सरदार पटेल ने ही नेहरू की उस योजना को विफल किया था, जिसके तहत वे सरकारी खजाने से बाबरी मस्जिद का निर्माण कराना चाहते थे।
इस पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सरदार पटेल की बेटी मणिबेन की मूल डायरी के अंशों का हवाला देते हुए ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि राजनाथ सिंह पीएम मोदी के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए “झूठ फैला रहे हैं”।
“काम नहीं हो रहे, बस आयोजन हो रहे हैं”
इस पूरे घटनाक्रम पर वरिष्ठ लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता मनीषी जानी ने तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति एक संकट की तरह है। “लोगों के काम नहीं हो रहे हैं, बस आए दिन कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।
जानी ने दावा किया कि भाजपा और आरएसएस सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके पास स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाला अपना कोई बड़ा नेता नहीं है।
उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने भी सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल किया है—चाहे वह सरदार पटेल स्टेडियम हो, सरदार सरोवर बांध हो या अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा। लेकिन अगर कांग्रेस उनके नाम का उपयोग करती है, तो यह समझ आता है क्योंकि पटेल उसी पार्टी से थे। लेकिन जब भाजपा ऐसा करती है, तो यह हास्यास्पद लगता है।”
“पटेल को मानते हो, तो संघ को बैन करो”
गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अमित चावड़ा ने भी भाजपा के दावों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सरदार पटेल की विचारधारा का पालन नहीं करती है। चावड़ा ने याद दिलाया, “सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की थी। अगर भाजपा वाकई पटेल की विचारधारा में विश्वास करती है, तो उसे आरएसएस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।”
चावड़ा ने आगे कहा कि पटेल ने किसानों के लिए सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी थी। “अगर सरकार उन्हें सच्चा सम्मान देना चाहती है, तो उसे गुजरात में किसानों का कर्ज माफ करके एक उदाहरण पेश करना चाहिए,” उन्होंने मांग की।
विरासत की जंग
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि पार्टी ने कभी किसी की विरासत नहीं हड़पी, बल्कि सही व्यक्ति को श्रेय दिया है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस का इतिहास अपने ही महान नेताओं को दरकिनार करने का रहा है। पीएम मोदी ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया, लेकिन उनकी विरासत पर दावा नहीं किया। आज सोशल मीडिया के दौर में पटेल से जुड़े कई छिपे हुए तथ्य जनता के सामने आ रहे हैं।”
हालांकि, यह साफ है कि चाहे पटेल की जयंती हो या पुण्यतिथि, भाजपा नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ती। 2014 के बाद से, पार्टी ने लगातार यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश की है कि पीएम मोदी ही पटेल के विजन के असली उत्तराधिकारी हैं।
हाल ही में 31 अक्टूबर को भाजपा के आधिकारिक हैंडल से 1939 में पटेल पर हुए दो हमलों (वडोदरा और भावनगर में) का जिक्र करते हुए कांग्रेस की “86 साल लंबी चुप्पी” पर भी सवाल उठाए गए थे।
विरासत की इस जंग में एक तरफ भाजपा पटेल को अपना आदर्श बता रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस इसे इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश बता रही है।
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