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महाराष्ट्र की राजनीति में ‘पवार प्ले’: चाचा-भतीजे के फिर एक होने की अटकलें तेज, सुप्रिया और अजित में बंटेगी पावर?

| Updated: December 27, 2025 13:34

सुप्रिया सुले को दिल्ली तो अजित पवार को महाराष्ट्र की कमान? शरद पवार के रिटायरमेंट और अप्रैल 2026 की डेडलाइन पर बनी 'सीक्रेट' सहमति!

मुंबई/पुणे: महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर बड़े भूचाल के संकेत मिल रहे हैं। शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी (SP) और अजित पवार की एनसीपी के बीच संभावित विलय (merger) की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। सूत्रों की मानें तो पवार परिवार के भीतर लंबे समय से चल रही उत्तराधिकार की लड़ाई को खत्म करने और परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए एक ‘सीक्रेट फॉर्मूला’ तैयार किया जा रहा है।

क्या है पावर शेयरिंग का फॉर्मूला?

राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार, पवार परिवार के बीच एक रणनीतिक सहमति बन रही है। इस नई व्यवस्था के तहत काम का बंटवारा कुछ इस तरह होगा:

  • अजित पवार: उन्हें महाराष्ट्र की राज्य-स्तरीय राजनीति की पूरी कमान सौंपी जाएगी। वे राज्य में एकजुट पार्टी का नेतृत्व करेंगे।
  • सुप्रिया सुले: बतौर अनुभवी लोकसभा सांसद, सुप्रिया सुले दिल्ली में पार्टी का चेहरा होंगी और राष्ट्रीय राजनीति की जिम्मेदारी संभालेंगी।
  • केंद्रीय मंत्री पद: चर्चा यह भी है कि दोनों गुटों की संयुक्त ताकत के दम पर सुप्रिया सुले को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद भी मिल सकता है।

शरद पवार का ‘रिटायरमेंट प्लान’ और अप्रैल 2026 की डेडलाइन

इस रीयूनियन (पुनर्मिलन) के पीछे सबसे बड़ी वजह शरद पवार का आगामी रिटायरमेंट प्लान बताया जा रहा है। भारतीय राजनीति के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले 85 वर्षीय शरद पवार का राज्यसभा कार्यकाल अप्रैल 2026 में समाप्त हो रहा है।

सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि परिवार के भीतर कई दौर की बैठकें हुई हैं। इसमें यह तय हुआ कि अब कमान अगली पीढ़ी को सौंपने का समय आ गया है। शरद पवार औपचारिक रूप से राजनीति से संन्यास लेकर अपना पूरा ध्यान सामाजिक कार्यों पर लगाएंगे। परिवार को लगता है कि अजित पवार ने राज्य की कड़ी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नेतृत्व करने की क्षमता साबित कर दी है, इसलिए राज्य की बागडोर उन्हें दी जानी चाहिए।

पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ चुनाव: तत्काल दोस्ती की वजह

चाचा और भतीजे के बीच रिश्तों में आई इस नरमी का एक बड़ा कारण आगामी पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम चुनाव भी हैं। दोनों ही गुट इन क्षेत्रों को अपना पारंपरिक गढ़ मानते हैं। भाजपा को इन इलाकों में सेंध लगाने से रोकने के लिए दोनों गुट एकजुट होने को तैयार दिख रहे हैं।

समर्थकों का तर्क है कि इस विलय से शरद पवार अपनी धर्मनिरपेक्ष (secular) छवि के साथ सम्मानजनक विदाई ले सकेंगे। भविष्य में अगर पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखती है, तो इसे अगली पीढ़ी (अजित पवार) का फैसला माना जाएगा, न कि शरद पवार का।

राह में हैं बड़ी चुनौतियां: नेताओं का मोहभंग

हालांकि, विलय की यह राह आसान नहीं है। अजित पवार, जो अभी भाजपा के साथ गठबंधन में हैं, उनके नेतृत्व में काम करने को लेकर शरद पवार के वफादारों में भारी नाराजगी है। इसका असर दिखने भी लगा है।

एनसीपी (SP) के पुणे शहर अध्यक्ष प्रशांत जगताप ने कांग्रेस का दामन थामने के लिए इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अपने राजनीतिक सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते। कई अन्य वरिष्ठ नेता भी असमंजस में हैं और एकजुट एनसीपी में लौटने के बजाय अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए अन्य विकल्प तलाश रहे हैं।

फिलहाल आधिकारिक घोषणा का इंतजार है, लेकिन वैचारिक और प्रशासनिक मुद्दों पर अंतिम बातचीत जारी है। यदि यह विलय होता है, तो 2026 के राजनीतिक चक्र से पहले महा विकास अघाड़ी (MVA) और महायुति, दोनों गठबंधनों के समीकरण पूरी तरह बदल जाएंगे।

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