सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपुल एम पंचोली को शीर्ष अदालत में नियुक्त करने की सिफारिश की। हालांकि, इस फैसले पर न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कड़ा असहमति नोट दर्ज किया। उन्होंने साफ कहा कि जस्टिस पंचोली की नियुक्ति न केवल न्यायिक व्यवस्था के लिए “हानिकारक” होगी बल्कि कॉलेजियम की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकती है।
4-1 से हुआ फैसला, अकेली असहमत रहीं जस्टिस नागरत्ना
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भूषण आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ व जेके माहेश्वरी ने सिफारिश का समर्थन किया, जबकि पांच सदस्यीय कॉलेजियम में एकमात्र महिला सदस्य जस्टिस नागरत्ना ने विस्तृत असहमति दर्ज करते हुए जस्टिस पंचोली की नियुक्ति का विरोध किया।
जानकारी के मुताबिक, मई 2025 में जब पहली बार जस्टिस पंचोली के नाम पर चर्चा हुई थी, तब भी जस्टिस नागरत्ना और एक अन्य सदस्य ने अपनी आपत्ति जताई थी। इसी कारण मई में जस्टिस एनवी अंजरिया को सुप्रीम कोर्ट भेजा गया, क्योंकि वे वरिष्ठ थे और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की जून में सेवानिवृत्ति के बाद गुजरात हाईकोर्ट से प्रतिनिधित्व बनाए रखना आवश्यक था। नागरत्ना को लगा था कि पंचोली का प्रस्ताव खत्म हो गया है, लेकिन तीन महीने बाद इसका दोबारा सामने आना उनके लिए आश्चर्यजनक रहा।
ट्रांसफर और सीनियरिटी पर उठाए सवाल
जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमति पत्र में जस्टिस पंचोली के जुलाई 2023 में गुजरात हाईकोर्ट से पटना हाईकोर्ट ट्रांसफर का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह महज नियमित प्रक्रिया नहीं थी बल्कि उच्च स्तर पर गंभीर विचार के बाद किया गया कदम था। इस दौरान कई वरिष्ठ न्यायाधीशों की राय ली गई थी, जिन सबने ट्रांसफर का समर्थन किया था। नागरत्ना ने मांग की कि 2023 के उस ट्रांसफर से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को देखा जाना चाहिए।
उनके अनुसार, जस्टिस पंचोली की ऑल-इंडिया सीनियरिटी सूची में रैंकिंग 57वीं है। ऐसे में उनसे अधिक योग्य और वरिष्ठ कई जज सुप्रीम कोर्ट में जगह पाने के दावेदार हो सकते हैं।
गुजरात हाईकोर्ट से ज्यादा प्रतिनिधित्व का खतरा
नागरत्ना ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही गुजरात हाईकोर्ट से जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस एनवी अंजरिया मौजूद हैं। पारडीवाला भविष्य में मई 2028 से अगस्त 2030 तक CJI भी बनने वाले हैं। ऐसे में तीसरे जज को उसी हाईकोर्ट से लाना, अन्य हाईकोर्ट्स के कम या शून्य प्रतिनिधित्व के बीच असंतुलन पैदा करेगा।
उनका मानना है कि इस परिस्थिति में जस्टिस पंचोली की नियुक्ति न्यायिक प्रशासन के लिए प्रतिकूल साबित होगी और कॉलेजियम प्रणाली की शेष बची साख भी दांव पर लग सकती है।
CJI बनने की संभावना पर भी जताई चिंता
नागरत्ना ने यह भी दर्ज किया कि यदि जस्टिस पंचोली को अभी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जाता है, तो वे अक्टूबर 2031 से मई 2033 तक लगभग डेढ़ वर्ष के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने की पंक्ति में होंगे। उनकी दृष्टि में यह न्यायपालिका के हित में नहीं होगा।
उन्होंने जोर दिया कि पारदर्शिता की दृष्टि से उनके असहमति पत्र को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए, ताकि फैसलों की प्रक्रिया खुली और जिम्मेदार बनी रहे।
महिला न्यायाधीशों की कमी का संदर्भ
यह असहमति ऐसे समय आई है जब जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के 9 जून को रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नागरत्ना एकमात्र महिला जज रह गई हैं। 9 जून 2025 को जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के सेवानिवृत्त होने के बाद, 25–26 अगस्त 2025 की मौजूदा सिफ़ारिशों से पहले सुप्रीम कोर्ट में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई थी। तीन जज—एन. वी. अंजरिया, विजय बिश्नोई और ए. एस. चंदुरकर—ने 30 मई 2025 को शपथ ली थी।
आलोक अराधे का करियर
1964 में जन्मे जस्टिस आलोक अराधे ने अपने करियर में कई हाईकोर्ट्स में सेवा दी है। वे जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मुख्य रूप से सिविल, संवैधानिक, आर्बिट्रेशन और कंपनी मामलों की पैरवी करते थे। अप्रैल 2007 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया। दिसंबर 2009 में वे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए और फरवरी 2011 में स्थायी जज बने।
सितंबर 2016 में उनका ट्रांसफर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट हुआ, जहां वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी रहे। नवंबर 2018 में उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट भेजा गया और जुलाई से अक्टूबर 2022 तक वे वहां कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहे। जुलाई 2023 में वे तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और जनवरी 2025 में बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए।
विपुल एम पंचोली का सफर
मई 1968 में अहमदाबाद में जन्मे जस्टिस पंचोली ने सितंबर 1991 में वकालत शुरू की। उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट में लंबे समय तक प्रैक्टिस की और सात साल तक सहायक सरकारी वकील व अतिरिक्त लोक अभियोजक रहे। अक्टूबर 2014 में वे गुजरात हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बने और जून 2016 में स्थायी जज के रूप में पुष्टि हुई।
करीब दस साल गुजरात हाईकोर्ट में सेवाएं देने के बाद जुलाई 2023 में उन्हें पटना हाईकोर्ट भेजा गया। वहां उन्होंने जज के तौर पर शपथ ली और जुलाई 2025 में वे पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने।
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