नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर पूर्ण रूप से रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, अदालत ने कानून के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है, जिससे इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने सुनाया।
अदालत ने वक्फ उपयोगकर्ता द्वारा पंजीकरण की आवश्यकता वाले प्रावधान पर रोक नहीं लगाई। लेकिन, किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त वाले क्लॉज को तब तक के लिए रोक दिया है, जब तक कि राज्य सरकारें इससे संबंधित नियम नहीं बना लेतीं।
अदालत ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने कहा, “हमने 1923 के अधिनियम से लेकर अब तक के विधायी इतिहास को देखा है और प्रत्येक धारा की चुनौती पर प्रथम दृष्टया विचार किया है। सभी पक्षों को सुनने के बाद, हमने यह माना है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता है। हालांकि, कुछ धाराएं जिन्हें चुनौती दी गई है, उन्हें कुछ सुरक्षा की आवश्यकता है।”
अंतरिम आदेश को पढ़ते हुए, सीजेआई गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ के पंजीकरण की आवश्यकता कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा, “पंजीकरण की यह शर्त 1995 से 2013 तक लागू थी। इसे 2013 में हटा दिया गया था; इसलिए, इसमें कुछ भी नया नहीं है।”
किन प्रावधानों पर लगी है रोक?
- 5 साल तक मुस्लिम होने की शर्त: अदालत ने धारा 3(1)(r) के उस प्रावधान पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया है कि वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन करने वाला होना चाहिए। अदालत ने कहा, “यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए एक तंत्र प्रदान करने वाले नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा है या नहीं।” पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि “ऐसे तंत्र के अभाव में, यह शक्तियों के मनमाने प्रयोग को जन्म दे सकता है।”
- सरकारी अधिकारी की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट ने उन प्रावधानों पर भी रोक लगा दी है जो सरकार के किसी नामित अधिकारी को यह रिपोर्ट देने की अनुमति देते हैं कि क्या किसी वक्फ संपत्ति ने सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण किया है। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार वक्फ बोर्ड को रिकॉर्ड में सुधार करने के लिए कह सकती थी। अदालत ने इसे शक्तियों के पृथक्करण (separation of powers) के सिद्धांत के खिलाफ माना। पीठ ने जोर देकर कहा, “कार्यपालिका को संपत्ति पर अधिकारों का निर्धारण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक वक्फ संपत्ति के मालिकाना हक का मुद्दा अंतिम रूप से तय नहीं हो जाता, तब तक संपत्ति पर कब्जे या अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और न ही किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई अधिकार बनाए जा सकते हैं।
गैर-मुस्लिम सदस्यों पर क्या है फैसला?
अदालत ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को नामित करने की अनुमति देने वाले प्रावधान पर रोक नहीं लगाई है। हालांकि, अदालत ने सदस्यों की संख्या पर एक सीमा तय कर दी है। फैसले के अनुसार, 20 सदस्यों वाले बोर्ड में चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते, और राज्य वक्फ बोर्डों के मामले में 11 सदस्यों में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते।
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