सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस फैसले पर सवाल खड़े किए, जिसमें करीब एक दशक पहले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को ‘बच्चों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ (RTE Act) से बाहर रखा गया था।
दो जजों की पीठ, जिसमें जस्टिस दिपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन शामिल थे, ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रमाटी एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) मामले में दिए गए निर्णय की समीक्षा बड़ी बेंच द्वारा की जानी चाहिए। यह सवाल मुख्य रूप से इस बात पर था कि अल्पसंख्यक स्कूलों में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) अनिवार्य होगा या नहीं।
टीईटी से जुड़ा मामला
पीठ ने एक साथ कई अपीलों पर फैसला दिया। इनमें दो प्रमुख प्रश्न थे:
- क्या अल्पसंख्यक स्कूलों में अध्यापकों के लिए टीईटी अनिवार्य किया जा सकता है?
- क्या गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों में वे शिक्षक, जिन्हें आरटीई कानून लागू होने से पहले नियुक्त किया गया था, उन्हें सेवा जारी रखने या पदोन्नति पाने के लिए टीईटी पास करना होगा?
कोर्ट ने कहा कि जो शिक्षक रिटायरमेंट से पहले पांच साल से कम सेवा अवधि शेष रखते हैं, वे बिना टीईटी पास किए अपनी नौकरी जारी रख सकते हैं, लेकिन पदोन्नति के लिए उन्हें परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। वहीं, जिनकी सेवा अवधि पांच साल से अधिक बची है, उन्हें दो साल के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। (अंजुमन इशाअत-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य)
प्रमाटी फैसले की आलोचना
पीठ ने माना कि 2014 का प्रमाटी फैसला “कानूनी रूप से संदिग्ध और अनुपातहीन” लगता है। उस समय पांच जजों की बेंच ने लगभग पूरे आरटीई एक्ट को अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं करने का निर्णय सिर्फ एक प्रावधान—धारा 12(1)(c)—के आधार पर दिया था।
यह धारा कहती है कि सभी स्कूलों को कक्षा 1 में कम से कम 25% सीटें अपने आस-पास के कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए सुरक्षित रखनी होंगी।
कोर्ट ने कहा कि एक ओर संविधान का अनुच्छेद 30(1) अल्पसंख्यकों को अपने संस्थान चलाने का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 21A हर बच्चे को शिक्षा का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। ऐसे में अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई से बाहर करना उन बच्चों के अधिकारों से वंचित करना है।
प्रमाटी फैसले में क्या कहा गया था?
पांच जजों की बेंच उस समय संविधान (86वां संशोधन) 2002 और संविधान (93वां संशोधन) 2005 की वैधता पर विचार कर रही थी।
- अनुच्छेद 21A ने शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया।
- अनुच्छेद 15(5) ने पिछड़े वर्गों, एससी-एसटी के लिए आरक्षण का प्रावधान निजी शैक्षणिक संस्थानों तक बढ़ाया, लेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों को इससे बाहर रखा।
हालांकि प्रमाटी फैसले में दोनों संशोधनों को वैध माना गया, लेकिन आरटीई कानून को अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू करना असंवैधानिक करार दिया गया। अदालत ने माना कि आरटीई लागू होने से अल्पसंख्यक स्कूलों की विशिष्ट पहचान और स्वतंत्रता खत्म हो सकती है।
आरटीई एक्ट की मुख्य बातें
आरटीई एक्ट 2010 से लागू हुआ और 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार दिया।
- सरकारी स्कूलों को सभी बच्चों को निशुल्क पढ़ाना होगा।
- अनुदान प्राप्त स्कूलों को प्राप्त सहायता के अनुपात में मुफ्त सीटें देनी होंगी।
- निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को प्रवेश स्तर पर 25% सीटें वंचित बच्चों के लिए आरक्षित करनी होंगी।
कानून में न्यूनतम छात्र-शिक्षक अनुपात, प्रशिक्षित शिक्षक, पुस्तकालय, आधारभूत ढांचा, कैपिटेशन फीस पर रोक और शारीरिक दंड पर पाबंदी जैसी कई शर्तें शामिल हैं।
विशेषज्ञों की राय
- आर. गोविंदा, जिन्होंने आरटीई के ड्राफ्टिंग में अहम भूमिका निभाई थी, ने कहा: “यह कानून बच्चों के अधिकारों पर केंद्रित है, न कि संस्थानों की प्रशासनिक स्वतंत्रता पर। अल्पसंख्यक संस्थानों को बाहर रखने की जरूरत नहीं थी।”
- एनसीपीसीआर की एक स्टडी में पाया गया कि अल्पसंख्यक स्कूलों में सिर्फ 8.76% छात्र वंचित वर्गों से थे, जबकि 62.5% छात्र गैर-अल्पसंख्यक समुदायों से थे। अदालत ने कहा कि इससे साफ है कि कई तथाकथित अल्पसंख्यक स्कूल वास्तव में अपनी समुदाय की सेवा नहीं कर रहे, लेकिन छूट का लाभ ले रहे हैं।
- डॉ. लतिका गुप्ता (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने कहा कि कई निजी संस्थान सिर्फ अल्पसंख्यक टैग लगाकर आरटीई की शर्तों से बच निकले।
- अनीता रामपाल (पूर्व डीन, शिक्षा विभाग, डीयू) ने कहा कि यह फैसला बच्चों के अधिकारों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि आरटीई शिक्षकों की योग्यता और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ संकेत दिया है कि बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार और अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रशासनिक अधिकारों में संतुलन होना चाहिए। आने वाले समय में बड़ी बेंच इस पर अंतिम निर्णय देगी, जो यह तय करेगा कि क्या अल्पसंख्यक संस्थानों को आरटीई एक्ट की जिम्मेदारियों से छूट जारी रहनी चाहिए या नहीं।
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