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ट्रंप के $1,00,000 H-1B वीजा शुल्क के खिलाफ 20 अमेरिकी राज्यों ने खोला मोर्चा, फेडरल कोर्ट में दी चुनौती

| Updated: December 13, 2025 14:06

कैलिफोर्निया, न्यूयॉर्क सहित 20 राज्यों ने ट्रंप के $1,00,000 वीजा शुल्क को बताया 'गैर-कानूनी', बोस्टन फेडरल कोर्ट में दी बड़ी चुनौती।

वाशिंगटन/बोस्टन: अमेरिका में H-1B वीजा नियमों को लेकर चल रही रस्साकशी अब एक बड़े कानूनी दांव-पेच में बदल गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नए H-1B वीजा के लिए $1,00,000 (एक लाख डॉलर) का शुल्क अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ अमेरिका के 20 राज्यों ने एकजुट होकर आवाज उठाई है।

शुक्रवार (12 दिसंबर, 2025) को कैलिफोर्निया और 19 अन्य अमेरिकी राज्यों ने मिलकर इस आदेश पर रोक लगाने के लिए बोस्टन की फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। यह कदम ट्रंप प्रशासन के उस फैसले के विरोध में उठाया गया है, जिसे सितंबर में घोषित किया गया था और जिसने कुशल विदेशी कामगारों के लिए अमेरिका आने की राह बेहद मुश्किल कर दी है।

क्या है पूरा मामला?

मौजूदा समय में नियोक्ताओं को H-1B वीजा के लिए आमतौर पर 2,000 से 5,000 डॉलर के बीच शुल्क देना होता है। लेकिन ट्रंप प्रशासन के नए आदेश ने इस राशि को बढ़ाकर सीधे एक लाख डॉलर कर दिया है। राज्यों का तर्क है कि यह बढ़ोतरी अनुचित है और इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगेगा।

बोस्टन की अदालत में दायर यह मुकदमा इस फैसले के खिलाफ अब तक की कम से कम तीसरी बड़ी कानूनी चुनौती है। इस मुहिम में कैलिफोर्निया के साथ न्यूयॉर्क, मैसाचुसेट्स, इलिनोइस, न्यू जर्सी और वाशिंगटन जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं।

कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल का तर्क

कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास इतना भारी शुल्क थोपने का कोई अधिकार नहीं है। बोंटा ने स्पष्ट किया कि यह संघीय कानून का उल्लंघन है, जो आव्रजन अधिकारियों को केवल उतनी ही फीस वसूलने की अनुमति देता है, जितनी वीजा कार्यक्रमों के संचालन (administration) के लिए आवश्यक हो।

डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता बोंटा ने चेतावनी दी कि एक लाख डॉलर का यह शुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए अनावश्यक वित्तीय बोझ पैदा करेगा। इससे श्रमिकों की कमी और भी गंभीर हो सकती है, जिसका सीधा असर आम लोगों को मिलने वाली सेवाओं पर पड़ेगा।

तकनीकी उद्योग पर संकट

H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेष क्षेत्रों में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। सिलिकॉन वैली और कैलिफोर्निया में मुख्यालय वाली कई टेक कंपनियां अपनी वर्कफोर्स के लिए काफी हद तक इसी वीजा पर निर्भर हैं। ऐसे में इतनी बड़ी फीस वृद्धि उनके लिए काम करना मुश्किल कर देगी।

व्हाइट हाउस और समर्थकों का पक्ष

दूसरी ओर, व्हाइट हाउस ने अन्य मुकदमों के जवाब में अपने फैसले का बचाव किया है। प्रशासन का कहना है कि यह शुल्क ट्रंप की शक्तियों का वैध प्रयोग है और इसका उद्देश्य नियोक्ताओं द्वारा H-1B कार्यक्रम के दुरुपयोग को रोकना है।

इस वीजा के आलोचकों का लंबे समय से कहना रहा है कि इसका इस्तेमाल अमेरिकी कामगारों को हटाकर कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को रखने के लिए किया जाता है। हालांकि, बड़े व्यापारिक समूह और कंपनियां लगातार यह दलील देती रही हैं कि H-1B वीजा योग्य अमेरिकी कर्मचारियों की कमी को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण जरिया है।

संवैधानिक सवाल और अन्य चुनौतियां

अटॉर्नी जनरल बोंटा के कार्यालय ने शुक्रवार को तर्क दिया कि $1,00,000 का शुल्क H-1B याचिकाओं को संसाधित (process) करने की लागत से कहीं अधिक है, जो इसे गैर-कानूनी बनाता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिकी संविधान राष्ट्रपति को राजस्व उत्पन्न करने के लिए एकतरफा शुल्क लगाने से रोकता है; यह अधिकार केवल कांग्रेस (संसद) के पास सुरक्षित है।

गौरतलब है कि अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक लॉबी समूह, ‘यू.एस. चैंबर ऑफ कॉमर्स’, और यूनियनों व धार्मिक समूहों के एक गठबंधन ने भी इस शुल्क के खिलाफ अलग-अलग मुकदमे दायर किए हैं। वाशिंगटन, डी.सी. में एक न्यायाधीश अगले सप्ताह चैंबर के मुकदमे पर सुनवाई करने वाले हैं।

किन पर लागू होगा यह नियम?

ट्रंप का आदेश स्पष्ट करता है कि नए H-1B प्राप्तकर्ताओं को अमेरिका में प्रवेश की अनुमति तब तक नहीं मिलेगी, जब तक कि उनके प्रायोजक (employer) ने $1,00,000 का भुगतान नहीं किया हो। हालांकि, प्रशासन ने राहत देते हुए कहा है कि यह आदेश मौजूदा H-1B धारकों या उन लोगों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने 21 सितंबर से पहले आवेदन किया था।

ट्रंप ने अपने आदेश में संघीय आव्रजन कानून के तहत अपनी शक्तियों का हवाला दिया है, जो उन्हें कुछ विदेशी नागरिकों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है यदि वह अमेरिकी हितों के लिए हानिकारक हो। अब देखना यह होगा कि अदालतें इस पर क्या फैसला सुनाती हैं।

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