नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आखिरकार रूस को लेकर अपनी बात मनवाने में कामयाब हो गए हैं। ट्रम्प प्रशासन द्वारा रूस पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के बाद, भारत की सबसे बड़ी निजी रिफाइनर कंपनी ने रूसी कच्चे तेल के आयात को लेकर अपनी रणनीति बदलने के संकेत दिए हैं।
कंपनी के एक प्रवक्ता ने पुष्टि की है कि वह मास्को से तेल आयात को भारत सरकार (GoI) के दिशानिर्देशों के अनुरूप समायोजित (recalibrate) करेगी। यह महत्वपूर्ण कदम अमेरिका और यूरोप द्वारा रूस पर हाल ही में लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के दबाव के बाद आया है।
ट्रम्प का कड़ा रुख
बुधवार को, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार रूस पर यूक्रेन-संबंधी कड़े प्रतिबंधों की घोषणा की। ये प्रतिबंध सीधे तौर पर रूस की दिग्गज तेल कंपनियों लुकोइल (Lukoil) और रोसनेफ्ट (Rosneft) को निशाना बनाते हैं। यह कार्रवाई यूक्रेन युद्ध को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति ट्रम्प के बढ़ते असंतोष को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
ये प्रतिबंध यूक्रेन में हाल ही में हुए एक रूसी हमले के ठीक एक दिन बाद लगाए गए, जिसमें बच्चों सहित कम से कम सात लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए, अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने गुरुवार तड़के एक कड़े बयान में कहा, “अब हत्याएं रोकने और तत्काल युद्धविराम का समय है।”
भारत पर तत्काल प्रभाव
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने कंपनियों को इन प्रतिबंधित रूसी तेल उत्पादकों के साथ अपने सभी लेनदेन को समाप्त करने के लिए 21 नवंबर तक की समय सीमा दी है। यह डेडलाइन स्पष्ट करती है कि ट्रम्प प्रशासन इस बार अपने रुख पर कितना गंभीर है।
गौरतलब है कि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर मास्को के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस से तेल खरीदना लगभग बंद कर दिया था। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए, भारत रियायती दरों पर उपलब्ध रूसी समुद्री तेल का दुनिया में शीर्ष आयातक बन गया था।
आंकड़ों के अनुसार, भारत ने इस साल जनवरी से सितंबर के बीच रूस से प्रतिदिन औसतन 1.7 मिलियन बैरल तेल का आयात किया। इस बड़े पैमाने पर आयात का अधिकांश हिस्सा भारत की निजी रिफाइनरियों द्वारा खरीदा गया, जिसमें देश की सबसे बड़ी रिफाइनर कंपनी और नायरा एनर्जी (Nayara Energy) प्रमुख थीं।
भारत की शीर्ष रिफाइनर कंपनी द्वारा “पुनः समायोजन” (recalibration) की यह घोषणा एक बड़े भू-राजनीतिक बदलाव का संकेत हो सकती है। यह कदम न केवल ट्रम्प प्रशासन की कूटनीतिक जीत को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब अमेरिकी चिंताओं को कितनी गंभीरता से ले रहा है। इसी क्रम में, यह भी खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी आगामी आसियान (ASEAN) शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, जिसे बदलते वैश्विक समीकरणों और भारत की नई रणनीतिक प्राथमिकताओं के तौर पर देखा जा रहा है।
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