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US Visa New Rules: डायबिटीज या मोटापे के शिकार हैं तो नहीं मिलेगा अमेरिका का वीजा? ट्रंप सरकार का नया फरमान

| Updated: November 8, 2025 13:35

ट्रंप प्रशासन का सख्त फैसला! अब डायबिटीज, मोटापा या हृदय रोग होने पर रुक सकता है आपका अमेरिका जाने का सपना। जानिए क्या हैं वीज़ा के नए दिशानिर्देश और भारतीयों पर इसका असर।

अमेरिका जाने का सपना देख रहे लोगों के लिए एक बुरी खबर है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के एक नए निर्देश के तहत, अब स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे डायबिटीज (मधुमेह) या मोटापे से ग्रस्त विदेशी नागरिकों को अमेरिकी वीजा और स्थायी निवास (परमानेंट रेजीडेंसी) देने से इनकार किया जा सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी विदेश विभाग (State Department) ने दुनिया भर में स्थित अपने दूतावासों को ये नए दिशानिर्देश भेज दिए हैं। हालांकि यह नियम सभी वीज़ा आवेदकों पर लागू होता है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसका सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो अमेरिका में स्थायी रूप से बसने की चाह रखते हैं।

बीमार लोग बन सकते हैं ‘सरकारी खजाने पर बोझ’

अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा भेजे गए केबल (संदेश) में वीज़ा अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे उन आवेदकों को विशेष रूप से चिह्नित करें जिनकी चिकित्सीय स्थिति भविष्य में महंगे इलाज की मांग कर सकती है।

ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि स्वास्थ्य समस्याओं या अधिक उम्र के कारण ऐसे लोग “पब्लिक चार्ज” यानी अमेरिकी संसाधनों पर बोझ बन सकते हैं।

इस नई गाइडलाइन में जिन बीमारियों को लेकर विशेष सतर्कता बरतने को कहा गया है, उनमें शामिल हैं:

  • हृदय रोग (Cardiovascular diseases)
  • कैंसर
  • डायबिटीज
  • मेटाबॉलिक डिसऑर्डर
  • न्यूरोलॉजिकल स्थितियां
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
  • मोटापा (जो आगे चलकर अस्थमा, स्लीप एपनिया और हाई ब्लड प्रेशर का कारण बन सकता है)

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बीमारियों के इलाज में अमेरिकी सरकार को लाखों डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं, इसलिए ऐसे आवेदकों को रोकने की तैयारी है।

वीज़ा अधिकारियों को भविष्य के खर्चों का अनुमान लगाने की छूट

कैथोलिक लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क से जुड़े वरिष्ठ वकील चार्ल्स व्हीलर ने KFF हेल्थ न्यूज़ को बताया कि यह मार्गदर्शन वीज़ा अधिकारियों को यह आकलन करने की छूट देता है कि क्या आवेदक के पास अपने पूरे जीवनकाल में होने वाले चिकित्सा खर्चों को उठाने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं या नहीं।

अधिकारियों को यह देखना होगा कि क्या आवेदक अमेरिकी सरकार की मदद लिए बिना अपना इलाज करा पाएगा। व्हीलर ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, “यह परेशान करने वाला है क्योंकि वीज़ा अधिकारी चिकित्सकीय रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं। उनके पास इस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है, फिर भी उन्हें अपने व्यक्तिगत ज्ञान या पूर्वाग्रह के आधार पर किसी के भविष्य के मेडिकल खर्चों का अनुमान लगाने के लिए कहा जा रहा है।”

परिवार की सेहत पर भी होगी नज़र

बात सिर्फ आवेदक तक ही सीमित नहीं है। नए निर्देशों के मुताबिक, वीज़ा अधिकारियों को आवेदक के परिवार के सदस्यों (जैसे बच्चे या बुजुर्ग माता-पिता) के स्वास्थ्य पर भी गौर करना होगा। यदि परिवार में कोई आश्रित दिव्यांग है या किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, जिसकी देखभाल के लिए आवेदक को नौकरी छोड़नी पड़ सकती है, तो इसे भी वीज़ा देने में एक बाधा माना जा सकता है।

मौजूदा नियमों से कितना अलग है यह नया आदेश?

वर्तमान में भी आप्रवासियों को अमेरिका जाने से पहले एक मेडिकल एग्जाम से गुजरना पड़ता है, लेकिन यह मुख्य रूप से संक्रामक रोगों, टीकाकरण और मानसिक स्वास्थ्य इतिहास की जांच तक सीमित होता है। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील सोफिया जेनोनीस के अनुसार, नया मार्गदर्शन इससे एक कदम आगे जाता है क्योंकि इसमें अब ‘क्रॉनिक’ (दीर्घकालिक) बीमारियों को भी वीज़ा अस्वीकार करने का आधार बनाया जा रहा है।

गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में आप्रवासन को सीमित करने के लिए कई कड़े कदम उठाए गए हैं। इससे पहले H-1B वीज़ा फीस में बढ़ोतरी और ग्रीन कार्ड धारकों के लिए अमेरिकी नागरिकता के नियमों को सख्त किया गया था, जिसका सीधा असर भारतीयों पर पड़ने की आशंका है।

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