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30 साल की कानूनी लड़ाई के बाद वॉल्वो की बड़ी जीत, भारतीय कंपनी पर लगा लाखों का जुर्माना

| Updated: September 23, 2025 13:52

स्वीडिश ऑटो कंपनी ने 1995 में किया था केस, अहमदाबाद की अदालत ने 30 साल बाद सुनाया ऐतिहासिक फैसला, तौलिया निर्माता कंपनी को देना होगा ₹1 लाख का हर्जाना।

अहमदाबाद: स्वीडन की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनी एबी वॉल्वो को ट्रेडमार्क उल्लंघन के एक मामले में 30 साल के लंबे इंतजार के बाद बड़ी सफलता मिली है। अहमदाबाद की एक अदालत ने एक स्थानीय टेरी टॉवल निर्माता कंपनी को अपने उत्पादों पर ‘वॉल्वो’ ब्रांड नाम का उपयोग करने से रोक दिया है।

यह कानूनी लड़ाई 1995 में शुरू हुई थी, जब एबी वॉल्वो ने अहमदाबाद स्थित वॉल्वो टेरी इंडस्ट्रीज लिमिटेड और वॉल्वो फाइनेंस लिमिटेड के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। स्वीडिश कंपनी ने आरोप लगाया था कि भारतीय कंपनियाँ उसके प्रसिद्ध नाम का गलत तरीके से फायदा उठा रही हैं।

अदालत ने न केवल तौलिया निर्माता कंपनी पर ‘वॉल्वो’ नाम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है, बल्कि उसकी सहायक कंपनी, जो निवेश और बैंकिंग के कारोबार में है, को भी इस नाम का उपयोग करने से मना कर दिया है। इसके अलावा, कोर्ट ने स्थानीय फर्म को आदेश दिया है कि वह ऑटोमेकर कंपनी को हर्जाने के तौर पर ₹1 लाख का भुगतान करे।

एबी वॉल्वो ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि प्रतिवादी कंपनियों ने जानबूझकर उनके ब्रांड की वैश्विक प्रतिष्ठा और साख का फायदा उठाने के लिए यह नाम अपनाया था।

कंपनी ने अदालत को बताया कि ‘वॉल्वो’ ब्रांड विभिन्न उत्पाद श्रेणियों में 1975 और 1980 से पंजीकृत है। दिलचस्प बात यह है कि ऑटोमोबाइल के अलावा, वॉल्वो कंपनी खुद भी तौलिये और कपड़ों की बिक्री करती है।

रिकॉर्ड के अनुसार, स्थानीय कंपनी को 1992 में स्थापित किया गया था और वह साणंद में स्थित एक कारखाने में तौलिये का निर्माण करती थी। एबी वॉल्वो ने फर्म पर अपने प्रसिद्ध ब्रांड नाम का उपयोग करके ग्राहकों को धोखा देने का आरोप लगाया था।

इस मामले में एक महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि बचाव के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद, स्थानीय कंपनी ने ऑटोमेकर द्वारा पेश किए गए किसी भी गवाह से जिरह नहीं की।

सभी सबूतों और दलीलों पर विचार करने के बाद, अदालत ने एबी वॉल्वो के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा, “उपरोक्त दस्तावेजी सबूतों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी (स्थानीय कंपनियाँ) और उनके प्रमोटरों ने जानबूझकर ‘वॉल्वो’ शब्द को अपने व्यवसाय के हिस्से के रूप में अपनाया और वादी के ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999 के तहत आरक्षित अधिकारों का उल्लंघन किया।”

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