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न्यूयॉर्क में ‘गुजराती मूल’ के ममदानी का डंका! ट्रंप के विरोध के बावजूद रचा इतिहास, कुओमो को हराकर बने पहले मुस्लिम मेयर

| Updated: November 5, 2025 12:37

34 वर्षीय डेमोक्रेटिक समाजवादी ने 26 अरबपतियों और ट्रंप के विरोध के बावजूद जीती न्यूयॉर्क की 'जंग', पिता का है गुजरात से नाता, जानें कौन हैं ज़ोहरान ममदानी?

नई दिल्ली: अमेरिकी राजनीति में बुधवार को एक नया इतिहास लिखा गया। भारतीय मूल के 34 वर्षीय डेमोक्रेटिक समाजवादी ज़ोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद का चुनाव जीत लिया है। अमेरिकी मीडिया ने उनकी इस ऐतिहासिक जीत की पुष्टि की है। यह जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि उन्होंने दशकों में सबसे अधिक मतदाता मतदान वाले चुनाव में पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को करारी शिकस्त दी।

इस जीत के साथ ही ज़ोहरान ममदानी न्यूयॉर्क के पहले मुस्लिम, पहले दक्षिण एशियाई और अफ्रीका में जन्मे पहले मेयर बन गए हैं। वे एक सदी से भी अधिक समय में शहर के सबसे कम उम्र के मेयर भी होंगे। उनकी यह जीत “उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है” की भावना को दर्शाती है, जहाँ एक जमीनी आंदोलन ने बड़े पैमाने पर पैसे और ताकत को मात दी है।

गुजरात से जुड़ाव और एक ‘नई उम्मीद’

ज़ोहरान ममदानी का भारत और विशेष रूप से गुजरात से गहरा नाता है। उनकी माँ ऑस्कर-नामांकित प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी फिल्म निर्माता मीरा नायर हैं, जिन्हें ‘सलाम बॉम्बे!’ और ‘मानसून वेडिंग’ जैसी कालजयी फिल्मों के लिए जाना जाता है।

उनके पिता, महमूद ममदानी, युगांडा के एक विश्व प्रसिद्ध शिक्षाविद हैं, जिनकी जड़ें भारत में हैं। महमूद ममदानी का परिवार गुजरात के ‘खोजा ट्वेल्वर शिया’ समुदाय से है। इस प्रकार, ज़ोहरान की रगों में ‘गुजराती खून’ भी है, जिसे उन्होंने अपनी पहचान का हिस्सा माना है। ज़ोहरान का जन्म युगांडा के कंपाला में हुआ था और वे मैनहट्टन में पले-बढ़े।

अपनी जीत के बाद, ज़ोहरान ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया जिसमें सबवे (मेट्रो) के दरवाजे खुलने की आवाज आती है और घोषणा होती है, “अगला और आखिरी स्टॉप सिटी हॉल है।”

यह वीडियो तुरंत वायरल हो गया, जो उनके अभियान के आम न्यूयॉर्क वासियों से जुड़ाव का प्रतीक बन गया।

1% से मेयर की कुर्सी तक का सफर

ज़ोहरान ममदानी की यह जीत किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। जब उन्होंने अपना अभियान शुरू किया, तब चुनावों के पोल में उन्हें महज 1% समर्थन मिल रहा था। लेकिन उनके ‘न्यूयॉर्क बिकाऊ नहीं है’ (New York is Not for Sale) के नारे ने युवाओं और आम नागरिकों को एक नई ऊर्जा दी।

  • जनता बनाम पैसा: ज़ोहरान का अभियान पूरी तरह से जमीनी स्तर पर था, जिसे 90,000 से अधिक स्वयंसेवकों और छोटे-छोटे चंदों से ताकत मिली।
  • अरबपतियों का विरोध: दूसरी ओर, उनके प्रतिद्वंद्वी एंड्रयू कुओमो को न्यूयॉर्क के अमीर जमींदारों, डेवलपर्स और नेटफ्लिक्स के सह-संस्थापक रीड हेस्टिंग्स सहित 26 अरबपतियों का समर्थन प्राप्त था। इन अरबपतियों ने ज़ोहरान को रोकने के लिए 22 मिलियन डॉलर (लगभग 180 करोड़ रुपये) से अधिक खर्च किए।
  • ट्रंप का भी मिला कुओमो को साथ: यहाँ तक कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ज़ोहरान ममदानी को “कम्युनिस्ट” बताते हुए लोगों से उन्हें हराने और कुओमो को वोट देने की अपील की थी। ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर ज़ोहरान जीते तो वे न्यूयॉर्क का फेडरल फंड रोक देंगे।

इसके बावजूद, ज़ोहरान ने न केवल डेमोक्रेटिक प्राइमरी में 56% वोट हासिल किए, बल्कि मुख्य चुनाव में भी कुओमो को स्पष्ट रूप से हरा दिया। उन्हें बर्नी सैंडर्स और अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ (AOC) जैसे बड़े प्रगतिशील नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था।

कौन हैं ज़ोहरान ममदानी?

2018 में अमेरिकी नागरिकता लेने वाले ज़ोहरान ममदानी राजनीति में आने से पहले एक ‘हाउसिंग काउंसलर’ के तौर पर काम करते थे। वे कम आय वाले लोगों को बेदखली से बचाने में मदद करते थे। 2021 से, वह न्यूयॉर्क राज्य विधानसभा के सदस्य रहे हैं।

उन्होंने न्यूयॉर्क को “अमेरिका का सबसे महंगा शहर” से बदलकर “सभी के लिए किफायती” बनाने का वादा किया है। उनके मुख्य वादों में किराया फ्रीज करना, बस की सवारी मुफ्त करना, सभी बच्चों के लिए चाइल्ड केयर और अमीरों पर कॉर्पोरेट टैक्स बढ़ाना शामिल है।

विवादों से भी रहा नाता

ज़ोहरान अपने मुखर बयानों के लिए भी चर्चा में रहे हैं।

  1. कुओमो पर हमला: अभियान के दौरान, उन्होंने एंड्रयू कुओमो पर 2021 में 13 महिलाओं द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को जोर-शोर से उठाया।
  2. फिलिस्तीन पर स्टैंड: उन्होंने कहा कि यदि इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू न्यूयॉर्क आते हैं, तो वे मेयर के रूप में उनके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के 2024 के गिरफ्तारी वारंट का सम्मान करेंगे।
  3. भारत पर टिप्पणी: ज़ोहरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी आलोचक रहे हैं। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी की आलोचना की है और वे CAA व अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के भी खिलाफ बोलते रहे हैं।

इन बयानों के कारण उन्हें अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन दूसरी ओर, उन्हें 50 वर्ष से कम उम्र के यहूदी मतदाताओं और कई प्रगतिशील यहूदी संगठनों का भी मजबूत समर्थन मिला।

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