इस साल अगस्त में अमेरिकी मीडिया ने अपने देश में अब तक के सबसे बड़े गुप्त राजनीतिक दान (political donation) का पर्दाफाश किया। इसमें एक चुपचार रहने वाले अरबपति ने रिपब्लिकन पार्टी को 1.6 बिलियन डॉलर दिए थे, जिन्होंने वर्तमान कंजर्वेटिव-प्रभुत्व वाले यूएस सुप्रीम कोर्ट से पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद की थी। जैसे- गर्भपात के अधिकार को समाप्त करना, जलवायु परिवर्तन के नियमों को उलटना, आदि।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह भी खुलासा किया कि कैसे जो बिडेन और डेमोक्रेट्स ने वास्तव में ट्रम्प कैंप और रिपब्लिकन को ‘काले धन’ के उनके ही खेल में उन्हें मात दे दी। और, गुमनाम स्रोतों (anonymous sources) से आए राजनीतिक धन (political funding) का इस्तेमाल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव को जीतने में किया। ट्रम्प समर्थकों द्वारा जुटाए गए लगभग 900 मिलियन डॉलर की तुलना में बिडेन के अभियान ने कथित तौर पर इस तरह के गुप्त दान में 1.5 बिलियन डॉलर प्राप्त किए।
‘काला धन’ अन्य लोकतंत्रों में भी बड़ी समस्या है। वास्तव में, यह अमेरिका की तुलना में भारतीय चुनावों और राजनीति में और भी बड़ा और खतरनाक फैक्टर बन गया है, जो कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए चुनावी बांड (Electoral Bonds) की देने है। विडंबना यह है कि यह सब किया गया है राजनीतिक फंडिंग में ‘पारदर्शिता’ (transparency) के नाम पर। किसी राजनीतिक दल के लिए असीमित गुप्त धन प्राप्त करना शायद यह दुनिया की सबसे चतुर योजना (cleverest scheme) है।
दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में चुनावी बांड को अनुमति देने के लिए कई कानूनों में संशोधन पेश किए। उन्होंने तब संसद और राष्ट्र को बताया कि पिछली सरकारों के तहत कॉरपोरेट्स और अमीरों से हासिल अवैध नकद दान ने चुनाव और नीति निर्माण को दूषित (corrupted elections and policymaking) कर दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा चुनावी बांड व्यवस्था के जरिये इस सिस्टम को साफ करेगी।
यकीनन चुनावी बांड वाहक बांड (bearer bond) हैं, और इस प्रकार नकदी के रूप में अच्छे हैं।
यदि एक मतदाता के रूप में हम यह नहीं जानते हैं कि यह चुनावी बांड कौन दे रहा है, तो हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हमारे राजनीतिक दलों को कौन धन दे रहा है और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है, या क्या ये दानकर्ता सरकारी निर्णयों को प्रभावित करने में सक्षम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड के संचालन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सुझाव दिया कि लोग इस बारे में जानकारी हासिल कर पेश कर सकते हैं। वे गुप्त दान का हिसाब भी ले सकते हैं। फिर देखते हैं कि क्या सामने आता है। तो, आइए इसे आजमाएं और देखें कि क्या निकलता है।
फैक्ट 1: राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड के माध्यम से 2018 से 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का गुप्त चंदा प्राप्त किया है।
फैक्ट 2: इसमें से भाजपा को दो-तिहाई से अधिक यानी करीब 7,000 करोड़ रुपये मिले हैं।
फैक्ट 3: इनमें से 95% से अधिक दान 1 करोड़ रुपये में किया गया है। जाहिर है, ये आपके और मेरे जैसे व्यक्ति नहीं हैं जो इस तरह के पैसे दान कर रहे हैं। ये कॉरपोरेट और अमीर व्यक्ति हैं।
फैक्ट 4: दानकर्ता को अपने दान के लिए टैक्स में छूट मिलती है और राजनीतिक दल को इसे लेने के बाद टैक्स में छूट मिलती है। लेकिन देने वाले को यह बताने की आवश्यकता नहीं होती है कि उसने किसको और कितना पैसा दिया, और पार्टी को यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि उसे किसने दिया।
फैक्ट 5: 2019 में सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनावी बांड आने के लगभग एक साल बाद, मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स दरों में कटौती की (जिससे पहले दो वर्षों में सरकार को राजस्व (revenue) में 1.84 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह जानकारी एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में दी गई है)।
इन तथ्यों और भाजपा को दिए गए चुनावी बांड वाले चंदे के बीच आगे दी जा रही सूचनाओं का मिलान करें और अपने निष्कर्ष पर निकाले। यह मत भूलिये कि कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में गैर-भाजपा सरकारें 2018 के बाद गिर गई हैं, बड़ी संख्या में गैर-भाजपा सत्ताधारी दलों के विधायक अपनी पार्टियों से अलग हो गए हैं और भाजपा को सत्ता में लाने में मदद कर रहे हैं। ऐसा उन राज्यों में हुआ, जहां भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी था। फिर भी वहां वह सत्ता में आ गई।
चिंता की बात यह है कि यह सारा बड़ा पैसा राजनीतिक दलों, खासकर उस समय की सत्ताधारी पार्टी को गुप्त रूप से दिया जा रहा है।