पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में चल रहा आंतरिक कलह निकट भविष्य में थमता नहीं लगता, क्योंकि एक और विधायक पार्टी छोड़कर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गया है। भविष्यवाणी करते हुए कई लोग कह रहे हैं कि राज्य में भगवा पार्टी विलुप्त होने के कगार पर है।
बागदा के विधायक बिस्वजीत दास तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी में शामिल होने वाले भगवा पार्टी से नए नाम हैं। उनसे पहले कृष्णनगर के विधायक मुकुल रॉय और बिष्णुपुर के विधायक तन्मय घोष थे, जिन्होंने 2021 के विधानसभा चुनावों में अपनी सीट जीत लेने के बावजूद दीदी यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी में फिर से शामिल हो गए थे।
दास के पाला बदल लेने के साथ ही विधानसभा में भाजपा की विधायकों की संख्या 77 से घटकर 72 हो गई है। टीएमसी के दो बार के विधायक दास 2019 में भगवा पार्टी में चले गए थे। उन्होंने इस साल हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर बागदा से जीत हासिल की थी।
बीजेपी को छोड़ने पर दास ने कहा, “मैं कभी भी भाजपा में बहुत सहज नहीं रहा। टीएमसी में वापसी लंबे समय से तय था। भाजपा ने बंगाल के लिए कुछ नहीं किया। दास ने यह भी कहा कि भाजपा के भीतर मतभेद थे और उन्हें हल करने के उनके प्रयास व्यर्थ चले गए थे।
दरअसल भाजपा को झटका पहले ही लग गया था, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद बाबुल सुप्रियो ने “राजनीति छोड़ने” का फैसला कर लिया। इससे पहले निशीथ प्रामाणिक, जो अब केंद्रीय मंत्री हैं, ने दिनहाटा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और निर्वाचित हुए थे। लेकिन पार्टी आलाकमान के निर्देश पर विधायक के रूप में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और सांसद बने रहे। इसी तरह राणाघाट से भाजपा सांसद जगन्नाथ सरकार ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत भी गए, लेकिन उन्होंने विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ही नहीं ली।
हालांकि कहा तो यहां जाता है कि दास भाजपा से बाहर निकलने वाले अंतिम व्यक्ति नहीं हैं। बताया जाता है कि बुधवार को उत्तर बंगाल के नेताओं की पार्टी की बैठक से सात भाजपा विधायक अनुपस्थित थे। अनुपस्थित रहने वाले नेताओं में गोपाल साहा, विवेकानंद बाउरी, सत्येंद्रनाथ रॉय, मनोज ओरांव, अशोक लाहिड़ी, दिबाकर घोरमी और ज्वेल मुर्मू थे।
भगवा पार्टी 2019 के विधानसभा चुनावों में सफलता मिलने की उम्मीद में थी, खासकर यह देखते हुए कि उसने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में उसे जोर का झटका लग गया। उसने ममता बनर्जी को हराने के लिए चुनौती देते हुए सफलता की उम्मीद की थी, लेकिन 294 सदस्यीय विधानसभा में उसे 80 से भी कम सीटों पर संतोष करना पड़ा।
‘थके हुए‘ रह गए पार्टी में
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के एक निश्चित वर्ग का मानना है कि पार्टी छोड़कर टीएमसी में जाने वाले जो लोग हैं, वे पार्टी के कार्य करने की क्षमता को अच्छी तरह जानते हैं। इसका श्रेय यकीनन निरंतर और अनसुलझे आंतरिक कलह और गुटबाजी को जाता है।
कुछ भाजपा नेताओं का यह भी दावा है कि उन्हें कथित तौर पर अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करने की अनुमति नहीं दी गई, जबकि दूसरा गुट उन पर पार्टी के कार्यों में शामिल नहीं होने के आरोप लगा रहे थे।
इस सबने केवल आंतरिक कलह को तेज किया है और कई लोगों को या तो राजनीति छोड़ने या टीएमसी में लौटने के लिए मजबूर किया है।
नाम न छापने की शर्तों पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हमें केंद्रीय नेतृत्व से अधिक समर्थन की उम्मीद थी, लेकिन हमें अपने मुद्दों को आलाकमान के सामने व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। हमने अभियान के लिए एक अलग योजना और रणनीति पर भी काम किया, लेकिन राज्य नेतृत्व ने सुनने से इनकार कर दिया और इसे अपने तरीके से करने लगा।’
असंतुष्ट नेता ने यह भी कहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर आंखें मूंद लीं, जिन्हें चुनाव के बाद हुई हिंसा में शिकार बनाया गया था।
एक अन्य गुट का दावा है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने वाले कई फिल्मी हस्तियां भी इस्तीफा दे सकती हैं। पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं मिलने के कारण वे सिर्फ सजावटी वस्तु बने रहने से इनकार कर रहे हैं।
हाल ही में बीजेपी में शामिल होने वालों में रिमझिम मित्रा भी थीं। हालांकि मित्रा को कोई टिकट नहीं मिला, लेकिन विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए वह पार्टी के भीतर अन्य जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उत्सुक थीं। उन्होंने कहा, “मुझे बिना किसी जिम्मेदारी के दरकिनार कर दिया गया है। मैंने अभी तक भाजपा नहीं छोड़ी है, लेकिन मैंने नेतृत्व से नाराजगी जता दी है।’
हालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने पार्टी के भीतर कलह के आरोपों से इनकार किया। उन्होंने दावा किया कि लोग अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने सभी को अपने विचार रखने के लिए पर्याप्त जगह दी है।
दास की टीएमसी में वापसी पर टीएमसी नेता और राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, “जो अब टीएमसी में शामिल हो रहे हैं, वे भाजपा में आंतरिक कलह से ऊब गए हैं। एक और कारण अनादर है। इसलिए लोग या तो राजनीति छोड़ रहे हैं या दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं।