देश में पहली बार नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) ने “डिजिटल अरेस्ट” फ्रॉड के पीड़ितों की शिकायतों पर कई बैंकों को नोटिस जारी किए हैं। इस कदम से साइबर अपराध के मामलों में बैंकिंग क्षेत्र की जिम्मेदारी पर कानूनी कार्रवाई का एक नया अध्याय खुला है।
3 मार्च को पारित आदेश और 7 जुलाई की सुनवाई में आयोग ने उन याचिकाओं को स्वीकार किया जिनमें बैंकों पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने बड़ी धनराशि की धोखाधड़ी रोकने में गंभीर लापरवाही की। आयोग की पीठ में आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए.पी. साहि और सदस्य भारतकुमार पांड्या शामिल हैं। पीठ ने संकेत दिया है कि यदि शिकायतें आयोग के अधिकार क्षेत्र में “बने रहने योग्य” पाई गईं तो वह केंद्रीय एजेंसियों—जैसे फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU) और गृह मंत्रालय के भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C)—से सहयोग मांग सकती है।
उच्च मूल्य की धोखाधड़ी की जांच
अभी आयोग के समक्ष जिन मामलों की सुनवाई चल रही है उनमें गुरुग्राम के दो पीड़ित शामिल हैं, जिन्होंने पिछले साल क्रमशः ₹10.30 करोड़ और ₹5.85 करोड़ गंवाए। एक तीसरा मामला मुंबई का है, जिसमें ₹5.88 करोड़ की धोखाधड़ी हुई थी। इसकी सुनवाई 14 नवंबर को होगी।
तीनों पीड़ितों के वकील महेंद्र लिमये ने कहा:
“महत्वपूर्ण यह है कि उपभोक्ता आयोग की पीठ ने डिजिटल अरेस्ट मामलों की पूरी चेन में शामिल सभी बैंकों, यहां तक कि लाभार्थी बैंकों को भी नोटिस भेजा है। अब आरबीआई दिशानिर्देशों के उल्लंघन और सेवा में कमी के आरोपों की विस्तृत सुनवाई होगी, जो बैंकिंग क्षेत्र के लिए पहली बार है।”
ग्राहक सुरक्षा में लापरवाही पर आयोग सख्त
आयोग के 3 मार्च के आदेश में कहा गया है कि वह यह जांच कर रहा है कि “ग्राहक की सावधानी स्पष्ट रूप से समझौता” क्यों हुई और “आरबीआई के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन” कैसे हुआ।
आदेश में कहा गया:
“अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन की जांच के लिए दिशानिर्देश सर्कुलरों से शासित होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन खातों में शिकायतकर्ताओं द्वारा धनराशि भेजी गई, वे खाते बिना किसी सावधानी के संचालित किए गए और किसी भी बैंक ने संदिग्ध बड़े लेन-देन पर कोई अलर्ट या रेड फ्लैग नहीं उठाया।”
किन बैंकों को भेजा गया नोटिस
जिन बैंकों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें ICICI बैंक, HDFC बैंक, UCO बैंक, फेडरल बैंक, श्रीनिवासा पद्मावती बैंक, यस बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक शामिल हैं। इनमें से कई बैंक 7 जुलाई की सुनवाई में पेश हुए थे।
कानूनी सवाल: उपभोक्ता शिकायत की परिभाषा और अधिकार क्षेत्र
एनसीडीआरसी यह तय करेगा कि “डिजिटल अरेस्ट” फ्रॉड के मामले उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत “उपभोक्ता शिकायत” की परिभाषा में आते हैं या नहीं, और क्या इनकी राशि आयोग के वित्तीय अधिकार क्षेत्र में आती है।
पृष्ठभूमि: देश में डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड का बढ़ता खतरा
जून-जुलाई में प्रकाशित एक जांच रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में देश में डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के मामले 1,23,672 तक पहुंच गए, जिनमें कुल ₹1,935 करोड़ की धोखाधड़ी की गई।
गुरुग्राम की एक पीड़िता, जिसने ₹5.85 करोड़ गंवाए, के मामले में जांच से पता चला कि उसकी रकम 141 खातों में तीन स्तर की लेन-देन श्रृंखलाओं में देशभर में भेजी गई। अक्सर यह पैसा कुछ सेकंड या मिनटों में एक बैंक से दूसरे बैंक में ट्रांसफर होते ही निकाल लिया जाता था। जांच में यह भी सामने आया कि एक ही फर्जी या “म्यूल” अकाउंट का कई साइबर फ्रॉड में बार-बार इस्तेमाल हुआ।
आगे की कार्रवाई
आयोग की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी। यह मामला तय कर सकता है कि भारतीय बैंकों को उपभोक्ताओं को साइबर अपराध से बचाने में विफल रहने पर किस हद तक जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
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