अहमदाबाद में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है. गोमतीपुर में रहने वाली एक 15 साल की लड़की, सानिया अंसारी ने पिछले महीने अपने ही घर में आत्महत्या कर ली. उसका गुनाह सिर्फ इतना था कि उसके परिवार ने अपने ही पड़ोस में एक घर खरीद लिया था, जिसके बाद उन्हें महीनों तक उत्पीड़न, हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ा. इस पूरी घटना के केंद्र में गुजरात का ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ है.
40 साल पुराना कानून और एक अधूरा सौदा
यह सब तब शुरू हुआ जब अंसारी परिवार ने अपने एक हिंदू पड़ोसी से 15.5 लाख रुपये में एक घर खरीदा. उन्होंने दिसंबर 2024 तक पूरी रकम चुका दी थी, लेकिन घर का कब्जा लेने से पहले ही हिंदू विक्रेता के पति का निधन हो गया.
शोक की अवधि समाप्त होने के बाद, विक्रेता का बेटा वापस घर आ गया, और यहीं से सारा विवाद शुरू हुआ. यह घर अंसारी परिवार के मौजूदा घर के ठीक सामने था, और जल्द ही यह उनके लिए परेशानी, संघर्ष और नफरत का कारण बन गया.
अंसारी परिवार का दावा है कि जब भी वे अपनी नई संपत्ति का कब्जा मांगते, विक्रेता सुमन सोनवदे कोई न कोई बहाना बना देतीं, जबकि उन्हें पूरा भुगतान मिल चुका था. सोनवदे के बेटे दिनेश ने परिवार को धमकाना शुरू कर दिया और ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ का हवाला देते हुए सौदे को रद्द करने की धमकी दी.
सानिया की बहन, रिफत जहां ने बताया, “उन्होंने सानिया को बालों से घसीटा, पीटा और हम पर लात चलाई. वह किसी के बचाने का इंतजार करते-करते खुद को खत्म कर बैठी.”
रिफत ने 7 अगस्त की उस घटना का जिक्र किया जब स्थानीय दक्षिणपंथी पुरुषों का एक समूह, जिसका नेतृत्व कथित तौर पर विक्रेता का बेटा कर रहा था, उनके घर में घुस आया था. इसके दो दिन बाद, सानिया ने एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें चार लोगों के नाम थे. नोट में उन पर पैसे लेने के बाद घर न देने और महीनों तक परेशान करने का आरोप लगाया गया था.
‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ और एक परिवार की मजबूरी
इस विवाद की जड़ में 1991 में लाया गया ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ है. इस कानून का मकसद सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में संपत्ति की ‘परेशानी भरी बिक्री’ को रोकना है. इस कानून के तहत, विभिन्न समुदायों के बीच संपत्ति की बिक्री के लिए जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है. हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि व्यवहार में यह कानून मुस्लिम परिवारों को हिंदू-बहुल इलाकों में जाने से रोकने का एक हथियार बन गया है.
सानिया के मामले में, पड़ोसियों ने कथित तौर पर उन्हें इस कानून के तहत कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, जिसका मतलब था कि उनकी खरीद को अमान्य किया जा सकता था. परिवार का कहना है कि इसी डर ने उन्हें पुलिस के पास जाने से रोका और उत्पीड़न को बढ़ावा दिया.
सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी, जो सानिया के मामले पर नजर रखे हुए हैं, मानते हैं कि ऐसे कानून मुसलमानों को उनके घरों से बाहर निकलने और नए इलाकों में बसने से रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.
सिद्दीकी ने कहा, “यह कानून कमजोर परिवारों की रक्षा करने की बजाय उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने का हथियार बन गया है. यह मुसलमानों से कहता है: तुम्हारे पास पैसे भले ही हों, लेकिन तुम यह नहीं चुन सकते कि तुम्हें कहाँ रहना है.”
पुलिस की लापरवाही और कानूनी पेच
परिवार ने आरोप लगाया कि उन्हें एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस पर दबाव डालना पड़ा. हमले के सीसीटीवी फुटेज और सुसाइड नोट होने के बावजूद, पुलिस ने शुरुआत में एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया. अधिकारियों ने मौत को एक दुर्घटना बताया और नोट की फॉरेंसिक जांच की मांग की.
पुलिस कमिश्नर जी.एस. मलिक के हस्तक्षेप के बाद ही छह लोगों के नाम एफआईआर में दर्ज किए गए, जिसमें एक नाबालिग को आत्महत्या के लिए उकसाने समेत अन्य आरोप लगाए गए.
परिवार के वकील, एडवोकेट सत्येश लेउवा ने बताया कि एफआईआर में कई महत्वपूर्ण तथ्यों का जिक्र नहीं है. “पुलिस को एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी हमें संघर्ष करना पड़ा. शुरुआती एफआईआर में आत्महत्या का जिक्र तो था, लेकिन महीनों के उत्पीड़न और लड़की को बुरी तरह पीटे जाने की बात नहीं थी.”
इस पर गोमतीपुर इंस्पेक्टर डी.वी. राणा ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है. “हम एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं ताकि यह पता चल सके कि नोट वाकई उसी लड़की ने लिखा था या नहीं. एक बार यह साबित हो जाए, तो हम आगे की जांच करेंगे.”
एक कानून जो विभाजन को गहरा करता है
सानिया ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, “मेरे घर में इनकी वजह से 10 महीने से कोई खुशी नहीं, सिर्फ रोना-धोना और लड़ाई.” उसने यह भी लिखा कि कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया, न पुलिस और न ही पड़ोसी.
यह घटना कोई अकेली नहीं है. वर्षों से, नागरिक अधिकार समूहों ने यह दस्तावेजीकरण किया है कि कैसे ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ का इस्तेमाल मुस्लिम खरीदारों को मिश्रित इलाकों से दूर रखने के लिए किया जाता है. 2019 में, इस कानून में किए गए संशोधनों ने इसकी पहुंच को और बढ़ा दिया, जिससे अनुमति लेना और भी मुश्किल हो गया.
इस घटना से दो बड़ी खामियां सामने आती हैं: अल्पसंख्यक परिवारों से जुड़े मामलों में पुलिस का शुरुआती हस्तक्षेप न करना, और गुजरात के संपत्ति कानूनों में निहित ढांचागत पूर्वाग्रह.
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के राष्ट्रीय सचिव प्रसाद चाको का मानना है कि ‘डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’, जिसका मकसद ‘तनावपूर्ण बिक्री’ से होने वाले ‘जनसांख्यिकीय असंतुलन’ को रोकना है, अब मुसलमानों के उत्पीड़न और धमकी का एक और हथियार बन गया है.
गुजरात की अल्पसंख्यक समन्वय समिति (एमसीसी) का कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल मुसलमानों को कुछ खास इलाकों तक सीमित रखने के लिए किया जा रहा है, जिससे वे व्यवस्थित रूप से हाशिए पर चले जाएं. एमसीसी के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा, “जब से बीजेपी सत्ता में आई है, वे मुसलमानों को हिंदू इलाकों से दूर रखना चाहते हैं. डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट उनके लिए एक बड़ा हथियार बन गया है.”
अंसारी परिवार अभी भी उसी घर के सामने रहता है जिसे वे खरीदना चाहते थे. 10 महीनों में, अंसारी परिवार ने 15.5 लाख रुपये, अपनी गरिमा, कानून में अपना विश्वास और अपनी बेटी सानिया को खो दिया है.
उक्त रिपोर्ट मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा पब्लिश की जा चुकी है.
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