अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरती मांग और कपास (cotton) की ऊंची कीमतों ने गुजरात में कताई (spinning) मिलों को संकट में डाल दिया है। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग (commerce and industry) मंत्रालय के अनुसार, सूती धागे का एक्सपोर्ट इस अक्टूबर में 46% घटकर 719 मिलियन डॉलर रह गया। यह पिछले अक्टूबर में 1.33 बिलियन डॉलर था।
गुजरात में 600 कताई मिलें हैं। इनकी क्षमता 45 लाख तकलियां (spindles) की हैं। स्पिनर्स एसोसिएशन ऑफ गुजरात (SAG) के अध्यक्ष सौरिन पारिख ने कहा कि यूरोप और अमेरिका में मंदी के कारण सूती धागे की मांग गिर गई है। इससे कताई मिलों की कमाई काफी कम हो गई है। स्पिनिंग मिलों को इस समय 15 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान हो रहा है।
गुजरात में बने सूती धागे का कम से कम 60% एक्सपोर्ट किया जाता है। कॉटन की कीमत 69,000 रुपये प्रति कैंडी तक पहुंचने के साथ, यहां कताई मिलें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कंपटीशन करने में असमर्थ हैं। पारिख ने कहा, “भारतीय कॉटन सबसे महंगा है। इससे हम वियतनाम और इंडोनेशिया से कंपीट नहीं कर पा रहे हैं, जो एक्सपोर्ट को और नुकसान पहुंचा रहा है।” कॉटन की अंतरराष्ट्रीय से लेकर घरेलू कीमतें तक भारतीय सूत कातने वालों की प्रतिस्पर्धात्मकता (competitiveness) को निर्धारित करता है।
क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अप्रैल और अगस्त के बीच ग्लोबल कॉटन की कीमतों में 17% की गिरावट आई है, जबकि कॉटन के भारी उत्पादन की उम्मीद में सीमित आपूर्ति के कारण घरेलू कीमतों में 2% की वृद्धि हो गई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि महंगे घरेलू कपास ने भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को चोट पहुंचाई। इससे निर्यात बाजार में हिस्सेदारी चीन और बांग्लादेश के हाथों खोनी पड़ी।
कॉटन की ऊंची कीमतों के कारण धागा निर्माताओं ने उत्पादन और खरीद घटा दी है। टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (Texprocil) की प्रशासन समिति के सदस्य राहुल शाह ने कहा, “स्पिनर बहुत कम कॉटन खरीद रहे हैं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय यार्न की मांग कम हो गई है। कॉम्बेड यार्न का निर्माण मुश्किल से कार्डेड यार्न के साथ किया जा रहा है, क्योंकि यह 10% कम कपास का उपयोग करता है। इसके अलावा, महंगे होने के कारण स्पिनर केवल उतना ही कॉटन खरीद रहे हैं जितने की उन्हें जरूरत है। यह लाभ पर गलत असर डाल रहा है।”