नई दिल्ली/मुंबई: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला शाश्वत मार्गदर्शन है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के कॉरपोरेट अफेयर्स विभाग के डायरेक्टर और राज्यसभा सांसद परिमल नथवानी ने रिलायंस समूह के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के जीवन को गीता के उपदेशों का जीवंत उदाहरण बताया है।
नथवानी ने अपने लेख में कहा कि आधुनिक भारत के उद्योग जगत के इतिहास में यदि गीता के कर्म, धैर्य, समत्व, नेतृत्व और आत्मविश्वास के सिद्धांत किसी एक जीवन में साकार होते दिखते हैं, तो वह जीवन धीरूभाई अंबानी का है। एक सामान्य परिवार में जन्में, बिना पूंजी और सगे-संबंधियों के आधार वाले एक युवक ने केवल अपने अड़िग विश्वास और कर्म के बल पर भारत के सबसे बड़े उद्योग साम्राज्य की नींव रखी।
कर्म के सिद्धांत पर अटूट विश्वास
परिमल नथवानी ने बताया कि धीरूभाई के जीवन का केंद्रबिंदु गीता का वह सिद्धांत था जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, फल पर नहीं)। यमन में छोटी नौकरी से लेकर मुंबई में मसाले की दुकान और फिर पॉलिएस्टर यार्न व पेट्रोकेમિકल्स तक का उनका सफर इसी सिद्धांत पर आधारित था।
धीरूभाई हमेशा कहते थे, “बड़ा सोचो, जल्दी सोचो और समय से आगे सोचो, विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है।” उनकी इसी दूरंदेशी का परिणाम था कि एक ही दिन में 100 विमल स्टोर्स का उद्घाटन हुआ, जो एक रिकॉर्ड बन गया।
संघर्ष और धैर्य की मिसाल
धीरूभाई के जीवन में आए उतार-चढ़ाव और संघर्षों का जिक्र करते हुए नथवानी ने लिखा कि लाइसेंस-परमिट राज, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धियों की अड़चनें और शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच वे कभी हताश नहीं हुए। गीता के उपदेश के अनुसार उन्होंने सुख-दुःख और लाभ-हानि को क्षणिक माना।
इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब रिलायंस द्वारा जामनगर में विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य किया जा रहा था। स्थापित हितों द्वारा खड़ी की गई बाधाओं के कारण अधिग्रहण रद्द भी हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके इसी धैर्य का परिणाम है कि वे भारत को तेल के ‘नेट इंपोर्टर’ (आयातक) से ‘नेट एक्सपोर्टर’ (निर्यातक) बनाने में सफल रहे।
चुनौतियों को अवसरों में बदला
धीरूभाई के लिए नफा-नुकसान केवल आंकड़े थे, उनके आत्मविश्वास का पैमाना नहीं। नथवानी ने एक घटना साझा करते हुए बताया कि जब कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के एक बियर कार्टेल ने रिलायंस के शेयर भाव गिराने की साजिश रची, तो धीरूभाई ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया और शेयरधारकों का विश्वास बढ़ाया।
जब प्रतिस्पर्धियों ने अफवाह फैलाई कि धीरूभाई को भारी नुकसान हुआ है और वे लेनदारों को भुगतान नहीं कर सकते, तब धीरूभाई ने खुद आगे बढ़कर लेनदारों को अपना पैसा ले जाने का निमंत्रण दिया। जिन्होंने पैसे मांगे, उन्हें भुगतान भी किया गया। इससे बाजार में उनकी साख और बढ़ गई। वे सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी अपनी जड़ों और बुरे वक्त में साथ देने वालों को कभी नहीं भूले।
आत्मविश्वास और नेतृत्व
गीता के “आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः” (मनुष्य आप ही अपना मित्र और शत्रु है) श्लोक का अनुसरण करते हुए धीरूभाई ने ‘असंभव’ शब्द को अपने शब्दकोश में जगह नहीं दी। जब विशेषज्ञों ने कहा कि “यह संभव नहीं है,” तब भी उन्होंने अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया।
एक प्रदेरक नेता के रूप में उन्होंने भारतीय मध्यम वर्ग को शेयर बाजार से जोड़ा। रिलायंस सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि विश्वास का पर्याय बनी। नथवानी के अनुसार, कर्मचारियों के लिए वे मालिक नहीं बल्कि मार्गदर्शक थे, और उनके नेतृत्व में आदेश से ज्यादा प्रेरणा थी।
परिमल नथवानी के अनुसार, श्रीमद्भगवद्गीता और धीरूभाई अंबानी का जीवन एक ही संदेश देते हैं: फल की चिंता छोड़कर कर्म पर विश्वास रखें, संकटों में धैर्य रखें, निडर होकर बड़े सपने देखें और अपने आचरण से समाज को नई दिशा दें।
(नोट: लेख में व्यक्त विचार लेखक परिमल नथवानी के हैं, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज के कॉरपोरेट अफेयर्स विभाग के डायरेक्टर और राज्यसभा सांसद हैं।)











