अहमदाबाद में सिनेमाघरों को खुलने की अनुमति मिले दो सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन बुक माय शो पर देखने से पता चलता है कि अब तक केवल दो ही सिनेमाघर खुले हैं। पश्चिमी उपनगरों में स्थित दोनों सिनेमाघर गॉडजिला वर्सेज कोंग और लव आज कल जैसी पुरानी फिल्मों की स्क्रीनिंग कर रहे हैं। फिर भी उनके पास दर्शक आ रहे हैं, क्योंकि सिनेमा का मतलब हमेशा सिर्फ फिल्में देखने से कुछ ज्यादा रहा है। इस मुश्किल समय में ये सिनेमाघर सामाजिक दूरी के नियमों के बावजूद इस महामारी से कुछ घंटों की राहत तो देते ही हैं।
मेरे दोस्त ओटीटी फिल्में और धारावाहिक देखते हुए घर पर बड़े परदे का अनुभव पाने के लिए बड़े टीवी खरीद रहे हैं। हालांकि इससे काम नहीं चलता है। जब तक आपके पास पॉज बटन वाला रिमोट है, तब तक टीवी कितना भी बड़ा हो, थोड़ी बहुत देर में ब्रेक ले ही लिया जाता है। यह अंतर कुछ ऐसा ही है, जैसे घर में बनाने और बाहर जाकर पानी पूरी खाने में होता है। असल अनुभव पाने के लिए आपको अपने हाथ से रिमोट का कंट्रोल हटाना होगा।
महामारी की पहली और दूसरी लहर के बीच सिनेमाघर थोड़े समय के लिए खुले थे। मैं फिल्मों का शौकीन हूं, इसलिए मैंने इस मौके का फायदा उठाया और तीन फिल्में देखीं। यह किसी आजादी जैसा था। आलोचकों द्वारा हिंदी फिल्मों को हमेशा “एस्केपिस्ट” यानी पलायनवादी कहा जाता है। यह बात इस समय बहुत सही है, जब हर कोई कोविड के कारण बनी उदासी से बचने की कोशिश में है। इन दिनों हर बातचीत में वायरस की बात होती है, चाहे आप छुट्टी पर हों या दोस्तों के साथ कैफे में। लेकिन एक मूवी हॉल में आप कुछ समय के लिए इससे बच सकते हैं और खुद को एक अलग दुनिया में ले जा सकते हैं, जहां कोई कर्फ्यू और लॉकडाउन नहीं होता।
अपने सुपरहीरो और साइंस फिक्शन के साथ मैंने अंग्रेजी फिल्मों को भी ऐसा ही पलायनवादी पाया है। जनवरी में मैंने अहमदाबाद वन मॉल के सिनेपोलिस सिनेमा में पहली फिल्म टेनेट देखी थी। मेरे दोस्तों ने मुझे कहा था कि इसके विजुअल और साउंड इफेक्ट की वजह से इसे बड़े पर्दे पर देखना मजेदार होगा। हमारी अपनी डिंपल कपाड़िया को एक हॉलीवुड फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका में देखना भी अच्छा अनुभव था। हॉल में बस फिल्मों के हम पांच दीवाने थे और वह अनुभव अद्भुत था। एक साल के अंतराल के बाद इस आउटिंग ने बताया कि हम सिनेमा जाना क्यों पसंद करते हैं।
मैं दो हफ्ते बाद वंडर वुमन 1984 देखने के लिए फिर सिनेपोलिस में गया था। यह फिल्म टेनेट से काफी बेहतर थी, क्योंकि यह कम उलझाऊ और ज्यादा मनोरंजक थी। वंडर वुमन दिल से सोचने वाली एक सुपरहीरो है और फिल्म स्पाइडरमैन सीरीज की तरह हल्की-फुल्की है, बैटमैन सीरीज की तरह भारी-भरकम नहीं। यह दोपहर का शो था। एक बार फिर हॉल में 10 से कम ही लोग थे, लेकिन मॉल गुलजार था।
दूसरी लहर के दौरान सिनेमाघर फिर से बंद होने से पहले मैंने जो आखिरी फिल्म देखी उसका नाम टॉम एंड जेरी था और फिल्म ने मुझे चौंका दिया था। मुझे फिल्म से ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं, लेकिन बस मुझे हर 15 दिन में एक फिल्म सिनेमाघर में देखनी थी और इसीलिए मैंने इसे देखा। उसके बाद जब पता चला कि फिल्म में एक भारतीय विषय को छुआ गया है, तो इससे एक जुड़ाव हो गया। फिल्म न्यूयॉर्क के एक होटल पर केंद्रित है, जहां हर कोई एक अमेरिकी दूल्हे और उसकी भारतीय दुल्हन की सेलिब्रिटी शादी की तैयारी कर रहा है। वह दूल्हा एक भव्य भारतीय शादी के जरिये अपने होने वाले सास-ससुर को प्रभावित करना चाहता है। शादी में उसने हाथियों और मोर के होने की कल्पना की थी। जब मैंने इसे वाइड एंगल सिनेमा में एक शाम के शो में देखा, उस समय हॉल में कुल तीन लोग ही थे। टॉम एंड जेरी एक हिट फिल्म साबित हुई। यह अभी भी अहमदाबाद के सिनेमाघरों में चल रही है। मौका लगे, तो जरूरत देखने जाएं।