अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मुस्लिम विवाह को मुबारत—यानी आपसी सहमति से तलाक—के जरिए खत्म करने के लिए लिखित समझौते की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति ए.वाई. कोगजे और न्यायमूर्ति एन.एस. संजय गौड़ा की खंडपीठ ने राजकोट की पारिवारिक अदालत का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें मुस्लिम दंपति द्वारा मुबारत के तहत विवाह समाप्त करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था। निचली अदालत का कहना था कि आपसी सहमति से तलाक के लिए लिखित समझौता न होने के कारण यह याचिका परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 7 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।
यह दंपति 2021 में बिहार में विवाह बंधन में बंधा था, लेकिन आपसी मतभेद के कारण अलग होने का निर्णय लिया और मुबारत का विकल्प चुना। उन्होंने राजकोट की पारिवारिक अदालत में याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कुरान और हदीस की आयतों का हवाला दिया और कहा—
“ऐसा कुछ नहीं है जो यह दर्शाता हो कि मुबारत के लिए लिखित समझौता होना आवश्यक है, न ही ऐसा कोई प्रचलन है जिसमें आपसी सहमति से तलाक के लिए किसी रजिस्टर में इसका रिकॉर्ड रखना अनिवार्य हो।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि विवाह रजिस्टर और उसके आधार पर जारी निकाहनामा केवल विवाह करने के समझौते की घोषणा मात्र है, और व्यक्तिगत कानून के तहत इसकी रजिस्ट्रेशन कोई अनिवार्य शर्त नहीं है।
अदालत ने कहा, “इसी तरह, अदालत का मानना है कि निकाह खत्म करने के लिए लिखित प्रारूप में समझौता दर्ज करना आवश्यक नहीं है। मुबारत के लिए केवल आपसी सहमति का इजहार ही निकाह खत्म करने के लिए पर्याप्त है।”
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस तर्क को भी गलत ठहराया कि विवाह रजिस्टर को लिखित अनुबंध माना जाए। अदालत ने कहा कि न तो कुरान, न हदीस और न ही मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुबारत के लिए लिखित दस्तावेज को अनिवार्य बताया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका परिवार न्यायालय अधिनियम के तहत सुनवाई योग्य है और मामले को तीन महीने के भीतर नए सिरे से सुनवाई के लिए राजकोट की पारिवारिक अदालत को भेज दिया।
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