अहमदाबाद: गुजरात में दो गाँवों ने नशाबंदी को नया सामाजिक रूप देते हुए ऐसे नियम लागू किए हैं जो राज्य की कानूनी शराबबंदी से भी आगे जाते हैं। इन गाँवों के लोग इसे “आत्मविनाश के खिलाफ सामूहिक सामाजिक समझौता” कहते हैं।
शेरगढ़ गाँव: महिलाओं ने शुरू की पहल
बनासकांठा ज़िले के शेरगढ़ गाँव (जनसंख्या लगभग 1,700) ने करीब 26 साल पहले एक ऐतिहासिक फैसला लिया। गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारी के दौरान हुई बैठक में महिलाओं ने सवाल उठाया कि जब घरों की हालत सामान्य है तो पुरुष शराब और तंबाकू पर पैसा क्यों खर्च करते हैं? बच्चों को भी पैकेट वाला जंक फूड क्यों खिलाया जाता है, जो धीरे-धीरे लत में बदल रहा है?
यही चर्चा आगे बढ़ते हुए गाँव के लिए बड़ा निर्णय बनी। सर्वसम्मति से न सिर्फ शराब और तंबाकू पर, बल्कि पैकेट वाले खाद्य पदार्थ और बाद में पतंगबाज़ी तक पर पाबंदी लगा दी गई।
सख्त जुर्माना और अनोखी सज़ा
गाँव ने नियम तोड़ने वालों के लिए दंड का भी खास प्रावधान किया। कोई भी व्यक्ति यदि शराब पीते या पैकेट वाला सामान बेचते पकड़ा गया तो उसे 500 रुपये का जुर्माना भरना पड़ता और साथ ही पंचायत में एक क्विंटल अनाज जमा करना होता। यह अनाज बाद में गरीब परिवारों और बेसहारा जानवरों में बाँट दिया जाता।
करीब तीन दशकों में गाँव में नियम तोड़ने के केवल चार-पाँच ही मामले सामने आए। शेरगढ़ के सरपंच सतीश पुरोहित बताते हैं,
“गुजरात में शराबबंदी कानून तो है, लेकिन राजस्थान की सीमा पास होने से तस्करी आसान थी। हमारे सामूहिक प्रयासों से इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया। इसके साथ ही गाँव ने मावा (तंबाकू, सुपारी और चूने का मिश्रण) जैसी लत से भी छुटकारा पा लिया।”
गाँव के उपसरपंच अजा चौधरी ने बच्चों के पैकेट स्नैक्स पर रोक लगाने की वजह समझाते हुए कहा,
“बच्चे घर में झूठ बोलते थे कि शिक्षक ने पैसे माँगे हैं, जबकि असल में वे वफ़र्स खरीदते थे। हमने इसे गलत आदत माना और पैकेट पर पूरी तरह रोक लगाकर समस्या खत्म कर दी।”
खांबेला गाँव: कड़े नियम, भारी जुर्माना
शेरगढ़ से लगभग 80 किलोमीटर दूर, मेहसाणा ज़िले के बेचराजी के पास स्थित खांबेला गाँव (जनसंख्या लगभग 3,500) ने और भी सख्त कदम उठाए। पिछले वर्ष यहाँ तीन युवकों की मौत शराब के कारण हुई थी, जिनकी उम्र बीस के आसपास थी।
गाँव के सरपंच वनराज देसाई बताते हैं,
“चुनाव के दौरान महिलाएँ मेरे पास आईं और बोलीं कि हर साल हमारे तीन-चार बेटे इसी तरह मर जाते हैं। अब इसे और नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं था।”
गाँव ने तुरंत कठोर कानून लागू किया। अब जो शराब पीते पकड़ा गया, उसे ₹21,000 का जुर्माना भरना होगा, जबकि शराब बेचने वाले पर ₹25,000 का दंड लगाया जाएगा।
गाँव वालों ने यह भी ऐलान किया कि अगर कोई बाहरी शराब की तस्करी करने की कोशिश करेगा तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। इतना ही नहीं, कई बार नशे में घर लौटे रिश्तेदारों को परिवार वाले दरवाज़े से ही लौटा देते हैं—जब तक कि वे माफी माँगकर नशा छोड़ने की कसम न खा लें।
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