वाशिंगटन: अमेरिका के H-1B वीजा प्रोग्राम को लेकर एक पूर्व वीजा अधिकारी और शोधकर्ता, साइमन हैंकिंसन (Simon Hankinson) ने चौंकाने वाले दावे किए हैं। भारत में वीजा अधिकारी के तौर पर काम कर चुके हैंकिंसन ने अपने 25 साल पुराने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उन्हें शुरुआत में ही समझ आ गया था कि इस प्रोग्राम में कुछ बड़ी खामियां हैं।
हैंकिंसन ने अपनी एक ओपिनियन पीस (राय) में लिखा कि H-1B वीजा का असली मकसद अमेरिका में ‘स्पेशलिटी वर्कर्स’ यानी विशेष कौशल वाले कामगारों को लाना था। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। उन्होंने बताया कि 25 साल पहले भी जब वे वीजा इंटरव्यू लेते थे, तो उनके सामने आने वाले आवेदक कोई खास विशेषज्ञ नहीं, बल्कि औसत कॉलेज ग्रेजुएट्स होते थे।
‘भारतीय और अमेरिकी छात्रों की तुलना करना गलत’
हैंकिंसन ने शिक्षा प्रणाली और छात्रों पर कर्ज के मुद्दे को गंभीरता से उठाया। उनका मानना है कि एक अमेरिकी छात्र की तुलना भारतीय या चीनी छात्र से करना पूरी तरह अनुचित है।
उन्होंने तर्क दिया कि भारत या चीन में छात्र अक्सर सरकारी या सस्ती शिक्षण संस्थाओं में पढ़ते हैं, जहां वे बहुत कम खर्च में बीए, एमए या पीएचडी की डिग्री हासिल कर लेते हैं और उन पर कोई खास कर्ज नहीं होता। इसके ठीक उलट, अमेरिका में छात्रों को उसी स्तर की शिक्षा पाने के लिए हजारों डॉलर का कर्ज लेना पड़ता है।
हैंकिंसन ने कहा, “अमेरिकी छात्र कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण उन कम वेतन वाली नौकरियों को स्वीकार नहीं कर सकते, जिन्हें H-1B वीजा वाले उनके प्रतियोगी आसानी से ले लेते हैं।”
‘विदेशों में भर्ती, घर में छंटनी’ का खेल
कंपनियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए हैंकिंसन ने दिग्गज कंपनी अमेजॉन (Amazon) का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि साल 2025 में अमेजॉन को 10,000 से अधिक H-1B वीजा की मंजूरी मिली, लेकिन उसी साल कंपनी ने 30,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की घोषणा भी की।
उन्होंने तीखा सवाल पूछा, “क्या अमेरिकी कर्मचारियों को दोबारा प्रशिक्षित (Re-assign) करने की कोई कोशिश की गई?” हैंकिंसन के अनुसार, कई बड़ी अमेरिकी कंपनियां इसी पैटर्न पर चल रही हैं—वे विदेशों में भर्तियां कर रही हैं और अपने ही देश में लोगों को नौकरी से निकाल रही हैं।
‘असली जरूरत बस एक बस भरने जितनी है, स्टेडियम की नहीं’
हैंकिंसन का कहना है कि अमेरिकी कंपनियों को वास्तव में उतने विदेशी विशेषज्ञों की जरूरत नहीं है, जितना दिखाया जाता है। उन्होंने लिखा, “सच तो यह है कि बड़ी कंपनियों को जिन असली ‘स्पेशलिटी वर्कर्स’ की जरूरत है, वे एक बस में फिट हो सकते हैं, उन्हें स्टेडियम भरने की जरूरत नहीं है। और इन चुनिंदा लोगों के लिए कंपनियों को अच्छी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
AI कंपनियों और भविष्य पर राय
लेख के अंत में उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कंपनियों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर ये कंपनियां टॉप टैलेंट के लिए ‘साइनिंग बोनस’ के रूप में करोड़ों डॉलर देने को तैयार हैं, तो वे कुछ जरूरी विदेशी कामगारों को भी हाई सैलरी दे सकती हैं।
उन्होंने वाशिंगटन की नीतियों पर असहमति जताते हुए कहा, “कुछ लोग चाहते हैं कि विदेशी कामगारों के लिए वीजा की संख्या बढ़ाई जाए। कुछ का यह भी मानना है कि अमेरिकियों को अपनी नौकरियों के लिए पूरी दुनिया से मुकाबला करना चाहिए, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता।”
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