नई दिल्ली/लंदन: भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA) पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार लगभग 34 अरब डॉलर तक बढ़ने की संभावना है। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंदन यात्रा के दौरान औपचारिक रूप से संपन्न हुआ, जिसमें भारत की ओर से वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और यूके की ओर से बिजनेस सेक्रेटरी जोनाथन रेनॉल्ड्स ने हस्ताक्षर किए।
यह समझौता पिछले एक दशक में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता है और ब्रेक्ज़िट के बाद यूके का पहला बड़ा व्यापारिक समझौता भी है। दोनों देशों की सरकारों ने इसे आपसी आर्थिक संबंधों में एक मील का पत्थर बताया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस समझौते को “साझा समृद्धि के लिए नया रोडमैप” बताया। इससे किसानों, मछुआरों, छोटे व्यवसायों और पेशेवरों सहित कई क्षेत्रों को लाभ होगा। भारतीय उत्पाद जैसे कि टेक्सटाइल, रत्न-आभूषण, समुद्री खाद्य पदार्थ, चमड़ा उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान और प्रोसेस्ड फूड्स को अब यूके बाजार में लगभग शून्य शुल्क पर प्रवेश मिलेगा।
चॉकलेट, कार, व्हिस्की और कॉस्मेटिक्स होंगे सस्ते
यूके के उत्पाद जैसे कि मेडिकल डिवाइसेज़, एयरोस्पेस पार्ट्स, कारें, व्हिस्की, चॉकलेट और कॉस्मेटिक्स अब भारत में पहले से कहीं सस्ते होंगे। इन पर लगने वाला औसत टैरिफ 15% से घटकर लगभग 3% तक आ जाएगा।
EY इंडिया के ट्रेड पॉलिसी लीडर अग्नेश्वर सेन ने इस समझौते को परिवर्तनकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि प्रमुख भारतीय निर्यातों पर शुल्क समाप्त होने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, खासकर श्रम-प्रधान क्षेत्रों में। उन्होंने यह भी बताया कि इस समझौते में भारतीय सेवा पेशेवरों के लिए वीजा में ढील और एक महत्वपूर्ण सोशल सिक्योरिटी छूट जैसी प्रावधान शामिल हैं।
“यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य की साझेदारी का आधार तैयार करता है। दोनों देशों के उपभोक्ताओं को अब ज़्यादा विकल्प और कम कीमतों का लाभ मिलेगा,” – अग्नेश्वर सेन
भारतीय निर्यात और नौकरियों को मिलेगा बड़ा बढ़ावा
- चमड़ा उद्योग अगले दो वर्षों में यूके बाजार में 5% अतिरिक्त हिस्सेदारी पाने की उम्मीद कर रहा है।
- इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात 2030 तक दोगुना हो सकता है।
- केमिकल निर्यात अगले वित्तीय वर्ष में 40% तक बढ़ने की संभावना है।
- सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाएं इस समझौते के लागू होने के बाद हर साल 20% की दर से बढ़ सकती हैं।
अब भारतीय पेशेवरों को यूके में 35 क्षेत्रों में काम करने की अनुमति मिलेगी, जिसमें दो साल तक बिना स्थानीय कार्यालय खोले काम किया जा सकेगा। इससे फ्रीलांसर, शेफ, म्यूज़िशियन, योग प्रशिक्षक और कॉन्ट्रैक्ट आधारित कामगारों को नए अवसर मिलेंगे।
उद्योग से जुड़े अधिकारियों का अनुमान है कि हर साल 60,000 से अधिक आईटी पेशेवरों को इसका लाभ मिलेगा, खासकर TCS, इंफोसिस, टेक महिंद्रा, HCL और विप्रो जैसी कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को।
एक और महत्वपूर्ण प्रावधान के तहत, तीन साल तक की छोटी अवधि की नियुक्तियों पर यूके में भारतीय पेशेवरों को सोशल सिक्योरिटी टैक्स नहीं देना होगा, जिससे कंपनियों और कर्मचारियों दोनों पर वित्तीय और कानूनी बोझ कम होगा।
“कर्मचारी अब अपने देश की सोशल सिक्योरिटी योजना में योगदान जारी रख सकेंगे, जिससे उनका योगदान निरंतर बना रहेगा। यह वैश्विक कंपनियों के लिए विदेशी नियुक्तियों को और अधिक किफायती बनाएगा,” – पुनीत गुप्ता, पार्टनर, EY इंडिया
यूके को क्या फायदा मिलेगा?
यूके के नजरिए से देखा जाए तो, भारत को किए जाने वाले 90% निर्यात अब सस्ते हो जाएंगे, और आने वाले दस वर्षों में 85% निर्यात पूरी तरह शुल्क-मुक्त हो जाएंगे। साथ ही, ब्रिटिश कंपनियां अब 2,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की सरकारी परियोजनाओं में बोली लगा सकेंगी, जिससे 40,000 से अधिक टेंडर हर साल खुल सकेंगे।
यूके अधिकारियों का कहना है कि इससे 2,000 से अधिक नई नौकरियां पैदा होंगी और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को £2.2 बिलियन वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा।
इस समझौते में वित्तीय सेवाओं और बौद्धिक संपदा पर समर्पित अध्याय शामिल हैं। यूके की वित्तीय कंपनियों को भारत में अब भारतीय कंपनियों के बराबर दर्जा मिलेगा। साथ ही, यह आश्वासन भी दिया गया है कि यह समझौता भारत की सस्ती दवाओं के उत्पादन पर असर नहीं डालेगा।
यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने इसे “ब्रिटेन के लिए बड़ी जीत” बताया। उन्होंने कहा कि यह समझौता हजारों नौकरियां पैदा करेगा और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा देगा। इस समझौते के तहत 26 ब्रिटिश कंपनियां भारत में व्यापार शुरू करेंगी, जबकि भारतीय कंपनियों ने यूके में लगभग £6 बिलियन निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।










