इंफोसिस ने एचआर एक्जीक्यूटिव से 'भारतीय मूल के लोगों', 'बच्चों वाली महिलाओं' को नहीं रखने को कहा: अमेरिकी कोर्ट में शिकायत

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इंफोसिस ने एचआर एक्जीक्यूटिव से ‘भारतीय मूल के लोगों’, ‘बच्चों वाली महिलाओं’ को नहीं रखने को कहा: अमेरिकी कोर्ट में शिकायत

| Updated: October 9, 2022 15:20

इंफोसिस में प्रतिभावान लोगों को नौकरी पर रखने वाले  विभाग की पूर्व उपाध्यक्ष जिल प्रेजीन ने एक अमेरिकी अदालत को बताया है कि उन्हें बेंगलुरु मुख्यालय वाली आईटी कंपनी ने भारतीय मूल के लोगों,  बच्चों वाली महिलाओं और 50 या उससे अधिक उम्र के लोगों को काम पर रखने से बचने के लिए कहा था। यह दूसरी बार है जब भारतीय आईटी कंपनी पर अमेरिका में काम पर रखने के तरीकों में भेदभाव के आरोप लगे हैं।

न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले के लिए यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने शुक्रवार को इंफोसिस के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें प्रेजीन द्वारा जवाबी कार्रवाई और शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण  को लेकर दायर मुकदमे को खारिज कर देने की अपील की गई थी। प्रेजीन ने इंफोसिस के साथ-साथ पूर्व सीनियर वाइस प्रेसिंडेंट और कंसल्टिंग के प्रमुख  मार्क लिविंगस्टन के अलावा पूर्व भागीदारों डैन अलब्राइट और जेरी कर्ट्ज के खिलाफ मुकदमा दायर कर रखा है।

अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी का आरोप लगाते हुए इंफोसिस की पूर्व उपाध्यक्ष ने अपने मुकदमे में कहा कि कंपनी के सीनियर अधिकारियों द्वारा गलत निर्देशों का पालन करने पर आपत्ति जताने पर कंपनी के पार्टनर कर्ट्ज और अलब्राइट उनसे खफा रहने लगे।

प्रेजीन को फर्म के कंसल्टिंग डिवीजन में पार्टनर या वीपी के रूप में काम करने के लिए “हार्ड-टू-फाइंड एक्जीक्यूटिव” की भर्ती के लिए रखा गया था। वह 59 वर्ष की थीं, जब उन्हें 2018 में नौकरी दी गई थी।

उनकी शिकायत के अनुसार, उम्र, लिंग और देखभाल करने वाले की स्थिति  के आधार पर भेदभाव वाली पॉलिसी को देखकर वह चौंक गई थी। शिकायत में आगे कहा गया है कि उन्होंने “अपनी नौकरी शुरुआती दो महीनों में इस वर्क कल्चर को बदलने की कोशिश की, लेकिन “इन्फोसिस के भागीदारों- जेरी कर्ट्ज और डैन अलब्राइट ने उन्हें इससे रोक दिया और उनके प्रति दुश्मनी रखने लगे।

शिकायत में आगे बताया गया है कि उनके खिलाफ न सिर्फ न्यूयॉर्क शहर के मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन किया गया, बल्कि नौकरी से निकाल भी दिया गया।

कोर्ट ने दूसरे पक्ष से 30 सितंबर को आदेश की तारीख से 21 दिनों के भीतर आरोपों का जवाब देने को कहा है। दरअसल इंफोसिस और आरोपी अधिकारियों ने इस आधार पर मुकदमा खारिज करने की अपील की थी कि शिकायतकर्ता ने सबूत के रूप में विशिष्ट टिप्पणियों को उजागर नहीं किया था।

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