नई दिल्ली/गांधीनगर — गुजरात के दाहोद ज़िले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत हुए कथित घोटाले ने तूल पकड़ लिया है। राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने पुष्टि की है कि दाहोद जिले में मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिन्हें खुद सरकारी अधिकारियों ने दर्ज कराया है।
किन अधिकारियों ने दर्ज कराई FIR?
ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान ने जानकारी दी कि ये एफआईआर दाहोद जिले में बी.एम. पटेल, एस.वी. बम्भरोलिया और जे.जी. रावत नामक अधिकारियों द्वारा दर्ज कराई गईं। ये सभी अधिकारी दाहोद स्थित डीआरडीए (District Rural Development Agency) से जुड़े हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए गुजरात सरकार ने देवगढ़ बारिया और धनपुर तालुका में जांच के लिए 10 टीमें गठित की हैं।
सरकार क्यों नहीं करवा रही CBI जांच?
सांसद शक्ति सिंह गोहिल द्वारा उठाए गए सवालों में यह भी पूछा गया कि जब भ्रष्टाचार की पुष्टि स्वयं सरकारी दस्तावेज़ों से हो रही है, तो मामले की सीबीआई जांच क्यों नहीं कराई जा रही। केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि मनरेगा की निगरानी और क्रियान्वयन संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। यदि कोई शिकायत प्राप्त होती है तो संबंधित राज्य या केंद्रीय टीमें जांच करती हैं।
शक्ति सिंह गोहिल का आरोप: “भाजपा सरकार में करोड़ों का घोटाला”
कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने एक प्रेस नोट जारी कर आरोप लगाया कि गुजरात में भाजपा सरकार के कार्यकाल में मनरेगा योजना में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है। गोहिल के अनुसार, दाहोद में जिन ज़मीनों पर काम हुआ है, वे खुद राज्य सरकार के एक मंत्री के नाम पर हैं। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि जब खुद की ज़मीन पर बाँध, नहर और पौधारोपण जैसे कार्य हो रहे हों और करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हों, तो यह कैसे संभव है कि मंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही?
उन्होंने दावा किया कि नियमों के अनुसार निजी ज़मीनों पर मनरेगा का कार्य तभी संभव है जब वह ज़मीन अनुसूचित जाति या जनजाति समुदाय के गरीब व्यक्ति की हो, और उस व्यक्ति का जॉब कार्ड होना भी अनिवार्य है। गोहिल ने आरोप लगाया कि इन शर्तों का पालन नहीं किया गया।
सत्ता का दुरुपयोग और लीपापोती का आरोप
शक्ति सिंह गोहिल ने यह भी कहा कि दाहोद के अलावा छोटा उदेपुर जिले के घोड़ा में भी बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आई हैं। मनरेगा में कार्य और सामग्री पर खर्च का अनुपात 60:40 होना चाहिए, लेकिन घोड़ा में यह संतुलन नहीं रखा गया और करोड़ों रुपये सिर्फ मटेरियल सप्लाई के नाम पर खर्च कर दिए गए।
उन्होंने मांग की कि दोषी अधिकारियों और मंत्रियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए और इस घोटाले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित हो।










