म्यांमार- आंग सान सू की को 7 और साल की सजा - Vibes Of India

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म्यांमार- आंग सान सू की को 7 और साल की सजा

| Updated: December 30, 2022 17:22

म्यांमार (Myanmar) में एक सैन्य अदालत (Military Court) ने शुक्रवार को देश की अपदस्थ नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) को उनके खिलाफ आपराधिक मामलों की कड़ी में भ्रष्टाचार के एक और मामले में दोषी ठहराया convicted in another corruption case। उनको सात साल जेल की सजा सुनाई sentenced to seven years in prison। वो फरवरी 2021 से जेल में बंद हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा के बाद भी उनको राहत नहीं मिल सकी है।

33 साल जेल में रहेंगी सू की

फरवरी 2021 में सेना द्वारा सू की की निर्वाचित सरकार को गिराए जाने के बाद से उन पर कई केस लगाए गए। अब इस सजा के जुड़ने के साथ उन्हें कुल 33 वर्ष जेल में बिताने होंगे। उन्हें कई अन्य अपराधों के लिए भी दोषी ठहराया गया था। इस सजा से पहले उन्हें कुल 26 साल की कैद की सजा सुनाई जा चुकी है।

उनके समर्थकों का कहना है कि उनके खिलाफ आरोपों का उद्देश्य सत्ता को अपने अधिकार में लेना है। सेना उन्हें राजनीति से दूर रखना चाहती है। म्यांमार के सैन्य शासन ने अगले साल चुनाव कराने का वादा किया है।

आंग सान सू की समेत हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

सू Aung San Suu Kyi की और उनकी टीम के कई लोगों को एक ही अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। 2021 में म्यामांर में हुए तख्तापलट में सेना ने सत्ता पर कब्जा करने के बाद प्रधानमंत्री रही आंग सान सू की समेत हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

75 पार कर चुकी नोबेल पुरस्कार Nobel Prize विजेता पर चुनावी धोखाधड़ी और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप हैं। अगर सभी आरोपों में उन्हें दोषी ठहराया जाता है तो सू की को 190 साल से अधिक की जेल की सजा का सामना करना पड़ेगा। म्यामांर में हुए तख्तापलट के दौरान तकरीबन 2 हजार लोग मारे गए थे। हजारों से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था।

1992 में जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से किया गया था सम्मानित

आंग सान सू की Aung San Suu Kyi को 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। 1992 में उनको भारत सरकार ने जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आंग सान सू का जन्म 1945 म्यांमार में हुआ। वो बर्मा के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं। उनकी 1947 में राजनीतिक हत्या कर दी गयी थी। सू की ने बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए लम्बा संघर्ष किया। वो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचीं, लेकिन फिर सेना से उन्हें हटा दिया।

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