1961 में सिंगापुर के “फादर” कहे जाने वाले ली कुआन यू ने एक बार अमेरिका से नाराज़ होकर अपने सहयोगियों से कहा था – “हर पहलू की गहराई से जांच करो, लेकिन याद रखो हम दुश्मन से नहीं, एक दोस्त की मूर्खता से निपट रहे हैं।”
आज वही भाव भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लागू होता दिख रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आने वाले सभी उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने और भारत को “दुनिया में सबसे कड़े और आपत्तिजनक गैर-आर्थिक अवरोध लगाने वाला देश” कहने के बाद भी मोदी की चुप्पी चर्चा का विषय बन गई है।
क्या यह चुप्पी एक रणनीतिक मौन है जो अंततः भारत को लाभ देगा, या यह चुप्पी भारत की अर्थव्यवस्था को और गर्त में ले जाएगी?
चुप्पी या चतुराई: मोदी की रणनीति पर सवाल
मोदी के करीबी और विदेशों में बसे खासकर गुजराती समर्थकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में एक चतुर रणनीति अपना रहे हैं। उनका मानना है कि आने वाले समय में मोदी अमेरिका से भारत के पक्ष में एक मजबूत समझौता करवाएंगे — और तब वह विजेता बनकर उभरेंगे।
वे मानते हैं कि मोदी का दृष्टिकोण है – “No deal is better than a bad deal.” यानी कोई भी समझौता न करना, एक बुरे समझौते से बेहतर है।
उधर ख़बरें ये भी हैं कि भारत ने अमेरिका को खुश करने के लिए चुपचाप रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। इससे यह आभास मिलता है कि भारत अमेरिका की नाराज़गी नहीं चाहता।
ट्रंप का तीखा हमला: भारत पर ‘Dead Economy’ का आरोप
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिखा – “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि भारत रूस के साथ क्या करता है। हम भारत से बहुत कम व्यापार करते हैं क्योंकि उनके टैरिफ दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मृत है।”
ट्रंप की इस टिप्पणी ने भारतीय राजनीतिक गलियारों में तूफान ला दिया है।
राहुल गांधी का पलटवार: “मोदी ने अर्थव्यवस्था को मारा है”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्रंप के इस बयान को “सच की स्वीकारोक्ति” बताया। उन्होंने कहा, “ट्रंप सही कह रहे हैं। पूरे देश को पता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मर चुकी है – सिवाय प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के।”
राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने एक उद्योगपति मित्र को फायदा पहुंचाने के लिए देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया। उन्होंने खुलकर “अदाणी जी” का नाम लिया — गुजरात आधारित वह औद्योगिक समूह जो वैश्विक स्तर पर शीर्ष अमीरों में आता है।
कूटनीति की बारीकियां: क्या मोदी ली कुआन यू के रास्ते पर?
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस स्थिति की तुलना 1971 में इंदिरा गांधी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को लिखे पत्र से की —
“इस संकट की घड़ी में हम शांति नहीं, तुष्टिकरण खरीद रहे थे।”
ली कुआन यू की सोच भी कुछ ऐसी ही थी। उन्होंने कभी अमेरिकी CIA की साजिश को उजागर किया था, लेकिन अंततः अमेरिका की “महाशक्ति” स्थिति को देखते हुए विवाद को सार्वजनिक नहीं किया।
क्या अमेरिका की “बेवकूफी” को नजरअंदाज करना बेहतर है?
ली कुआन यू के अनुसार, अमेरिका के साथ रिश्तों में समझदारी और संयम जरूरी है। उनका यह दृष्टिकोण आज भारत पर सटीक बैठता है।
भारत आज एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां अमेरिका (वर्तमान महाशक्ति) और चीन (आगामी महाशक्ति) दोनों से रिश्तों को संभालना जरूरी है। ऐसे में शायद “मौन ही सबसे बड़ी रणनीति है।”
आने वाले कुछ हफ्तों में इस टैरिफ विवाद का हल निकलता दिख नहीं रहा है। लेकिन चर्चा, अटकलें और आरोप-प्रत्यारोप बढ़ते रहेंगे।
सच्चाई यह है कि फिलहाल भारत इस टैरिफ हमले को एक “मूर्ख दोस्त की गलती” मानकर नजरअंदाज करना चाहता है। यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए सुविधाजनक है। बाकी सब दिखावा है।
(लेखिका एशिया जर्नलिज्म फ़ेलोशिप (सिंगापुर) की पहली भारतीय पत्रकार हैं और ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में व्याख्यान भी दे चुकी हैं। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की पहली राष्ट्रपति जीत और उनके ‘नमस्ते ट्रंप’ दौरे को कवर किया था।)










