शाकाहार: जानवरों के लिए क्रूरता मुक्त, तो मनुष्य के लिए स्वस्थ जीवन - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

शाकाहार: जानवरों के लिए क्रूरता मुक्त, तो मनुष्य के लिए स्वस्थ जीवन

| Updated: May 11, 2022 13:54

हम लगातार बदलते रुझानों वाले युग में रह रहे हैं। ‘शाकाहारी’ उन प्रवृत्तियों में से एक है, जो काफी समय से चली आ रही है। यह जीने के शुद्ध ‘शाकाहारी’ तरीके को संदर्भित करती है और यह शाकाहार को बढ़ावा देती है या इस विज्ञान में विश्वास करती है। इस शाकाहार में किसी भी रूप में पशु उत्पादों से परहेज होता है। ये दूध का सेवन तो नहीं ही करते, चॉकलेट भी नहीं खाते। इसलिए कि उसमें दूध का थोड़ा अंश होता है।इसके अलावा यह दर्शन जानवरों को वस्तुओं के रूप में ही अस्वीकार करता है। ऐसा शाकाहारी वह है जो इस आहार या दर्शन का पालन करता है। टीम वीओआई ने कुछ लोगों से बात की, जो इस जीवन शैली का पालन करते हैं। उनसे उनकी प्रेरणा, उनके भोजन, वे इस जीवन को कैसे निभा पाते हैं और इस वर्तमान प्रवृत्ति से संबंधित ऐसे और भी बहुत सी बातों को जानने की कोशिश की।

रोजान देसाई

23 वर्षीय देसाई आणंद के रहने वाले हैं। वह आणंद शाकाहारी आंदोलन के अध्यक्ष और शाकाहारी आउटरीच के जिला प्रबंधक हैं। वह मुसलमान हैं, जिनके लिए मांस खाना और जानवरों को मरते हुए देखना बचपन से ही एक सामान्य बात थी, जिसे अपने समुदाय में रोजाना के भोजन में शामिल होते ही देखा। लेकिन एक दिन एक एनजीओ से संपर्क ने उनका नजरिया बदल दिया और उन्हें ‘शाकाहारी’ बना दिया।

देसाई ने कहा, “मुझे कुत्ते या बिल्ली जैसी कुछ प्रजातियों के लिए दया आती थी, लेकिन मैं चिकन, बकरी और अंडे खाता था। 18 साल की उम्र में मुझे पशुओं के बारे में ज्ञान हुआ और फिर मैं शाकाहारी बन गया। फिर मैं कई गैर सरकारी संगठनों और शिविरों के साथ काम करने लगा। तब मेरी मुलाकात अनी नाम की एक महिला से हुई, जो ‘ अनानमस फॉर द वॉयसलेस’ से बड़ौदा आई थी, जहां सभी पशु प्रेमियों को आमंत्रित किया गया था। फिर उन्होंने एक अभियान शुरू किया और हम डेयरी और मांस उद्योग में पशु क्रूरता के बारे में बातें कीं। बाद में जब मैं अपने छात्रावास में गया, तो सभी तरह के पशु क्रूरता के बारे में शोध किया। फिर मैं रातों-रात शाकाहार की ओर मुड़ गया, जो भारत में कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि हम ऐसी संस्कृति में नहीं हैं जहां हम सबवे और एमसीडी या केएफसी पर निर्भर हैं। हम पौधा आधारित संस्कृति (सात्विक) से हैं। यहां हम जीने के लिए रोटी, सब्जी,दाल और चावल खाते हैं, जो पूरी तरह शाकाहार होते हैं।”

उन्होंने कहा कि उनके जैसे लोगों के लिए जो इस जीवन शैली में विश्वास करते हैं, यह सिर्फ आहार ही नहीं है। यह एक जीवन शैली है। इसलिए कि वे पशु क्रूरता और पशु दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ रहे हैं। वह कहते हैं, “अगर हम अपनी पाचन तंत्र को देखें तो यह पौधों पर आधारित भोजन के लिए ही बनाया गया है। हमें मांस खाने से पहले पकाना होगा, क्योंकि हम इसे पचा नहीं सकते हैं। अगर यह प्राकृतिक है और हम मांस के आदी हैं, तो हम इसे कच्चा पचा सकते थे। अगर हम पौधे खाते हैं तो उसमें कोई खराब वसा या कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है। इतना ही नहीं, हम जानवरों से संक्रमित होने वाली बीमारियों से भी सुरक्षित रह सकते हैं। पौधों में सभी ओमेगा, प्रोटीन, विटामिन और आवश्यक सोडियम और दुर्लभ पूरक हैं।”

अपने स्वस्थ और संतुलित भोजन के लिए वह इन उत्पादों पर निर्भर करते हैं: सोयाबीन का दूध, बादाम का दूध, मिल का चावल, जई का दूध, नारियल का दूध, शाकाहारी पनीर, मक्खन, पनीर (टोफू), क्रीम और छाछ।


अल्पा याज्ञनिकी

50 वर्षीया अल्पा याज्ञिक शाकाहारी डॉक्टर हैं। वह प्राकृतिक चिकित्सा करती हैं और 13 वर्षों से शाकाहारी हैं। वह इस आहार का सेवन इतने सालों से कर रही हैं, कि तब यह दर्शन चलन में भी नहीं आया था। याज्ञनिक ने कहा, “तब विशुद्ध शाकाहारी उत्पाद कतई उपलब्ध नहीं था। ऐसे में शुरुआत से ही सब कुछ खुद करती थीं। मेरा यही अनुभव रहा कि मूल रूप से, आजकल हम जिन डेयरी उत्पादों का उपभोग कर रहे हैं, वे ही सबसे बड़ी समस्या पैदा करने वालों में से एक हैं। “

शाकाहार की ओर मुड़ने की अपनी कहानी सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जब वह प्राकृतिक चिकित्सा कर रही थीं, तब वह यह नहीं समझ पाती थीं कि विज्ञान आखिर दुग्ध उत्पादों से भी दूर रहने को क्यों कहता है। फिर जब उन्होंने ‘नो डेयरी’ के पीछे के विज्ञान को समझना शुरू किया, तो उन्होंने उन लोगों के यहां गईं, जो जानवरों के दूध निकालते थे। उन्होंने वहां जानवरों को इंजेक्शन देते हुए पाया, ताकि वे अधिक दूध दे सकें। अगर हम इसके बारे में सरल तरीके से सोचें, तो सोचें कि एक मां बच्चे को जन्म देते समय दूध देती है। यह प्रक्रिया स्वाभाविक है और एक महिला के शरीर में कुछ हार्मोन के कारण होती है। अब गाय को साल भर दूध देते रहने के लिए कई तरह के हानिकारक हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया उनके लिए बेहद दर्दनाक होती है और उस दूध का सेवन करने वाले मनुष्यों में भी गंभीर समस्याएं पैदा करती हैं।

उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि डेयरी के सेवन से युवा महिलाओं में पीसीओडी और पीसीओएस जैसी हार्मोनल समस्याएं हो रही हैं। याज्ञनिक के अनुसार, ”इतने सारे सबूत हैं जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल जैसे जीवनशैली संबंधी विकारों को बढ़ाते हैं। इन बीमारियों का सीधा संबंध डेयरी से है।”

याज्ञनिक घर के बने खाद्य उत्पादों जैसे कुल्फी, नारियल पानी, मिठाई, तुलसी, गुड़, लेमन ग्रीन टी और ऐसे कई पौधे-आधारित उत्पादों का सेवन करके अपनी जीवन शैली को बनाए रखती है, जो विटामिन-बी से भरपूर होते हैं।


रंजीत कोंकर

58 साल के रंजीत कोंकर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद में प्रोफेसर हैं। स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में पेटा के संस्थापक इंग्रिड न्यूकिर्क के एक व्यावहारिक व्याख्यान में भाग लेने के बाद 1991 में जब वह 27 वर्ष के थे, तब से ही शाकाहारी हो गए। अपनी कहानी सुनाते हुए कोंकर ने कहा, “वैसे इस तरह का शाकाहारी बनने से पहले 13 साल की उम्र में ही एक बकरी को देखकर आम शाकाहारी बन गया था। उस बकरी मांस मुझे खाना था। उसे मेरी आंखों के सामने मारा गया। वह खौफनाक दृश्य मुझे हमेशा याद रहा और जानवरों के लिए मेरे अंदर करुणा जगी। मुझे ऐसे लोगों पर लेख मिले, जो दूध भी नहीं पीते (असल “शाकाहारी” उन्हें कहा जाता है, यह मैंने सीखा)। 1991 में मैं स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (जहां पीएचडी कर रहा था) में एक भाषण में शामिल हुआ था। पेटा की संस्थापक इंग्रिड न्यूकिर्क ने वहां बताया कि पशुपालन उद्योग में जानवरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। फिर तस्वीरों के माध्यम से शाकाहार के लिए नैतिक तर्कों को सामने रखा। यही मेरे लिए शाकाहारी होने के लिए प्रेरक बिंदु बना। इस बात को 31 साल हो गए हैं।”

इस आहार में विश्वास करने का अपना कारण बताते हुए उन्होंने कुछ तथ्य रखे, जो इस तरह हैं:

  1. पशु उत्पादों को बिना नुकसान पहुंचाए उनसे प्राप्त करना संभव नहीं है। वे इसका जमकर विरोध करते हैं।
  2. आज हमें जानवरों के शरीर (जैसे, मांस, दूध, शहद, चमड़ा) के उत्पादों की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है- हमारी सभी जरूरतों को पौधे और खनिज के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।
  3. जानवरों के शरीर के अंगों, जैसे मांस और हड्डियों और त्वचा- को मारे बिना लेना असंभव है। लेकिन दूध लेने से भी मौत हो जाती है- अगर कसाई के हाथों नहीं मारा गया, तब भी वह दूध के अभाव में मर जाता है। यह एक खुली बात है।
  4. गाय इंसानों को दूध नहीं देती, सिर्फ अपने बछड़ों को देती है। ऐस हर स्तनधारी प्रजाति के साथ होता है, जिनमें हम भी शामिल हैं। हमने प्रकृति से ही मां का दूध पहले से पैक किया हुआ, कस्टम-मेड, माउथ-डिलीवरी द्वारा हासिल है।
  5. मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अन्य प्रजातियों का दूध पीता है। कुत्ते भैंस का दूध नहीं पीते, भैंस गधे का दूध नहीं पीती…हर कोई अपनी प्रजाति का ही दूध पीता है- यही प्रकृति का नियम है।

कोंकडर इन खाद्य उत्पादों का सेवन करके अपनी जीवन शैली को बनाए रखते हैं: सामान्य भारतीय भोजन- रोटी, सब्जी, दाल, चावल। सभी शाकाहारी हैं। बिना घी की रोटियां लें। मक्खन, पनीर, छाछ, दही, पनीर आदि से बचें। यदि आप शाकाहारी पनीर, शाकाहारी छाछ आदि का स्वाद लेना चाहते हैं, तो इनके लिए भी विकल्प उपलब्ध हैं।


चिराग पटेल

26 वर्षीय फूड एनालिस्ट चिराग बताते हैं कि कैसे दूध की भयावहता और मानव शरीर के लिए इसकी अस्वास्थ्यकर संगति के कारण ही उन्हें इस नई जीवनशैली को अपनाने की ओर प्रेरित किया।

पटेल ने कहा, “कॉलेज में डेयरी उद्योग पर एक शोध प्रबंध लिखते समय मैं शाकाहारी बन गया। इतने लंबे समय से कहा जा रहा है कि गाय का दूध मनुष्यों के लिए अस्वास्थ्यकर है। मुझे हिलाकर रख दिया। जैसा कि मैंने कारखाने की खेती और वास्तविकताओं के बारे में और अधिक सीखा। डेयरी उद्योग से मैं और भी अधिक भयभीत हो गया। एक पल में लगा, जैसे मेरा खून बह रहा है। दिल इसे और नहीं सह सकता था। इसलिए मैंने डेयरी उत्पाद, अंडे और अनगिनत अन्य पशु उत्पादों को खाना बंद कर दिया।”

वह आगे बताते हैं, “कनेक्शन बनाना, जैसा कि शाकाहारी कहते हैं, मैंने वही करना शुरू कर दिया था। मैंने चिकन को अपने सामने चिकन बर्गर से अलग नहीं देखा, जब मैंने दोनों को एक साथ देखा। कोई रास्ता नहीं था। मेरे लिए यह जानते हुए बर्गर का सेवन करना कठिन था, कि यह कभी एक जानवर था। मैं जानवर को यह सोचे बिना नहीं खा सकता था कि मेरे पास आने से पहले उसे कैसे नुकसान पहुंचाया गया होगा।”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d