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28 साल बाद सुलझा: गुजरात में हत्या के आरोप में केरल में गिरफ्तार हुआ ओडिशा का शख्स

| Updated: February 26, 2023 1:26 pm

लगभग 28 साल पहले सूरत की यहूदी बस्ती में एक पान की दुकान पर एक ओडिया प्रवासी के आवारा कुत्ते के भौंकने से क्राइम की एक सीरीज ही शुरू हो गई थी। इनमें हत्या तक शामिल थी। अब लगभग तीन दशकों के बाद उन मामलों में गिरफ्तारी हुई है।

ओडिशा के गंजाम जिले के बलकोंडा गांव के 52 वर्षीय कृष्ण प्रधान की 4 मार्च, 1995 को सूरत में 22 वर्षीय साथी ओडिया प्रवासी शिवराम नायक की हत्या के सिलसिले में तलाश थी। वह 28 साल बाद वह 27 जनवरी को केरल के पठानमथिट्टा जिले के अडूर से गिरफ्तार किया गया, जहां वह 2007 से रह रहा था।

प्रधान को गिरफ्तार करने वाले सूरत सिटी क्राइम ब्रांच के सब-इंस्पेक्टर पीवाई चित्ते ने कहा, ‘उसने कहा कि अगर मैंने 1995 में ही समर्पण कर दिया होता, तो अब तक जेल से बाहर होता। मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं। उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों, जैसे उनकी शादी और भविष्य के लिए मेरी जरूरत है…इस उम्र और समय जेल जाना काफी मुश्किल होगा।”

ओडिशा में कॉलेज में पढ़ने वाले प्रधान के 21 वर्षीय बेटे ने बताया, “मैं कॉलेज में था, जब मुझे सूरत पुलिस से उनकी गिरफ्तारी के संबंध में फोन आया। इस हत्याकांड के बारे में हममें से किसी को पता नहीं था। जब मैंने पापा से बात की, तो उन्होंने मुझे अपनी बहन और मां का खयाल रखने के लिए कहा।”

1993 में सूरत दंगों से उभरने लगा था, जिसने बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद शहर को तहस-नहस कर दिया था। तब कपड़ा कारखानों में मजदूरों की भारी मांग थी, क्योंकि अधिकांश अपने गृह नगरों में भाग गए थे। इस संकट को कम करने के लिए सूरत शहर के तत्कालीन भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय कपड़ा मंत्री काशीराम राणा ने सूरत में उद्योग प्रतिनिधियों और ओडिया समुदाय के नेताओं की मदद मांगी। उनके समर्थन के साथ राणा ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि ट्रेन गंजम से युवकों को सूरत लाए, ताकि उद्योग की बिगड़ी स्थिति को ठीक किया जा सके। प्रधान, जो अब उनके बेटे की उम्र का है, सूरत में अपनी किस्मत आजमाने के लिए उसी साल गंजम से उन ट्रेनों में सवार होकर आया।

कई उड़िया प्रवासियों की तरह प्रधान ने भी पांडेसरा के सिद्धार्थनगर में एक कमरा किराए पर लिया। ओडिशा के कपड़ा मजदूरों की बस्ती, यहां की दुकानें अभी भी उड़िया में साइनबोर्ड लगाती हैं। हालांकि, 1990 के दशक की अस्थायी मिट्टी की संरचनाओं ने एक मंजिला पक्के क्वार्टरों का रूप ले लिया है।

पावरलूम फैक्टरी में काम करने का आकर्षण कुछ ही महीनों में फीका पड़ गया। नौकरी को मजेदार नहीं  पाते हुए प्रधान ने नौकरी छोड़ दी। उसकी दोस्ती बीना शेट्टी नाम की एक कारपेंटर से हुई। वह भी गंजम का रहने वाला था। इस दोस्ती ने दोस्ती प्रधान के जीवन की दिशा बदल दी।

दोनों ने सिद्धार्थनगर की गली नंबर 11 में एक कमरा किराए पर लेने का फैसला किया। हर सुबह, प्रधान और शेट्टी निर्माणाधीन इमारतों में बढ़ई के रूप में काम की तलाश में साइकिल से जाते। काम कम होने पर वे घर के छोटे-छोटे फर्नीचर की मरम्मत करते थे।

पांडेसरा पुलिस स्टेशन के सूत्रों ने कहा कि शेट्टी 3 मार्च, 1995 की देर रात गली नंबर 11 के अंत में स्थित एक पान की दुकान पर सिगरेट पीने गया था। कियॉस्क के मालिक ओडिशा के गंजाम निवासी बिदंबर नायक का कुत्ता शेट्टी पर भौंकने लगा। नाराज बढ़ई ने पास में एक छड़ी देखी और कथित तौर पर उसे पीटना शुरू कर दिया। इस पर बिदंबर और उसका दोस्त शिवराम कुत्ते के बचाव में आए और कथित तौर पर शेट्टी को गाली दी।

नाराज शेट्टी ने उस रात प्रधान को सारी बता बताई। अगली सुबह काम की तलाश में निकलने से पहले  दोस्तों ने कथित तौर पर शिवराम को सबक सिखाने की योजना बनाई। बाद में उसी रात प्रधान शिवराम के घर के बाहर उतर गया।

प्रधान ने कथित तौर पर अपने माता-पिता और भाई के साथ खाना खा रहे शिवराम को झूठे बहाने से सुनसान जगह पर बहला फुसला कर बुलाया। वहां  चाकू और तलवार लेकर घात में बैठे शेट्टी और प्रधान ने शिवराम पर हमला कर दिया। पीड़ित ने उनके चंगुल से बचने की कोशिश की, लेकिन प्रधान ने उसे पकड़ लिया, जिसने कथित तौर पर घातक वार किया। एफआईआर के अनुसार, प्रधान और शेट्टी ने कथित तौर पर शिवराम की खून से लथपथ लाश को गौतमनगर की एक नहर में फेंक दिया। उनके सामान को अपने बैग में रख लिया और फिर उसी रात सूरत से भाग गए।

एक राहगीर ने अगले दिन शिवराम का शव देखा और पांडेसरा पुलिस स्टेशन को सूचित किया। शिवराम के बड़े भाई कुमार उदय नायक ने 5 मार्च 1995 को पांडेसरा थाने में प्रधान और शेट्टी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। तब विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया।

जब तक पुलिस सूरत में उनके किराए के मकान पर पहुंचती, तब तक प्रधान और शेट्टी फरार हो चुके थे। पुलिस की एक टीम ने उनके पड़ोसियों के बयान दर्ज किए, जबकि एक अन्य टीम को उन्हें पकड़ने के लिए गंजाम जिले में भेजा गया। टीम आरोपी का पता लगाने में विफल रही और मामला आखिरकार ठंडा पड़ गया।

2022 में, लगभग 27 साल बाद सूरत के पुलिस आयुक्त अजय कुमार तोमर ने अपने अधिकारियों से बलात्कार, हत्या, डकैती आदि बड़े अपराधों में शामिल 15 अभियुक्तों के नाम मांगे। इनमें से एक नाम प्रधान का भी था। अपराध शाखा के इंसपेक्टर एलडी वागड़िया ने शिवराम का मामला चित्ते को सौंपा। अपनी जांच शुरू करने के लिए चित्ते और उनके सहयोगियों के पास शिवराम की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर ही थी।

चित्ते ने बताया, “यह एक डेड-एंड केस की तरह लग रहा था। लेकिन मेरे हेड कांस्टेबल शब्बीर शेख और फरीद खान ने हार मानने से इनकार कर दिया। केस के कागजात खराब हालत में थे। फिर भी, हमने उनका सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और शुरू से ही अपनी जांच शुरू करने का निर्णय लिया। मेरी टीम गली नंबर 11 में पूछताछ करने पहुंची। यहां हमने एक और डेड एंड मारा। सब कुछ बदल गया था। 1995 की एक हत्या के बारे में किसी को कुछ नहीं पता था। इसलिए हम एफआईआर पर वापस चले गए। इसमें गंजम के बालकोंडा गांव का जिक्र है। हम वहां गए, तो पता चला कि परिवार शिफ्ट हो गया है। मेरी टीम मदद के लिए अपने मुखबिरों के पास पहुंची।”

चित्ते ने आगे कहा, “हमें सुराग तब मिला, जब मुखबिरों में से एक ने हमें बताया कि प्रधान का बेटा ब्रह्मपुर में एक ऑटोमोबाइल शोरूम में काम कर रहा है और मास्टर डिग्री हासिल कर रहा है। हम शोरूम से बेटे का मोबाइल नंबर हासिल करने में कामयाब रहे और उसका कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) हासिल किया। हमने उन टेलीफोन नंबरों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनका वह अक्सर इस्तेमाल करता था। बेटे से संपर्क किए बिना तकनीकी निगरानी ने हमें प्रधान को पकड़ने में मदद की।”

गिरफ्तारी के समय प्रधान केरल के अडूर में टिम्बर मार्ट में काम कर रहा था। उसे सूरत लाया गया। चित्ते ने कहा, ‘पूछताछ के दौरान प्रधान ने हमें बताया कि हत्या की रात उसके पास पैसे नहीं थे। उसने अपनी साइकिल 300 रुपये में बेच दी, जिससे वह  ओडिशा जाने के लिए ट्रेन का टिकट खरीद पाया। उसने अपने गांव पहुंचकर घटना के बारे में अपने भाई और माता-पिता को बताया। परिवार पैकअप करके तुरंत पास के मसाबादी ब्लॉक में शिफ्ट हो गया। हत्या के छह साल बाद ब्रह्मपुर गांव में प्रधान की शादी हुई थी। उसने अडूर में शिफ्ट होने से पहले 2007 तक एक बढ़ई के रूप में काम किया, जहां उसके चचेरे भाई ने लकड़ी के मार्ट में काम किया, जबकि परिवार ओडिशा में रहा। आगे चलकर प्रधान के दो बच्चे हुए, एक बेटा और एक बेटी, जो अब 16 साल के हो गए हैं।

प्रधान कभी-कभी ब्रह्मपुर आता था, लेकिन अपने परिवार से नियमित रूप से टेलीफोन पर ही बात करता था।प्रधान के बेटे ने कहा, “पापा अगस्त 2022 में अपने पिता की पुण्यतिथि मनाने के लिए कुछ दिनों के लिए घर आए थे। केरल जाने से पहले लॉकडाउन के दौरान वह दो साल तक हमारे साथ रहे। वह परिवार का इकलौता कमाने वाला था। गिरफ्तारी के बाद एक बार मैं उनसे सूरत में मिला था।’

परेशान दिख रहे युवक ने कहा, “मैं अपनी मास्टर डिग्री कर रहा हूं। मेरी प्रथम वर्ष की परीक्षा फरवरी के अंत में शुरू होती है। मुझे नहीं पता कि मुझे अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए या काम की तलाश शुरू करनी चाहिए।’

चित्ते ने आगे कहा, “हमने प्रधान के ठिकाने का पता लगाने से पहले उसके परिवार का पता लगा लिया था। हालांकि, हमने इस डर से परिवार से संपर्क नहीं करने का फैसला किया कि अगर प्रधान को हमारी जांच की भनक लग गई तो वह केरल भाग जाएगा। प्रधान को गिरफ्तार करने के बाद हमने बेटे को फोन किया।”

इधर सिद्धार्थनगर में, जहां अब भी आधा किलोमीटर के दायरे में हजारों प्रवासी रहते हैं, किसी ने भी प्रधान या शिवराम के बारे में नहीं सुना है। बिदंबर के ठिकाने की खोज से पता चलता है कि वह भी गंजाम वापस चला गया। गौतमनगर की जिस नहर में शिवराम का शव मिला था, वह अब सड़क है। शेट्टी अभी फरार है। प्रधान सूरत सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में है।

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