आग में जान बचाने वाली गुजरात की लड़की को वीरता पुरस्कार

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आग में जान बचाने वाली गुजरात की लड़की को वीरता पुरस्कार

| Updated: January 12, 2023 11:38

अहमदाबाद: एयर कंडीशनर से निकली चिंगारी कुछ ही मिनटों में भयानक रूप में बदल गई थी। इसे देख बड़े लोग भी दहशत में आ जाते, लेकिन  वीरांगना झाला ने अपना आपा नहीं खोया। तब वह सिर्फ छह साल की थी। उसने पहले माता-पिता को सतर्क किया। फिर तेजी से बोदकदेव अपार्टमेंट के दूसरे घरों में गई और समय रहते इमारत को खाली करवाकर 60 से अधिक लोगों की जान बचाई। असाधारण समझदारी और निडरता के लिए वीरांगना को गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।

आग 7 अगस्त, 2022 को रात करीब 10.15 बजे लगी थी। कक्षा-1 की छात्रा वीरांगना ने राजपथ क्लब के पास पार्कव्यू अपार्टमेंट में अपने घर में एयर-कंडीशनर चालू करने के लिए रिमोट दबाया था। तभी यूनिट में एक चिंगारी भड़क गई और उसमें आग लग गई। देखते ही देखते आग फैलने लगी।

वीरांगना ने पिता आदित्य सिंह  और मां कामाक्षी को आग के बारे में सूचित किया। फिर अपने नाम के अनुरूप पड़ोसियों को चेतावनी देने के लिए दौड़ी और उन्हें इमारत खाली करने के लिए कहा। उन्हें शुरू में लगा कि यह कोई शरारत है। हालांकि, जब उन्होंने घर से धुआं निकलते देखा, तो वे पास के बागीचे की ओर भागे और दमकल विभाग को फोन किया।

इस बीच कुछ निवासियों ने आग बुझाने के छह यंत्रों (extinguishers) का इस्तेमाल किया, लेकिन वे आग पर काबू पाने में असफल रहे। तब तक दमकल पहुंच गई। आग बुझाने में दो घंटे लग गए थे।

कामाक्षी ने कहा, “आग ने हमारे घर को खाक कर दिया। हमें गांधीनगर के कोटेश्वर में एक दोस्त के घर रहना पड़ा।” यह घटना शांतिग्राम के अडानी इंटरनेशनल स्कूल की छात्रा वीरांगना के सात साल के होने के ठीक तीन दिन पहले की है।

उनकी बहादुरी की कहानी भारतीय बाल कल्याण परिषद तक पहुंची, जो बहादुरी पुरस्कारों के लिए बच्चों के नाम भेजती है। उसने पुरस्कार के लिए वीरांगना के नाम को फाइनल करने से पहले उसके माता-पिता से संपर्क किया।

दिलचस्प बात यह है कि वीरांगना अपने परिवार में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली पहली महिला नहीं है। उसके दादा कृष्णकुमारसिंह झाला, जो तब एनसीसी कैडेट थे, ने 1969 में गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से ‘ऑल इंडिया बेस्ट कैडेट जूनियर डिवीजन’ का पुरस्कार प्राप्त किया था।

वीरांगना झाला की मां कामाक्षी ने कहा, “जब वीरांगना अपनी स्कूल बस से उतरी, तो हमने उससे कहा कि उसे आग के दौरान अपने बहादुर कार्यों के लिए पुरस्कार मिलेगा। उसने कहा ‘वाह’ और उसका चेहरा खुशी से खिल उठा। हम 17 जनवरी को दिल्ली के लिए रवाना होंगे। वहां वीरांगना को प्रोटोकॉल के बारे में सूचित किया जाएगा और पुरस्कार समारोह से पहले वाले सेशन से गुजरना होगा। जब कृष्णकुमारसिंह झाला ने समाचार सुना, तो उन्होंने उत्साहपूर्वक रिश्तेदारों और मित्रों को बताया। कामाक्षी ने कहा, “उन्हें उम्र से संबंधित बहरापन है, लेकिन इस खबर ने उन्हें ऊर्जावान बना दिया। जैसे-जैसे लोगों को उनके माध्यम से सम्मान के बारे में पता चला, शुभकामनाएं और बधाई संदेश आने लगे।”

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्रतिवर्ष 18 वर्ष से कम आयु के 25 भारतीय बच्चों को “सभी बाधाओं के खिलाफ बहादुरी के सराहनीय कार्यों” के लिए दिया जाता है। पुरस्कार भारत सरकार और भारतीय बाल कल्याण परिषद (ICCW) द्वारा दिए जाते हैं। इस पुरस्कार की स्थापना 1957 में ICCW द्वारा उन बच्चों को उचित पहचान देने के लिए की गई थी, जो बहादुरी और सराहनीय सेवा के उत्कृष्ट कार्य करके खुद को अलग पहचान देते हैं और अन्य बच्चों को अपने उदाहरणों से प्रेरित करते हैं।

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