नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के पायलट प्रोजेक्ट में स्टील, ट्रांसपोर्ट और शिपिंग शामिल

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नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के पायलट प्रोजेक्ट में स्टील, ट्रांसपोर्ट और शिपिंग शामिल

| Updated: January 19, 2023 17:06

हाल ही में शुरू नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM) में प्रायोगिक परियोजना (Pilot projects) के लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों को चुना गया है। इनमें जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) की जगह ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होगा। स्टील, लंबी दूरी के भारी वाहनों की आवाजाही, ऊर्जा भंडारण और शिपिंग उन क्षेत्रों में शामिल हैं, जिन्हें ग्रीन हाइड्रोजन की प्रायोगिक परियोजना के लिए चुना गया है। बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह मिशन के लिए 19,500 करोड़ रुपये के शुरुआती बजट को मंजूरी दी थी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस योजना का जिक्र किया था।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा (New and Renewable Energy Ministry) मंत्रालय के ब्लूप्रिंट के मुताबिक, इन कठिन क्षेत्रों के लिए मिशन ने जीवाश्म ईंधन और जीवाश्म ईंधन पर आधारित फीडस्टॉक की जगह ग्रीन हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव्स के इस्तेमाल की प्रायोगिक परियोजना (Pilot projects) का प्रस्ताव दिया है। मंत्रालय ने कहा है कि यह भविष्य में इसके कमर्शियल रूप से विस्तार देने में मूल्यवान इनपुट के रूप में काम आएगा।’

स्टील सेक्टर के लिए मिशन ने उन कवायद को समर्थन देने का प्रस्ताव किया है, जिससे कम कार्बन वाले स्टील उत्पादन की क्षमता बढ़ सकेगी। ग्रीन हाइड्रोजन की लागत ज्यादा है। ऐसे में स्टील संयंत्र अपनी प्रक्रिया में ग्रीन हाइड्रोजन का एक छोटा हिस्सा मिलाने से शुरुआत कर सकते हैं। फिर धीरे धीरे मिश्रण की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। नई परियोजनाओं में 100 प्रतिशत ग्रीन स्टील के लक्ष्य पर भी विचार किया जा सकता है।

योजना में कहा गया है, ‘मिशन में पूरी तरह से सेल पर आधारित इलेक्ट्रिक वाहनों को समर्थन दिया जाएगा। इनमें बसें और ट्रक शामिल हैं। मिशन में ग्रीन हाइड्रोजन पर आधारित मेथनॉल, इथेनॉल व अन्य सिंथेटिक ईंधन को ऑटोमोबाइल ईंधन में मिलाने की संभावना तलाशी जाएगी।

सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य शिपिंग सेक्टर के लिए है। बंदरगाहों से लेकर शिपिंग कंपनियों से उम्मीद की गई है कि वे ग्रीन हाइड्रोजन अपनाएंगे। शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया या उसके विनिवेश की स्थिति में उसके निजी क्षेत्र के उत्तराधिकारी से 2027 तक कम से कम 2 शिप ग्रीन हाइड्रोजन या ग्रीन हाइड्रोजन आधारित अन्य ईंधन से चलाने की उम्मीद की गई है।

भारत के तेल और गैस पीएसयू (gas PSUs) को 2027 तक कम से कम एक शिप को ग्रीन हाइड्रोजन या इससे संबंधित ईंधन से चलाना होगा। उसके बाद कंपनियों को कम से कम एक शिप ग्रीन हाइड्रोजन या इसके डेरिवेटिव्स से हर साल मिशन के रूप में चलाना होगा। ग्रीन अमोनिया बंकरों और रिफ्यूलिंग सुविधाओं की स्थापना 2025 तक कम से कम एक बंदरगाह पर की जाएगी। इस तरह के केंद्र 2035 तक सभी प्रमुख बंदरगाहों पर बनाए जाएंगे।

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