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गुजरात और राजस्थान में है लंपी रोग का अधिक घातक रूप

| Updated: October 8, 2022 1:22 pm

लंपी स्किन रोग (LSD) का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। गुजरात और राजस्थान में उसकी चपेट में लाखों दुधारू पशु आ गए हैं। इसके वायरस 2019-20 में देखे वायरस की तुलना में अधिक घातक हैं। यह जानकारी गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (GBRC) के रिसर्च से मिली है।

इसकी टीमों ने अगस्त-सितंबर में प्रकोप के बाद जीवित और मरे दोनों जानवरों के नमूने लिए थे। एक शोधकर्ता ने कहा, “स्ट्रेन ने अपने पूर्ववर्ती की तुलना में अधिक संक्रामकता और मृत्यु दर का संकेत दिया। वायरस की जड़ों का पता पूर्वी अफ्रीका में लगाया जा सकता है, जहां से यह दक्षिणी यूरोप, ईरान जैसे देशों से होते हुए भारत में प्रवेश करने से पहले पाकिस्तान गया।”

वैक्सीन को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी है स्टडीः

गुजरात में लंपी बीमारी ने करीब एक लाख मवेशियों को प्रभावित किया है। सिर्फ अगस्त-सितंबर में ही इसके कारण 3,800 जानवरों की मौत हो गई। GBRC के अध्ययन के दौरान 33 जिलों में से 24 ने जानवरों में संक्रमण (infection) की सूचना दी थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, टीकाकरण के लिए व्यापक अभियान में 4 लाख से अधिक मवेशियों को शामिल किया गया। विशेषज्ञों ने कहा कि रिसर्च के नतीजे मौजूदा वैक्सीन को बेहतर बनाने में मदद करेंगे। साथ ही इसे फैलने से रोकने वाले नए वैक्सीन बनाने में भी मदद मिलेगी।

एक शोधकर्ता ने कहा, “मनुष्यों में पाए जाने वाले वायरस की तुलना में एलएसडी- प्रोक्सीविरिडे वायरस के चेचक में से एक है, जो उससे दोगुना बड़ा है और गायों, बैलों और भैंसों में पाया जाता है। जब पहली बार 1980 के दशक में रिपोर्ट किया गया था, तब यह अफ्रीका के बाहर नहीं पाया गया था। दशकों से कई नोड्यूल का कारण बनने वाला वायरस दक्षिणी यूरोप, मध्य पूर्व में फैले जानवरों में श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित करते हुए अंत में भारत आने से पहले ईरान और पाकिस्तान तक पहुंच गया।”

वायरस की यात्रा दरअसल कई आनुवंशिक (multiple genetic) म्यूटेशन का कारण बनी, जो GBRC में वायरस के जीनोमिक सीक्वेंसिंग से बताया गया था। शोधकर्ताओं द्वारा जीवित और मृत दोनों जानवरों से नमूने एकत्र किए गए थे। परिणामों से पता चला कि 2019-20 में लिए गए पहले के नमूनों की तुलना में, उच्च संक्रामकता (higher infectivity) और मृत्यु दर (mortality) के साथ वायरस अधिक वायरल हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर टिक्स वायरस के प्राथमिक वाहक (primary carriers) हो सकते हैं।

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