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गोधरा ट्रेन जलाने के दोषियों की जमानत याचिका का गुजरात सरकार ने किया विरोध

| Updated: January 31, 2023 6:44 pm

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा ट्रेन कोच जलाने के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए कुछ दोषियों की जमानत याचिकाओं पर सोमवार को गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को 2002 के चर्चित गोधरा ट्रेन कांड के एक आरोपी को जमानत दी थी।

गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice of India) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह केवल साबरमती एक्सप्रेस की बोगी पर पत्थरबाजी का मामला नहीं है। इसमें दोषियों ने दरवाजे को बंद कर दिया था, जिसके कारण ट्रेन में कई यात्रियों की मौत हो गई थी।

कुछ दोषियों की ओर से पेश सीनियर वकील संजय हेगड़े ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने कुछ दोषियों के मामलों में अपील दायर की है, जिनकी फांसी की सजा को गुजरा हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था।

बेंच के सदस्यों में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला भी हैं। बेंच ने मेहता से कहा: “हम दो सप्ताह के बाद (जमानत याचिकाओं) को सूचीबद्ध करेंगे।” इसके साथ ही कोर्ट ने अब्दुल रहमान धंतिया उर्फ कंकत्तो, अब्दुल सत्तार इब्राहिम गद्दी असला और अन्य की जमानत याचिकाओं पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषी 17 साल से जेल में है और उसकी भूमिका ट्रेन पर पत्थर फेंकने की थी। बेंच ने कहा कि आरोपी फारूक की जमानत अर्जी मंजूर की जाती है, इसलिए कि वह 2004 से हिरासत में है और दोषसिद्धि (conviction) के खिलाफ उसकी अपील शीर्ष अदालत में पेंडिंग है।

शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि आवेदक को सत्र अदालत द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन जमानत दी गई है। राज्य सरकार के मुताबिक, आरोपियों ने भीड़ को उकसाया और कोच पर पथराव किया, यात्रियों को घायल किया और कोच को क्षतिग्रस्त कर दिया।

गुजरात सरकार की ओर से पेश मेहता ने तब कहा कि चूंकि दोषी पत्थर फेंक रहे थे। इस तरह इसने लोगों को जलती हुई कोच से बच निकलने से रोका। आम दिनों में पत्थर फेंकना कम गंभीर अपराध हो सकता है, लेकिन इस मामले में पत्थरबाजी अलग मकसद से की गई।

मार्च 2011 में ट्रायल कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से 11 को मौत की सजा और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। कुल 63 अभियुक्तों को बरी कर दिया गया।

अक्टूबर 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने सभी की सजा को बरकरार रखा, लेकिन 11 की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

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