Tripti Nath
लाहौल/नई दिल्ली। दक्षिण गुजरात के वापी की 46 वर्षीय महिला तनुजा सुनीलमुंगरवाड़ी ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी के सिसु में आयोजित स्नो मैराथन में 70 मिनट में पांच किलोमीटर की दूरी पूरी की है। भारत के पहले स्नो मैराथन में भाग लेने वाले विभिन्न हिस्सों के सौ से अधिक धावकों में तनुजा एकमात्र ऐसी थीं, जिन्होंने शून्य से भी कम तापमान में 10,500 फीट की ऊंचाई पर गुजरात का प्रतिनिधित्व किया।
दो बच्चों की मां तनुजा 2013 से गुजरात में पांच और 10 किलोमीटर की मैराथन दौड़ रही हैं।
मैराथन दौड़ने के लिए 3,500 किलोमीटर की राउंड ट्रिप करने के एक असाधारण अनुभव के अलावा तनुजा हिमाचल में कैस स्थित एक कॉटेज के फ्रांसीसी मालिक के साथ विश्व प्रसिद्ध गुजराती स्नैक ‘खाकरा’ की बहुत सुखद यादों के साथ घर लौटी हैं। अपनी सहयात्री हमीरपुर जिले की आकृति शर्मा के साथ। आकृति भरूच जिले में रहती हैं। चहकते हुए उन्होंने कहा, “फ्रांसीसी विलियम टॉफोलन मुझसे खाकरा का एक पैकेट पाकर खुश थे। उन्होंने इतने स्वादिष्ट खाकरों का स्वाद पहले नहीं चखा था।”
कान्टेंट लेखिका तनुजा के स्नो मैराथन दौड़ने का यह पहला मौका था। इसके बारे में उन्होंने कुल्लू जिले के कैस गांव (प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य के पास) का दौरा करते हुए सुना था। उन्होंने कहा, “मैं कैस के आसपास के इलाकों में कोल्हापुर, मुंबई और पुणे के दोस्तों के साथ ट्रेकिंग कर रही थी। तभी मुझे अपने दोस्त और स्नो मैराथन के ब्रांड एंबेसडर विशाल गुडुलकर से इसके बारे में पता चला। विशाल कोल्हापुर के रहने वाले हैं। मुझे किसी अनुनय की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि मैं ऊंचाई पर दौड़ने की चुनौती का सामना करने से खुद को रोक ही नहीं पाई।”
तनुजा हंसमुख और मिलनसार हैं। हिमाचल प्रदेश में दस दिनों की ट्रेकिंग के बाद वह अप्रैल में कुछ समय के लिए गुजरात लौटीं। फिर एक पारिवारिक शादी में शामिल होने के लिए कर्नाटक के हुबली के लिए रवाना हो गईं। उन्होंने हंसते हुए कहा, “मैं बहुत यात्रा कर चुकी हूं। सच कहूं तो मैं अपना जीवन एक सूटकेस में जी रही हूं। मेरे पति एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। वह काम में जुटे रहते हैं। इसलिए सुबह 8 बजे से ही अपना काम शुरू कर देते हैं। उमरगांव में उनका कार्यालय वापी से एक घंटे की ड्राइव पर है। दरअसल उनका काम ही उनकी पहली पत्नी है। ऐसे में मैं तो उनकी दूसरी पत्नी हूं। ” तनुजा की बेटियां अपने करियर और नौकरी में व्यस्त हैं।
उन्होंने मैराथन में भाग लेने का फैसला पति से छुपा रखा था। तनुजा ने कहा, “मैं उन्हें सरप्राइज देना चाहती थी, लेकिन मैंने अपनी बेटियों को बता दिया था। मेरी तरह छोटी बेटी भी खोजी मिजाज की है। उन्हें मुझ पर बहुत गर्व है।” वैसे तनुजा की वापी से लाहौल तक की लंबी यात्रा, अपने घर के आराम से मीलों दूर, वास्तव में प्रेरणादायक है। यह 18 मार्च का दिन था, जब वापी से चंडीगढ़ की 1458 किमी की दूरी तय करने और 26 घंटे की लंबी वाली यात्रा के लिए पश्चिम एक्सप्रेस में सवार हुईं। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद उन्होंने स्टेशन के वेटिंग रूम में कुछ घंटों के लिए आराम किया। फिर चंडीगढ़ से कुल्लू के लिए रात भर की बस में सवार हुईं, जो लगभग नौ घंटे में 265 किलोमीटर की दूरी तय करती है। अगले दिन (20 मार्च) सुबह 6.30 बजे कुल्लू पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बस स्टैंड से कैस के लिए बस ली, जहां उन्होंने कुछ समय के लिए आराम किया। उन्होंने कहा, “मुझे सर्वशक्तिमान को धन्यवाद देना चाहिए कि मेरे पास बहुत सहनशक्ति और उत्साह है। मैंने कैस से सिसु के लिए बस ली और मैराथन से 48 घंटे पहले वहां पहुंच गई।”
तनुजा ने अपने अनुभव को याद करते हुए कहा, “मैं 26 मार्च को मैराथन के दिन सिसु में शुरुआती बिंदु तक पहुंचने में कामयाब रही। एक दिन पहले मेडिकल परीक्षण के दौरान मेरा रक्तचाप थोड़ा बढ़ा था। मेरे पास रक्तचाप की जांच कराने का समय था। मैंने अपना लेबल पकड़ लिया और दौड़ना शुरू कर दिया, क्योंकि मेरे वहां पहुंचने के कुछ ही मिनटों के भीतर मैराथन को हरी झंडी दिखा दी गई थी। मैराथन से पहले मैंने गुनगुना पानी और सूखे मेवे खाए।
मैं भाग्यशाली थी कि मुझे कुछ ट्रायल रन के रूप में अभ्यास का मौका मिला। मैराथन खत्म करने के बाद मैं वापस कैस गांव गई और एक अप्रैल को वापी लौटने से पहले मनाली में कुछ दिन बिताए।’
तनुजा ने अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट पर स्नो मैराथन के वीडियो डाले हैं, जिस पर उन्हें दोस्तों से खूब वाहवाही मिली हैं।
दक्षिण भारत में कर्नाटक के बेलगाम में जन्मी तनुजा संकेश्वर में पली-बढ़ीं। उन्हें याद है कि वह स्कूल में भाला, डिस्कस थ्रो, खो-खो जैसे पारंपरिक भारतीय खेल में अच्छी थीं। शायद इसी फिटनेस ने उन्हें चुनौतीपूर्ण मौसम में दौड़ने में मदद की।
महिलाओं के लिए उनका संदेश है कि उन्हें यात्रा के बारे में अपनी सीमाओं और अवरोधों को दूर करना चाहिए। उन्होंने कहा, “उन्हें घुमक्कड़ी के लिए एक मौका लेना चाहिए। इसके लिए घरेलू दायित्वों की बेड़ियों को तोड़ना चाहिए। जिंदगी बहुत छोटी है। व्यक्ति को खोज करते रहना चाहिए, अनुभव करते रहना चाहिए और अपना ज्ञान बढ़ाते रहना चाहिए।”