5,000 साल पहले भी गुजरात में होता था व्यापार; हड़प्पा काल में फला-फूला

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5,000 साल पहले भी गुजरात में होता था व्यापार; हड़प्पा काल में फला-फूला

| Updated: February 11, 2023 16:49

अहमदाबाद: गुजरातियों के खून में मौजूद ‘धंधों’ को पुरातात्विक (archaeological) खोजों से जाना जा सकता है,  जो संकेत देते हैं कि इस क्षेत्र के लोग संसाधनों की खोज करने और शंख की चूड़ियां और सुलेमानी/जास्पर मोती जैसे सामान बनाने में कुशल थे, प्रमुख हड़प्पा स्थलों (Harappan sites) में पाए जा सकते हैं। इनमें राजस्थान और हरियाणा भी हैं।

एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा में पुरातत्व के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में आईआईटी गांधीनगर (IIT-Gn) में विजिटिंग फैकल्टी पी अजित प्रसाद के मुताबिक, गुजरात के वर्तमान क्षेत्र में धोलावीरा और लोथल जैसे महत्वपूर्ण स्थल शामिल हैं, जो हड़प्पा के लिए महत्वपूर्ण केंद्र थे। ये शंख (shell) और अर्द्ध कीमती पत्थर (semi-precious stone goods) के सामान के उत्पादन वाले क्षेत्र थे।

IIT-Gn में आयोजित ‘हड़प्पा सभ्यता के उभरते परिप्रेक्ष्य’ (Emerging Perspectives of the Harappan Civilization) विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अजित प्रसाद मुख्य वक्ता थे। वह ‘हड़प्पा सभ्यता: हाल के परिप्रेक्ष्य’ पर बोले।

प्रोफेसर अजीत प्रसाद ने कहा कि तीन फैक्टर इस क्षेत्र के पक्ष में काम करते हैं। “अर्द्ध कीमती पत्थरों की खोज – पहले कच्छ क्षेत्र में और बाद में खंभात की खाड़ी के कुछ हिस्सों में – एक फलता-फूलता मोतियों का उद्योग था। हमें कई ऐसी जगहें मिलीं जहां विभिन्न आकृतियों और आकारों के मनके बनाए जाते थे। इसी तरह, लंबी तटरेखा (coastline) के कारण चूड़ियों जैसे उत्पादों को बनाने के लिए प्रचुर मात्रा में शेल का उपयोग किया जाता है। दूसरा कारक कच्छ क्षेत्र में अर्नेस्टाइट पत्थर थे, जिनका उपयोग ड्रिल बनाने के लिए किया जाता था। विभिन्न स्थलों पर पाए गए इन ड्रिल का उपयोग मोतियों को बनाने के लिए किया जाता था।

तीसरे फैक्टर के रूप में उन्होंने कहा, समुद्र तट था।  जिसने माल को लाने-ले जाने मदद की। उन्होंने कहा, “इस प्रकार, रैंडल लॉ जैसे विशेषज्ञों ने संकेत दिया कि ये सामान व्यापक रूप से यात्रा करते थे और हड़प्पा-काल के कई अन्य प्रमुख स्थलों में पाए जा सकते थे। यह अरब प्रायद्वीप (Arabian Peninsula) और मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में भी पाया जा सकता है।”

राज्य पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक डॉ वाईएस रावत ने कहा कि क्षेत्र के पक्ष में काम करने वाला एक अन्य फैक्टर धोलावीरा जैसे प्रमुख शहरों की उपस्थिति के साथ-साथ छोटे गांवों या केंद्रों का घना नेटवर्क था।

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