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अमेरिका के ‘डंकी रूट’ से तौबा! अब जर्मनी बना हरियाणा के युवाओं की पहली पसंद, जानिए क्या है वजह

| Updated: December 22, 2025 13:32

अमेरिका से डिपोर्टेशन के डर ने बदली राह; अब मुफ्त शिक्षा और पक्की नौकरी के लिए जर्मनी की कतार में लगे हरियाणा के युवा।

चंडीगढ़/हिसार: हरियाणा के युवाओं के बीच विदेश जाने का सपना आज भी उतना ही प्रबल है, लेकिन अब उनका रास्ता बदल रहा है। जान जोखिम में डालकर अवैध ‘डंकी’ रूट (Donkey Route) से अमेरिका जाने के बजाय, अब युवा एक सुरक्षित और कानूनी विकल्प की तलाश में हैं। इसी बदलाव के चलते यूरोप का एक देश—जर्मनी—उनके सपनों का नया केंद्र बनकर उभरा है।

अमेरिका द्वारा पिछले एक साल में बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों को वापस भारत डिपोर्ट (निर्वासित) किए जाने की घटनाओं ने इस रुझान को बदलने में अहम भूमिका निभाई है। अब युवा अवैध रास्तों की अनिश्चितता को छोड़कर जर्मनी की ओर देख रहे हैं, जहाँ उन्हें बेहतर भविष्य की उम्मीद नजर आ रही है।

जर्मन भाषा सीखने की मची होड़

राज्य के कई लैंग्वेज इंस्टिट्यूट (भाषा संस्थान) के प्रतिनिधियों के अनुसार, युवाओं में जर्मन भाषा सीखने की दिलचस्पी में जबरदस्त उछाल आया है। इसके पीछे मुख्य कारण जर्मनी में ट्यूशन-फ्री शिक्षा के अवसर और नौकरी की बेहतर संभावनाएं हैं।

जर्मनी दूतावास के प्रवक्ता कैस्पर मेयर ने इस बढ़ते ट्रेंड की पुष्टि करते हुए बताया, “जर्मनी द्वारा जारी किए जाने वाले सभी ‘अपॉर्चुनिटी कार्ड्स’ (कुशल गैर-ईयू श्रमिकों के लिए वीजा) का लगभग एक-तिहाई हिस्सा भारतीयों को मिल रहा है। कोविड महामारी के बाद से, भारत में जारी होने वाले शेंगेन और राष्ट्रीय वीजा की संख्या में हर साल दोहरे अंकों (double-digit) में वृद्धि हो रही है, और हमें उम्मीद है कि यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।”

हरियाणा से सबसे ज्यादा आवेदन

हालांकि राज्यवार सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन मेयर ने संकेत दिया कि भारत से वीजा आवेदन करने वाले राज्यों में हरियाणा संभवतः शीर्ष तीन में शामिल है। वर्तमान में जर्मनी में विदेशी छात्रों का सबसे बड़ा समूह भारतीयों का ही है। मेयर के मुताबिक, वहां लगभग 60,000 भारतीय छात्र विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर रहे हैं। ‘जर्मन एकेडमिक एक्सचेंज सर्विस’ (DAAD) के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2020 में यह संख्या महज 28,905 थी।

हिसार स्थित ‘स्काईटेक डेस्टिनेशन’ के निदेशक राजेश कुंडू बताते हैं, “जर्मनी में 400 से अधिक इंटर्नशिप-आधारित कार्यक्रम उपलब्ध हैं, जो छात्रों को नर्सिंग, रिटेल, फूड प्रोसेसिंग और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में नौकरी पाने का मौका देते हैं।” उनके संस्थान में 8 से 10 महीने का जर्मन भाषा कोर्स कराया जाता है, जिसकी फीस 80,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच है।

कुंडू ने आगे बताया कि कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूके जैसे देशों में बढ़ती चुनौतियों के कारण छात्र अब जर्मनी का रुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “जर्मन सीखने का यह क्रेज अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन अब लगभग हर जिले में दो-तीन ऐसे संस्थान खुल गए हैं। हमने छात्रों की मदद के लिए एक जर्मन बैंक के पूर्व कर्मचारी द्वारा ऑनलाइन सत्र भी शुरू किए हैं।”

सरकार भी कर रही है सहयोग

इस नए बदलाव पर हरियाणा के विदेश सहयोग विभाग के महानिदेशक अशोक मीणा का कहना है कि सरकार उन युवाओं के लिए अवसर सुगम बना रही है जो रोजगार के लिए यूरोपीय देशों सहित विदेश जाना चाहते हैं।

खेत कम, पर हौसले बुलंद: सुमन और प्रीतिका की कहानी

हिसार जिले के ढाणी सिसवाल गांव की तीन बहनें—सुमन (28), रंजना (18) और योगिता (15)—जर्मनी जाने के लिए पूरी तैयारी कर रही हैं। रंजना और सुमन ने अपना आठ महीने का जर्मन भाषा का ‘B1 कोर्स’ पूरा कर लिया है, जबकि 9वीं कक्षा की छात्रा योगिता अभी इसकी शुरुआत कर रही है।

मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स डिग्री हासिल कर चुकीं सुमन कहती हैं, “मुझे पता है कि जर्मन एक कठिन भाषा है, लेकिन मैं वो जोखिम नहीं उठाना चाहती जो दूसरों ने डंकी रूट के जरिए अमेरिका जाकर उठाया। मैं जर्मन संस्थान में पढ़ाई के साथ तीन साल की इंटर्नशिप करके नौकरी पाना चाहती हूं ताकि अपने परिवार का सहारा बन सकूं।”

सुमन के पिता बलराज सैनी के पास मात्र आधा एकड़ कृषि भूमि है, फिर भी उनका हौसला कम नहीं है। वह कहते हैं, “हम चाहते हैं कि सुमन विदेश जाने के लिए सुरक्षित रास्ता ही अपनाए।”

सफलता बनी प्रेरणा

भिवानी जिले के ढाणी माहू गांव में रहने वाली प्रीतिका तंवर (21) की सफलता आसपास के अन्य छात्रों के लिए एक मिसाल बन गई है। प्रीतिका ने ‘B1 लैंग्वेज कोर्स’ पूरा करने के बाद जर्मनी में फूड प्रोसेसिंग में डुअल डिग्री प्रोग्राम में दाखिला लिया है, जिसमें पढ़ाई के साथ इंटर्नशिप भी शामिल है।

उनके परिवार के मुताबिक, वह ‘अदेका ग्रुप’ (Adeka Group) के साथ जुड़ी हैं और वर्तमान में उन्हें रहने की मुफ्त सुविधा के साथ 950 यूरो प्रति माह मिल रहे हैं। तीन साल का कोर्स पूरा होने के बाद उन्हें लगभग 3,000 यूरो प्रति माह वेतन मिलने की उम्मीद है।

प्रीतिका के भाई तजिंदर (19) कहते हैं, “मेरी बहन वहां अच्छा कर रही है। मैंने भी 12वीं कक्षा के बाद अपना B1 कोर्स पूरा कर लिया है और अब जर्मनी में नर्सिंग कोर्स में दाखिला लेने की उम्मीद कर रहा हूं।”

इसी तरह, प्रीतिका की पड़ोसी बहनें मुस्कान (21) और श्वेता (19), और उनकी चचेरी बहन साक्षी (21), जो किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं, को भी जर्मन नर्सिंग कोर्स में दाखिले की पुष्टि मिल चुकी है। यह स्पष्ट है कि हरियाणा के गांवों में अब अमेरिका के खतरनाक रास्तों की जगह जर्मनी के सुरक्षित भविष्य ने ले ली है।

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